‘‘मुल्ला ख़ूबै स्वांग रच्यौ’’
श्रीराम सेने की ‘राष्ट्रभक्ति’ का एक और नमूना

आशीष

अपनी पहचान और ज़मीन तलाशती हिन्दुत्ववादी ताकतें लगातार अपने पुराने हरबे-हथियार का नये-नये ढंग से इस्तेमाल करती नज़र आ रही हैं। हिटलर के प्रचारमन्त्री गोयबल्स की भाषा में झूठ पर झूठ बोलना और इतनी बार बोलना कि लोग भ्रमित हो जायें। वे मानने लगें कि हो न हो ये ‘सच’ ही कह रहे होंगे। और यही नहीं, ये अपने स्वनिर्मित ‘झूठ’ को सच्चाई का लिबास पहनाने की ख़ातिर बेतरह किसिम से षड्यन्त्रकारी योजनाएँ बनाते मिलते हैं।

जनवरी, 2012 की पहली सुबह जब देश-दुनिया नये साल के जश्न में मशगूल था, कि उसी दरम्यान ‘राष्ट्रभक्तों’ की यह मण्डली ‘राष्ट्र’ के नाम कुछ कर गुजरने को बेहद उतावली दिखी। ‘राष्ट्र भक्त मण्डली’ से मेरा मतलब है श्रीराम सेने सरीखा एक गिरोह, जिनके शालीनतापूर्ण व्यवहार में पब में घुसकर महिलाओं से बदतमीज़ी करना, कलाकृतियों की तोड़-फोड़, किताबें जलाना और भी कई किसिम की राष्ट्रसेवा के क्रियाकलाप हैं, जिनसे हमारे समाज का ज़हीन और संवेदनशील तबका बख़ूबी वाकिफ़ है। इनके राष्ट्र की परिभाषा कुछ अलग किसिम की है। इनके एजेण्डे में भूख, बेकारी, बदहाली पैदा करने वाली मशीनरी नहीं है। न ही इन सवालों की तफ्तीश में ये जाते हैं। ये राष्ट्र की सेवा किस तरह से करना चाहते हैं? ये राष्ट्र की सेवा किस तरह से करना चाहते हैं उसकी एक ताज़ा मिसाल आपके सामने है।

कर्नाटक के बीजापुर के सिन्दगी में तहसीलदार के कार्यालय पर पहली जनवरी, 2012 को पाकिस्तान का झण्डा फहराता मिला। ठीक अगले दिन बजरंग दल, विहिप और श्रीराम सेना आदि के सिपहसालार ऐसी भयानक साजि़श का पर्दाफाश करने सड़कों पर उतर पड़े। जगह-जगह बन्द का आयोजन। प्रदर्शन की शुरुआत करने लगे। इस पूरे मामले को सनसनीखेज़ और उत्तेजक बनाने के लिए इनके मुखारविन्द तयशुदा नारों और जयकारों के लिए खुल गये। माहौल में गरमी लाने की भरपूर कोशिश की गयी। सुरक्षा बलों पर पत्थरबाज़ी! पुलिस अधिकारियों से दो-दो हाथ करने को आतुरता! हो भी क्यों न भारत माता के प्रति इनके अन्दर की अगाध श्रद्धा उछाले मार-मारकर बाहर आना चाहती थी!

सड़कों पर उतरे इन बाँके लालों ने माँग रखी कि सरकारी दफ्तर पर पाकिस्तानी झण्डा फहराने की साजि़श का परदाफ़ाश किया जाये, दोषियों को गिरफ्तार किया जाये। एकदम दुरुस्त बात है! सरकारी इमारत पर पाकिस्तानी झण्डा? आखि़र क्यों? भाई, सरकारी इमारत कोई खेल का मैदान तो है नहीं कि किसी भी देश का झण्डा सौहार्द प्रदर्शन हेतु फहरा दिया जाये!

sri ram sena bijapur_protest

ख़ैर! बात इनकी बनी-बनायी योजना के तहत आगे बढ़ती कि इनका खेल ही बिगड़ गया या यूँ कहें कि इनके बने-बनाये तूमार की हवा महज़ एक सूचना ने फुसफुसा के बाहर कर दी। आनन-फानन में हुई पुलिसिया जाँच-पड़ताल में पता चला कि इस सारे कारनामे के पीछे कोई और नहीं बल्कि इनके ही सगे-सहोदर हैं। इस साजि़श के लिए पकड़े गये छहों धुरन्धर श्रीराम सेने के ही निकले। यही नहीं जाँच में यह भी पता चला कि फहराया गया पाकिस्तानी झण्डा गिरफ्तार आरोपियों में से ही एक के घर में तैयार किया गया था!

