आज भी उतना ही प्रासंगिक है ‘जंगल’ उपन्यास
अरविन्द
‘जंगल’ अप्टन सिंक्लेयर द्वारा लिखित वह रचना है, जिसने 20वीं सदी के शुरुआती दौर के अमेरिकी समाज पर गहरा प्रभाव डाला। यह ‘जंगल’ ही था जिसने अमेरिका में एक आन्दोलन-सा खड़ा कर दिया था। 1852 में प्रकाशित हैरियट बीचर स्टो के उपन्यास ‘अंकल टाम्स केबिन’ के बाद यह पहली पुस्तक थी जिसने इतना गहरा प्रभाव छोड़ा था। इस उपन्यास का धारावाहिक प्रकाशन ‘अपील टू रीज़न’ नामक पत्रिका में 1905 में शुरू हुआ था। कुछ ही अंकों बाद पत्रिका की प्रसार संख्या 1,75,000 तक पहुँच गयी थी। अप्टन सिंक्लेयर ऐसे रचनाकार थे जिन्होंने वर्गीय पक्षधरता के साथ मुनाफे पर आधारित व्यवस्था की विसंगतियों-कुरूपताओं तथा मानवद्रोही चरित्र को अपनी लेखनी के द्वारा अधिकाधिक उघाड़ने का काम किया। सिंक्लेयर ने अपनी लेखन कला का इस तरह इस्तेमाल किया कि वह जनता के बीच एक मिसाल बन गये। सिंक्लेयर के ही शब्दों में “सर्वहारा लेखक एक उद्देश्य से लैस लेखक होता है; ‘कला, कला के लिए’ के बारे में वह इतना ही सोचता है जितना एक डूबते हुए जहाज के केबिन में बैठा कोई आदमी एक खूबसूरत चित्र बनाने के बारे में सोचेगा; वह पहले किनारे पहुँचने के बारे में सोचता है – फिर कला के लिए काप़फ़ी समय होगा।“
‘दि जंगल’ उपन्यास एक लिथुआनियन प्रवासी मज़दूर यूर्गिस रुदकस की कहानी है। वह अपने पिता अन्तानास रुदकस, अपनी मंगेतर ओना, ओना की चचेरी बहन मारिया बेर्जिन्सकास, उसकी सौतली माँ तेता एल्जबियेता, भाई योनास व एल्जबियेता के छह बच्चों के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका में सुन्दर सुनहरे सपने लेकर आता है। यूर्गिस ऊर्जा व जोश से लबरेज़ एक नौजवान था जिसके अन्दर जीवट हिलोरे ले रहा था। यूर्गिस ने सोचा था कि वह अमेरिका में अमीर बन जायेगा। उसने सुन रखा था कि इस देश में अमीर हो या ग़रीब, हर आदमी आज़ाद था और अपनी गाढ़ी कमाई भ्रष्ट अफ़सरों को देने के लिए बाध्य नहीं था। उसने सोचा था कि वह भी शान से जियेगा। हर जिन्दादिल इंसान की तरह उसे अपनी बाजुओं पर भरोसा था। यूर्गिस व उसका परिवार शिकागो के स्टाकयार्ड नामक इलाके में पहुँचा क्योंकि यहीं पर योनास का दोस्त योकुबास जेदविलास रहता था, जिसने उसे अमेरिका के बारे में बताया था। यूर्गिस रुदकस को जल्दी ही स्टाकयार्ड के मांसपैकिंग कारख़ाने में काम मिल जाता है। इसके साथ-साथ मारिया तथा योनास को भी वहीं पर अलग-अलग ढंग का काम मिल जाता है। यूर्गिस के पिता अन्तानास भी काम की तलाश में निकल पड़े, तथा उन्होंने फोरमैन की जेब गर्म करके काम पा लिया। बच्चों की भी पढ़ाई के बारे में सोचा गया तथा ओना को घर पर ही रह कर एल्जबियेता की काम में मदद करनी थी। जल्दी ही उन्होंने अपना मकान भी ले लिया, जो किश्तों पर था। उन्हें अपने सपने साकार होते दिखे।
