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जुलाई दिसम्बर 2012
December 30, 2012
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केजरीवाल के “आन्दोलन” से किसको क्या मिलेगा?
कौन जिम्मेदार है इस पाशविकता का? कौन दुश्मन है? किससे लड़ें?
स्वास्थ्य तन्त्र में अमानवीयता पूँजीवाद का आम नियम है
और कितने बेगुनाहों की बलि के बाद समझेंगे हम? आपस में लड़ना छोड़, अपने असली दुश्मन को पहचानना ही होगा!!
बाल ठाकरे: भारतीय फासीवाद का प्रतीक पुरुष
फैजाबाद में हुए साम्प्रदायिक दंगों के निहितार्थ
कृत्रिम चेतना: एक कृत्रिम और मानवद्रोही परिकल्पना
मारुति सुजुकी के मज़दूरों का संघर्ष और भारत के ‘‘नव-दार्शनिकों” के “अति-वामपन्थी” भ्रम और फन्तासियाँ
एरिक हॉब्सबॉमः एक हिस्टोरियोग्राफिकल श्रद्धांजलि
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मई जुन 2012
June 30, 2012
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कार्टून, पाठ्यपुस्तकें और भयाक्रान्त भारतीय शासक वर्ग
जस्टिस काटजू का विधवा-विलाप और भारतीय मीडिया की असलियत
मानवद्रोही-मुनाफ़ाखोर व्यवस्था का शिकार बनता मासूम बचपन
ये महज़ हादसे नहीं, निर्मम हत्याएँ हैं
सूखा: प्राकृतिक आपदा या पूँजीवादी व्यवस्था का प्रकोप?
“विश्व शान्ति” के वाहक हथियारों के सौदागर
दलित मुक्ति का रास्ता मज़दूर इंकलाब से होकर जाता है
…
क्रिस्टोफ़र कॉडवेल और भौतिकी का “संकट”
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मार्च अप्रैल 2012
April 30, 2012
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बजट 2012-13 – आम जनता की जेबें झाड़कर…….
श्री श्री रविशंकर और बाबागीरी का राजनीतिक अर्थशास्त्र
अण्णा हज़ारे की महिमा बनाम संसद की गरिमा: तुमको क्या माँगता है?
सूचना प्रौद्योगिकी माध्यमों पर सरकार के सर्विलियंस का असली निशाना जनता है
बथानी टोला नरसंहार फैसलाः भारतीय न्याय व्यवस्था का असली चेहरा
मज़दूर वर्ग से ग़द्दारी का गन्दा, नंगा और बेशर्म संशोधनवादी दस्तावेज़
बन्द गली की ओर बढ़ता विश्व पूँजीवाद
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जनवरी फरवरी 2012
February 28, 2012
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विकल्प की राह खोजते लोग और नये विकल्प की समस्याएँ
पूँजीवादी स्वर्ग के तलघर की सच्चाई
संस्कृति-रक्षकों और धर्म ध्वजाधारियों का असली चेहरा
सम्मान के नाम पर हत्या या सम्मान के साथ ना जीने देने का जुनून
श्रीराम सेने की ‘राष्ट्रभक्ति’ का एक और नमूना
दवा कम्पनियों के मुनाफे के लिए इंसानी जि़न्दगी से घिनौने खिलवाड़ का मसौदा
इतने शर्मिंदा क्यों हैं प्रो. एजाज़ अहमद
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नवम्बर-दिसम्बर 2011
December 30, 2011
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खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेशः समर्थन, विरोध और सही क्रान्तिकारी अवस्थिति
यूरोज़ोन का सम्प्रभु ऋण संकटः साम्राज्यवाद का निकट आता असंभाव्यता बिन्दु
मिस्र में जनता सैन्य तानाशाही के खि़लाफ़ सड़कों पर
देश की मेहनतक़श ग़रीब जनता के साथ एक भद्दा मज़ाक
धार्मिकता बनाम तार्किकता
फिर से मुनाफ़े की हवस की भेंट चढ़े सैंकड़ों मज़दूर
आधुनिक भौतिकी और भौतिकवाद के लिए संकट
बाज़ का गीत – मक्सिम गोर्की
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सितम्बर अक्टूबर 2011
October 30, 2011
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वर्तमान संकट और जनता के आन्दोलनः क्या पूँजीवाद- विरोध पर्याप्त है?
गद्दाफ़ी की मौत के बाद: अरब जनउभार किस ओर?
चिली के छात्रों का जुझारू आंदोलन
स्टीव जॉब्स: सच्चा “नायक” :लेकिन किसके लिए?
ग़रीबी रेखा के निर्धारण का दर्शन, अर्थशास्त्र और राजनीति
श्रीराम सेने ने मचाया उत्पात और अण्णा हो गये मौन!!