ये लाइने पढ़ते हुए हो सकता है आपको भी भगवतीचरण वर्मा की कहानी ‘दो बांके’ सहसा स्मरण में आ गयी हो कि फर्जी भौकाल गाँठते इन वीर-बाँकुरों की असलियत क्या है? हो न हो आपके मुँह से यही पंक्ति प्रस्फुटित हो कि ‘‘मुल्ला ख़ूबै स्वांग रच्यौ’’।

सनद रहे यह कोई पहला खुलासा नहीं है। जब इन ‘राष्ट्र भक्तों’ की पोल खुली हो। न ही यह पहली बार है जब इनके ठिकानों से नकली दाढ़ी, टोपी ओर बुर्के बरामद हुए हों। जाहिर-सी बात है ये इन मुस्लिम पोशाकों का इस्तेमाल नाटक मण्डली में नहीं करते होंगे, बल्कि अपने पोशीदा इरादों को अमली जामा पहनाने के लिए ही इन पोशाकों का इस्तेमाल करते होंगे।

इन तथ्यों से गुज़रते हुए हमारी आँखों के सामने अनायास अजमेर शरीफ, मक्का मस्जिद, मोडासा आदि जगहों पर हुए बम विस्फोट या दंगा-फसाद की स्मृति ताज़ा हो जाती है। मानो वे अनगिनत लोग हमसे सवाल कर रहे हों कि हमारी मौतों के जि़म्मेदार ख़ूँखार बघनखों के पंजे कब उखाड़ोगे? क्या उन्हें पहचानते भी हो? वेश-भूषा में परम आनन्द की तलाश करते कुछ और ही दिखते हैं। स्वामी असीमानन्द, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, कैप्टन पुरोहित व प्रमोद मुतालिक महज़ कुछ चेहरे भर नहीं हैं। ये वही हैं जो सांस्कृतिक शुचिता के नाम पर महिलाओं के साथ अपमानजनक व्यवहार करते हैं। तर्कसम्मत विचारों को ले जाने वाले माध्यमों को अपने ‘वीरत्व’ का निशाना बनाते हैं, तो वहीं नेपथ्य से बहुसंख्यक आबादी को मूल मुद्दों से भटकाने के लिए सुनियोजित कार्ययोजना अमल में लाते हैं। गुजरात 2002 की भयावह नरहत्या इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। अपने इन्हीं तरीकों से ‘राष्ट्र आराधना’ करते ये ‘राष्ट्र भक्त’ इस देश को न जाने किस गौरवशाली अतीत में ले जाने को उतारू हैं। पर इतिहास गवाह है कि जब मेहनतकश अवाम जागती है, लामबन्द होती है तब इन प्रतिक्रियावादी शक्तियों के साथ वही बर्ताव करेगी जैसा हिटलर और उनके आर्यत्व-श्रेष्ठता के साथ किया था।

ये समस्त प्रतिक्रियावादी ताकतों की एक पहचान सर्वव्यापी है। ये झुण्ड में पौरुष दिखाते हैं। इनकी कायराना हरकत इस ताज़ा घटना में भी देखने को मिली। बीजापुर में सड़कों पर प्रदर्शन के दौरान बहुमुखी हिन्दुत्ववादी एक साथ जयघोष कर रहे थे। इनके सारे मुखौटे एकजुट थे, पर जैसे ही इनकी असलियत खुलकर सामने आ गयी, ये सब हर बार की तरह मैं नहीं-मैं नहीं, कहकर अपना-अपना दामन पाक-साफ बताने में लग गये। श्रीराम सेना के कर्ताधर्ता प्रमोद मुतालिक बयान देने लगे कि यह गिरफ्तारी श्रीराम सेना को बदनाम करने के लिए की गयी है और पकड़े गये सभी युवक ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के सदस्य हैं। वैसे तो आर.एस.एस. इस मामले पर अपने मुँह पर टेप चिपका के बैठ गयी है, अगर बोली तो मेरी मानो यही कहेगी कि आर.एस.एस. एक सांस्कृतिक संगठन है! ऐसे राष्ट्रविरोधी कुकृत्य का हम कतई समर्थन नहीं करते! यह राष्ट्र विरोधियों की सोची समझी साजिश है! आदि-आदि। यह गोयबल्सीय भाषा शैली का सुन्दर समन्वय कब तक करते रहेंगे। जब तथ्य इनके चेहरे पर पुते नकाब को बारम्बार खुरच रहे हों!