इन लोगों को जहाँ काम मिला था उन कुख्यात कारख़ानों में सिर्फ मांस पैकिंग ही नहीं होती थी बल्कि पशुओं की चिल्लाहट को छोड़कर उनके हर अंग को “उपयोगी” बनाकर बेच दिया जाता था, गले-सड़े मांस को भी कैमिकल मिलाकर बेच दिया जाता था। यहाँ पर यूर्गिस ने बहुत बड़े पैमाने पर इकट्ठे हुए पूँजी और मानव श्रम के योग को देखा। उसने श्रम के सामाजीकरण को देखा। यहाँ एक साथ हज़ारों लोग काम करते थे। उसने उत्पादकता बढ़ाने वाले हथकण्डे भी देखे जिनके द्वारा मज़दूरों की ताकत का आखि़री कतरा तक निचोड़ लिया जाता था। यहाँ यूर्गिस को मज़दूर यूनियनों के बारे में भी पता लगा जो मज़दूरों के हितों के लिए आवाज़ उठातीं थीं। यहीं से यूर्गिस का सामना मुनाफे की दुनिया से होना शुरू हुआ। इतनी मेहनत करके जिस तरक्की के बारे में वह इतनी सरलता के साथ सोचता था, उसकी असलियत उसके सामने जल्द ही आ गयी।
“युर्गिस यहाँ यह सोचकर आया था कि वह उपयोगी काम करेगा और कुशल मज़दूर बनकर तरक्की करेगा लेकिन जल्दी ही उसे अपनी ग़लती का एहसास हो जायेगा, क्योंकि पूरे पैकिंगटाउन में अच्छा काम करके कोई भी तरक्की नहीं कर सकता। आप इसे एक नियम मान सकते हैं। अगर आपको पैकिंगटाउन में तरक्की करता हुआ कोई आदमी मिले तो मान लीजिये आपकी मुलाकात किसी घाघ आदमी से हुई है “अपने साथियों के बारे में किस्से गढ़ने वाला और उनकी जासूसी करने वाला आदमी तरक्की करेगा, लेकिन जो आदमी बस अपने काम से काम रखेगा उसे ये लोग ‘रफ्तार बढ़ाकर’ निचोड़ डालेंगे और फिर गटर में फैंक देंगे।“ मारिया, योनास तथा आन्तानाथ की काम करने की स्थितियाँ भी लगभग ऐसी ही थी उन्हीं की नहीं बल्कि उन्हीं जैसे लाखों मज़दूर बिना किसी सुरक्षा साधन के अपना ख़ून-पसीना एक करते थे तथा पशुओं की तरह, ख़ुद भी मौत का शिकार होते थे। जल्दी ही यूर्गिस को पता लगा कि जो मकान उन्होंने किश्तों पर लिया था उसमें भी उनके साथ धोखा हुआ है। जिस कम्पनी ने उन्हें मकान बेचा था, वह कई बार इस मकान को बेच चुकी है, तथा यहाँ पर उनका एक पूरा गिरोह था, जिनका काम लोगों को सब्ज़बाग़ दिखाकर ठगना था। कम्पनी ने यूर्गिस व उसके परिवार को ब्याज़ के बारे में नहीं बताया था और अगर वे किश्त के साथ ब्याज़ नहीं चुकाते तो दिये गये पैसे तथा मकान दोनों से उन्हें हाथ धोना पड़ता। लेकिन हर बार की तरह इस बार भी उन्होंने यहीं सोचा कि हम और कड़ी मेहनत से काम करेंगे ओना तथा एल्जबियेता के बड़े बेटे (जो मात्र 14 साल का था) ने भी काम करना शुरू कर दिया। इसी बीच यूर्गिस और ओना की शादी भी हो गयी, जिसने उन पर करीब 100 डालर का कर्ज चढ़ा दिया। शादी के अगले दिन से ही उन्हें मुनाफे की बेरहम दुनिया से टकराने के लिए काम पर निकलना पड़ा। “उनके सिरों पर अभाव का निर्मम चाबुक लहरा रहा था। शादी की अगली सुबह उसने इन्हें ढूँढ़ निकाला और दिन निकलने से पहले ही उन्हें खदेड़कर काम पर भेज दिया।”
अन्तानास (यूर्गिस का पिता) के काम की भयंकर गन्दी स्थितियों के चलते पैर गलने लगे तथा हरदम रहने वाली सीलन के कारण उन्हें भंयकर खाँसी ने जकड़ लिया तथा ऐसा जकड़ा की ख़ूनी खांसी के एक ज़बरदस्त दौरे ने उनकी जान ही ले ली। अन्तानास पहले व्यक्ति नहीं थे जिनकी जान गयी। सर्दियों में निमोनिया और फ्लू के हमले होते थे जो साल भर भूख व कुपोषण से कमजोर पड़े लोगों को अपना शिकार बनाते थे। लोग बड़ी संख्या में मौत का शिकार हो जाते थे। किन्तु हज़ारों नये बेरोज़गार लोग उनका स्थान लेने के लिए आ जाते थे। बूचड़ख़ानों में काम करने वाले लोगों के पास सुरक्षा के नाम पर दस्तानों जैसा भी कुछ नहीं था छुरियों-चाकुओं से काम करते वक़्त हमेशा कीटाणु जनित् बीमारियों के फैलने