हरियाणा में पंजाबी भाषा के प्रश्न पर कतिपय कॉमरेडों के अज्ञान पर संक्षिप्त चर्चा
कोई भी पहचान या अस्मिता चाहे वह भाषाई हो, क्षेत्रीय हो, जातीय हो, धार्मिक हो या फिर राष्ट्रीय ही क्यों न हो, न तो फूलकर कुप्पा होने की चीज़ होती है और न ही शर्मिन्दगी से मुँह छुपा लेने की चीज़ होती है। ये पहचानें व्यक्ति को पूर्व प्रदत्त होती हैं। मार्क्सवाद का मानना है कि ये अपने आप में अन्तरविरोध का स्रोत या स्थल नहीं होतीं। ये वर्ग अन्तरविरोधों की ग़लत समझदारी या मिसआर्टिक्युलेशन के कारण अन्तरविरोध का स्रोत बन जाती हैं।