Tag Archives: बेर्टोल्ट ब्रेष्ट

कविता : जब फ़ासिस्ट मज़बूत हो रहे थे / बेर्टोल्ट ब्रेष्ट Poem : When the Fascists kept getting stronger / Bertolt Brecht

फैक्टरियों और खैरातों की लाइन में
हमने देखा है मजदूरों को
जो लड़ने के लिए तैयार हैं
बर्लिन के पूर्वी जिले में
सोशल डेमोक्रेट जो अपने को लाल मोरचा कहते हैं
जो फासिस्ट विरोधी आंदोलन का बैज लगाते हैं
लड़ने के लिए तैयार रहते हैं
और चायखाने की रातें बदले में गुंजार रहती हैं

लोकप्रियता और यथार्थवाद / बेर्टोल्ट ब्रेष्ट (1938)

अगर हम एक ज़िन्दा और जुझारू साहित्य की आशा रखते हैं जो कि यथार्थ से पूर्णतया संलग्न हो और जिसमें यथार्थ की पकड़ हो- एक सच्चा लोकप्रिय साहित्य- तो हमें यथार्थ की द्रुत गति के साथ हमकदम होना चाहिए। महान मेहनतकश जनता पहले से ही इस राह पर है। उसके दुश्मनों की कारगुजारियाँ और क्रूरता इसका सबूत हैं।

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट – दुख के कारणों की तलाश का कलाकार

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की कला की मुख्य प्रवृत्ति पूँजीवादी नज़रिये पर तीखा प्रहार करना है। अपने नाटकों और कविताओं में इन्होंने शिक्षात्मक पहलू के साथ ही कलात्मकता के बेहतरीन मानदण्डों को बरकरार रखा। अपने नाटकों में ब्रेष्ट ने दुखों का केवल बख़ान करके ही नहीं छोड़ दिया, बल्कि उनके कारणों की गहराई तक शिनाख़्त भी की। ब्रेष्ट ने अपने नाटकों में रूप और अन्तर्वस्तु दोनों ही दृष्टियों से एक अलग सौन्दर्यशास्त्र का अनुपालन किया, जिसे इन्होंने ‘एपिक थिएटर’ का नाम दिया।

कविता – लेनिन जिन्दाबाद / बेर्टोल्ट ब्रेष्ट Poem – The Unconquerable Inscription / Bertolt Brecht

तब जेल के अफ़सरान ने भेजा एक राजमिस्त्री।
घण्टे-भर वह उस पूरी इबारत को
करनी से खुरचता रहा सधे हाथों।
लेकिन काम के पूरा होते ही
कोठरी की दीवार के ऊपरी हिस्से पर
और भी साफ़ नज़र आने लगी
बेदार बेनज़ीर इबारत –
लेनिन ज़िन्दाबाद!
तब उस मुक्तियोद्धा ने कहा,
अब तुम पूरी दीवार ही उड़ा दो!

कविता : एस.ए.* सैनिक का गीत / बेर्टोल्ट ब्रेष्ट Poem : Song of the S.A. Man / Bertolt Brecht

और मार्च करते हुए मेरे साथ था शामिल
जो था उनमें सबसे मोटा
और जब मैं चिल्लाया ‘रोटी दो काम दो’
तो मोटा भी चिल्लाया।
टुकड़ी के नेता के पैरों पर थे बूट
जबकि मेरे पैर थे गीले
मगर हम दोनों मार्च कर रहे थे
कदम मिलाकर जोशीले।
मैंने सोचा बायाँ रास्ता ले जायेगा आगे
उसने कहा मैं था ग़लत
मैंने माना उसका आदेश
और आँखें मूँदे चलता रहा पीछे।

कौयनर महाशय की कहानियाँ

एक आदमी जिसने ‘क’ महाशय को काफी लम्बे अरसे से नहीं देखा था, मिलने पर उनसे कहा-‘आप तो बिल्कुल भी नहीं बदले।’

‘अच्छा’। महाशय ‘क’ ने कहा और पीले पड़ गये।

उद्धरण

लेखन के जरिये लड़ो! दिखाओ कि तुम लड़ रहे हो! ऊर्जस्वी यथार्थवाद! यथार्थ तुम्हारे पक्ष में है, तुम भी यथार्थ के पक्ष में खड़े हो! जीवन को बोलने दो! इसकी अवहेलना मत करो! यह जानो कि बुर्जुआ वर्ग इसे बोलने नहीं देता! लेकिन तुम्हे इजाजत है। तुम्हे इसे बोलने देना चाहिये। चुनो उन जगहों को जहां यथार्थ को झूठ से, ताकत से,चमक-दमक से छुपाया जा रहा है। अन्तरविरोधों को उभारो!

लघुकथा : शार्क और छोटी मछलियां / बेर्टोल्‍ट ब्रेष्ट Short-story – If Sharks were Men / Bertolt Brecht

धर्मं भी अवश्य होगा…। यह उन्हें सिखाएगा कि सच्‍चा जीवन शार्कों के उदर से ही आरम्भ होता है और यदि शार्क मनुष्य हो जाएं तो छोटी मछलियों आज की तरह समान नहीं रहेगी, उनमें से कुछ को पद देकर दूसरों से ऊपर कर दिया जाएगा । कुछ बड़ी मछलियों को छोटी मछलियों को खाने तक की इजाज़त दे दी जाएगी । यह शार्कों के लिए आनन्‍ददायक होगा क्योंकि फिर उन्हें निगलने के लिए बड़े ग्रास मिलेंगे और छोटी मछलियों से से सबसे महत्वपूर्ग जिनके पास पद होगे, वे छोटी मछलियों को व्यवस्थित करेंगी । वे शिक्षक, अधिकारी, बक्से बनाने वाली इंजीनियर आदि बनेंगी। संक्षेप में, समुद्र में संस्कृति तभी होगी जब शार्क मनुष्य के रूप में हो ।