इस घटना को ज़रा इस निगाह से भी देखें कि गर समय रहते इन साजि़शकर्ताओं की निशानदेही नहीं हो पाती तो क्या हुआ होता! सहज कल्पनीय है कि बीजापुर में नये साल की नयी सुबह ख़ून से तरबतर होती। ‘राष्ट्रभक्ति’ के अलमबरदारों को तथाकथित पड़ोसी मुल्क और अल्पसंख्यक जमात पर इस तोहमत को मढ़ने का मौका मिलता। ये लगातार सुर्खि़यों में आते। मीडिया उत्तेजक सामग्री के बतौर इस ख़बर को बेच रहा होता। कई बार की तरह इस बार भी प्रशासन व मीडिया छूटते ही किसी मुस्लिम आतंकवादी संगठन का नाम इस साजि़श से जोड़ देता। रातों-रात दाढ़ी-टोपी वाले कुछ लोगों का स्केच जारी हो जाता। मक्का मस्जिद और दिल्ली हाईकोर्ट पर हुए विस्फोट की तरह पूछताछ के लिए कुछ को पकड़कर अन्दर ठूँस दिया जाता। और तब यह मीडिया क्या यूँ ही चुप्पी साधे बैठी रहती, जैसे अब बैठी रही है। शायद नहीं। हम जानते हैं कि मीडिया बहुसंख्यक आबादी से जुड़े घटनाक्रम पर थोड़ा झिझककर राय रखती है। ज्यादा पुरानी बात नहीं विगत साल सितम्बर माह में ही जब दिल्ली हाईकोर्ट के गेट पर विस्फोट हुआ था। विस्फोर्ट की घटना घटित होने के बाद दृश्य-श्रव्य माध्यमों से घटना का प्रस्तुतीकरण ऐसा किया जा रहा था, मानो इसके लिए कोई खास समुदाय ही जि़म्मेदार है। धमाके की जाँच में जुटी जाँच एजेंसियों ने बिना किसी सुबूत के मिले ही ‘स्केच’ जारी कर दिया। आनन-फानन में पता चला कि पहला ई-मेल आतंकवादी संगठन हूजी की तरफ़ से आया है, बाद में पता चला वह ईमेल जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ से आया था। इसी मामले में दूसरा ईमेल गुजरात के अहमदाबाद से आया था। बताया गया इसमें मनु नाम के युवक का नाम सामने आया है। इस युवक के बारे में न तो मीडिया ने चर्चा की न ही प्रशासन ने। इसी मामले में एक ई-मेल के बारे में बताया गया कि ‘छोटू मिनानी’ के नाम से ‘इण्डियन मुजाहिद्दीन’ ने भेजा है। जाँच उपरान्त पता चला यह मेल पश्चिम बंगाल व झारखण्ड की सीमा पर स्थित पाकोड़ नामक स्थान से भेजा गया था। उसका नाम शनि शुक्ला बताया गया। और अख़बार में ख़बर बनी कि ‘मजाक में ई-मेल भेजने के सिलसिले में युवक को गिरफ्तार किया गया।’ वहीं यह भी बताया गया कि यह चौदह साल का नाबालिग है। वहीं इसी मीडिया में किश्तवाड़ से पकड़े गये दोनों मुस्लिम लड़कों के नाबालिग होने का जि़क्र नदारद था। वहीं उन पर आरोप बना कि इण्टरनेट के माध्यम से धमकी भरा ई-मेल भेजा। तो यह है मीडिया की धर्म-निरपेक्षता!