आज भी उतना ही प्रासंगिक है ‘जंगल’ उपन्यास
राम शरण शर्मा (1920-2011): जनता का इतिहासकार
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जुलाई अगस्त 2011
August 30, 2011
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अण्णा हज़ारे का भ्रष्टाचार-विरोधी धर्मयुद्धः प्रकृति, चरित्र और नियति
कद्दाफ़ी की सत्ता का पतनः विद्रोह की विजय या साम्राज्यवादी हमले की जीत?
नार्वे के नरसंहार की अन्तःकथा
ब्रिटेन के दंगेः स्वर्ग के तलघर में फूट रहा है असन्तोष
कश्मीर में सामूहिक कब्रों ने किया भारतीय राज्य को बेपर्द
मर्डोक मीडिया प्रकरण के आईने में भारतीय मीडिया
अमेरिकी ऋण सीमा “संकट”: विभ्रम और यथार्थ
यू आई डी योजना – जनता के नाम पर पूँजी और उसकी राज्यसत्ता का आधार मजबूत करने की चाल
‘भारत छोड़ो आन्दोलन’: भारतीय जनता की क्रान्तिकारी विरासत का अभिन्न अंग
दलाली और परोपकार का धन्धा
परिवहन समस्या और पूंजीवादी व्यवस्था
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मई जुन 2011
June 30, 2011
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पश्चिम बंगाल: भारतीय वामपन्थ का संकट या संशोधनवादी सामाजिक फासीवाद से खुले प्रतिक्रियावादी पूँजीवाद की ओर संक्रमण?
अण्णा हज़ारे का भ्रष्टाचार-विरोधी अभियान और मौजूदा व्यवस्था से जुड़े कुछ अहम सवाल
फार्बिसगंज पुलिस दमन: बर्बरों के “सुशासन” का असली चेहरा
मानव ज्ञान का चरित्र और विकास
टेरी ईगलटन की त्रासद आध्यात्मिकता की आध्यात्मिक त्रासदी
पूंजीवादी न्याय और मानवता के प्रचार का झूठा, अधूरा और वर्ग-केन्द्रित चरित्र
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मार्च अप्रैल 2011
April 30, 2011
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बजट 2011-2012: पूँजीपतियों का, पूँजीपतियों के द्वारा, पूँजीपतियों के लिए
अण्णा हज़ारे का भ्रष्टाचार-विरोधी अभियान और मौजूदा व्यवस्था से जुड़े कुछ अहम सवाल
पूँजीवादी न्याय-व्यवस्था का घिनौना सच
पानी का निजीकरण: पूँजीवादी लूट की बर्बरतम अभिव्यक्ति
नाभिकीय ऊर्जा की शरण: देशहित में या पूँजी के हित में?
नयी शती में चित्रकला का भविष्य
बाबा रामदेव का स्वाभिमान और खाता-पीता मध्यवर्ग
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जनवरी फरवरी 2011
February 28, 2011
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अरब जनउभार के मायने
बिनायक सेन: पूँजीवादी न्याय की स्वाभाविक अभिव्यक्ति
राष्ट्र खाद्य सुरक्षा कानून मसौदा: एक भद्दा मज़ाक
लियू जियाओबो को शान्ति का नोबेल: साम्राज्यवाद की सेवा का मेवा
प्रशासनिक सेवा की तैयारी में लगे “होनहारों” के सपने-कामनाएँ, व्यवस्था की ज़रूरत और एक मॉक इण्टरव्यू
प्रो. प्रभात पटनायक के नाम एक खुला पत्र
प्रो. लालबहादुर वर्मा का प्रेम-चिन्तन
मिस्र के बहादुर नौजवानों को सलाम!
आस्था मूलक दर्शनों से विज्ञान की मुठभेड़ सतत् जारी है
आतंकवादी हिन्दू नहीं संघ है
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जुलाई दिसम्बर 2012
केजरीवाल के “आन्दोलन” से किसको क्या मिलेगा?
कौन जिम्मेदार है इस पाशविकता का? कौन दुश्मन है? किससे लड़ें?
स्वास्थ्य तन्त्र में अमानवीयता पूँजीवाद का आम नियम है
और कितने बेगुनाहों की बलि के बाद समझेंगे हम? आपस में लड़ना छोड़, अपने असली दुश्मन को पहचानना ही होगा!!
बाल ठाकरे: भारतीय फासीवाद का प्रतीक पुरुष
फैजाबाद में हुए साम्प्रदायिक दंगों के निहितार्थ
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मारुति सुजुकी के मज़दूरों का संघर्ष और भारत के ‘‘नव-दार्शनिकों” के “अति-वामपन्थी” भ्रम और फन्तासियाँ
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जस्टिस काटजू का विधवा-विलाप और भारतीय मीडिया की असलियत
मानवद्रोही-मुनाफ़ाखोर व्यवस्था का शिकार बनता मासूम बचपन
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