पूँजीवादी समाज व्यवस्था में हर चीज़ माल है। ख़बर भी एक माल है। ऐसी ख़बर जो बहुसंख्यक तबके के बीच ज़्यादा कीमत देगी उसी हिसाब से ख़बरों का चयन और प्रस्तुतीकरण किया जाता है और सत्ता व्यवस्था में गद्दी का खेल खेलने वाली चुनावी पार्टियाँ वोटों की बिसात पर अपने मोहरे सजाती हैं। वहीं दूसरी तरफ़ अल्पसंख्यक तबके के बीच असुरक्षाबोध पैदा करके भयदोहन करती हैं तो बहुसंख्यक आबादी को ग़ैर जरूरी मुद्दों पर केन्द्रित करने की कोशिश करती मिलती हैं।

असल में बहुसंख्यक तबके के बीच उभरती कट्टरपन्थी ताकतें ठहरावग्रस्त पूँजीवादी मशीनरी के नासूर हैं जो आम जन के पिछड़े मूल्य मान्यताओं को उभारने और व्यवस्थाजन्य मुद्दों से किनाराकशीं करके लोगों को दिग्भ्रमित करने का काम करती है। एक तरह से ये मौजूदा लूटखोर व्यवस्था की पाली-पोसी काली ताकतें हैं जिनका इस्तेमाल अपने संकटों से फौरी राहत पाने के लिए ये करती रहती हैं। चूँकि मुनाफ़े पर टिकी यह मशीनरी लगातार मुनाफे की हवस में बेरोज़गारी-भुखमरी पैदा करती रहती हैं। ज्यों-ज्यों पूँजी संकेन्द्रित होती जाती है व्यापक आबादी का कंगालीकरण बढ़ता जाता है। अब व्यापक आबादी अपने बुनियादी हकों को लेकर अपने सहयोगी वर्गों के साथ इस व्यवस्था को ही कटघरे में खड़ी करे, अपने तकलीफों के कारणों को जानने की कोशिश करें। यह चीज़ व्यवस्था के लिए ख़तरनाक हो सकती है – या यूँ कहें कि यह व्यवस्था व्यापक जन की आत्मिक-भौतिक जरूरतों को पूरा कर पाने में अक्षम है। अपनी अक्षमता को ढाँकने-पोतने के लिए भी इन काली ताकतों का सिस्टम समय-बा-समय इस्तेमाल करता है।

अब ज़रा इसी खुर्दबीन से हिन्दूवादी संगठनों और उनकी चुनावी पार्टी भाजपा के बारे में विचार किया जाये तो कुछ बातें बेहद स्पष्ट नज़र आने लगती हैं। भाजपा शासित अन्य प्रदेश इस समय अपने एजेण्डे की प्रयोग स्थली बनाये हुए हैं। खासकर गुजरात की मोदी सरकार उसकी असलियत तो जगजाहिर ही है। दूसरी प्रयोगभूमि मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चैहान की सरकार है। ये बच्चों को बचपन से ‘गीता पाठ’ और सूर्य नमस्कार सिखाते-पढ़ाते सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की शिक्षा देने में लगे हैं, वहीं इसी प्रदेश में सरकारी नीतियों के शिकार डेढ़ दशक में करीब 16,000 किसानों ने कर्ज़ में डूबकर मौत को गले लगा लिया। घोटाले व भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबी सरकार पापमोचन हेतु यज्ञ और उपवास की नौटंकी करती नज़र आती है।

अगर हम कर्नाटक की बात करें तो यहाँ हिन्दूवादी ताकतें अपनी खोयी ज़मीन को वापस पाने की जद्दोजहद में लगे हैं। कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त सन्तोष हेगड़े की रिपोर्ट के बाद येदियुरप्पा को अपना मुख्यमन्त्री पद त्यागना पड़ा। जबकि रेड्डी बन्धु खनन मामले में हुए घोटाले में डूबकर अपनी पर्याप्त थुक्का-फजीहत करवा चुके हैं। ऐसे में खिसकता जनाधार संघ परिवार को सता रहा है। उन्हें लगता है गर ऐसे ही हालात रहे तो आगामी विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी वोटों की बाज़ीगरी में पिछड़ जायेगी। हो न हो उनके लग्गू-भग्गू संगठन दंगों की बिसात पर वोटों की फसल काटने के लिए तरह-तरह की योजना बनाने में मुब्तिला हैं। सिन्दगी में तहसीलदार के कार्यालय पर पाकिस्तानी झण्डा फहराना तो महज़ एक नमूना भर है।

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-फरवरी 2012

 

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