के ख़तरे थे। सर्दियों में परिवार को भयंकर तंगहाली का शिकार होना पड़ा, उनके पास न तो जलाने के लिए कोयला था न ही ओढ़ने के लिए पूरे कपड़े थे। इसी प्रकार वे जीवन की निर्मम शर्तों पर जी रहे थे। “वे सारा दिन और सारी रात डर में जीते थे, दरअसल यह जीना नहीं था; इसे तो अस्तित्व बनाये रखना भी मुश्किल से कहा जा सकता था। उन्हें लगता था कि वे बहुत महँगी कीमत चुका रहे हैं। वे सारा समय काम के लिए तैयार थे; और जब लोग अपनी पूरी क्षमता के साथ काम करते हो तो क्या उन्हें जीने का भी अधिकार नहीं मिलना चाहिए?” अब घटनाएँ मोड़ लेना शुरू करती हैं। मारिया की नौकरी छूट जाती है तथा ओना को उसकी फैक्टरी की मालकिन तथा फोरमैन के द्वारा उसके तथा उसके परिवार के अस्तित्व को बचाये रखने के लिए मजबूर किया जाता है कि वह अपनी देह का सौदा करे। इसी दौरान यूर्गिस एक बच्चे का बाप बन गया जिसका नाम यूर्गिस के पिता की याद में अन्तानास रखा गया। यूनास बदहाली से तंग आकर कहीं चला गया क्योंकि अपने हिस्से का ख़र्च देने के बावजूद परिवार में उसको सकून नसीब नहीं हुआ। यूर्गिस काम के दौरान जब एक जानवर से घायल हुआ तो उसे कई दिन के लिए आराम की ज़रूरत पड़ी, किन्तु उसकी जगह पर दूसरा आदमी रख लिया गया, “अब उसे और हज़ारों लोगों की तरह बेरोज़गार होना पड़ा क्योंकि अब वह कमज़ोर तथा निचोड़ लिया गया एक पुर्जा मात्र था।” एल्जबियेता के सबसे छोटे बेटे की बदहाली के चलते मौत हो गयी तथा दूसरे बच्चे अख़बार बेच कर परिवार की मदद करने लगे। जब यूर्गिस को पता चला की कॉनर नामक फोरमैन ने ओना को अपनी हवस का शिकार बनाया तो यूर्गिस का ख़ून खौल उठा। उसने कॉनर की बुरी तरह से पिटाई कर दी जिसके कारण उसे 33 दिन की जेल हुई। इसी प्रकार से ताश के पत्तों की तरह उनके सपने बिखरते चले गये। यूर्गिस यहीं से टूटना शुरू हो गया जेल से छूटने तक उनका मकान भी छीना जा चुका था। वे फिर से किराये के घर में आ गये। वहाँ ओना की कमज़ोरी के कारण दूसरा बच्चा पैदा होते समय मौत हो जाती है। किन्तु यूर्गिस ने अपने पहले बेटे अन्तानास की ख़ातिर एक बार फिर संघर्ष करने की कोशिश की। वह ओना के दफ़नाये जाने से पहले ही काम ढूँढ़ने निकल पड़ा परन्तु उसे “ब्लैक लिस्ट” में डाला जा चुका था, क्योंकि उसने एक फोरमैन को पीटने की जुर्रत की थी। यूनियन के कुछ पुराने साथियों की मदद से उसे हार्वेस्टर के कारख़ाने में काम मिल गया जो नौ दिन बाद तालाबन्दी के चलते छूट भी गया। फिर यूर्गिस ने और अनेक जगह काम ढूँढ़ने की कोशिश की लेकिन हर जगह निराशा ही हाथ लगी। फिर यूर्गिस को एक स्टील कारख़ाने में काम मिलता है। इसी दौरान एक गड्ढे में डूबने से अन्तानास की मौत हो गई। इसने यूर्गिस को बुरी तरह से तोड़ दिया। जीवन के प्रति उसकी आस्था डगमगाने लगी उसकी भावनाएँ ख़त्म हो गयीं। वह घर छोड़कर देहात में चला जाता है। कुछ दिन अवारागर्दी में बिताने के बाद वह फिर से शहर में आ जाता है जहाँ उसे रेलवे सुरंग खोदने का काम मिल गया। वहाँ फिर से एक दुर्घटना ने उसे पंगु बना दिया और यूर्गिस फिर से सड़क पर आ गया जहाँ उस जैसे थके-हारे बहुत से लोग थे जिन्हें मुनाफे की दुनिया ने निचोड़कर समाज से बाहर कर दिया था। यहाँ यूर्गिस भीख माँगने के लिए मजबूर हो गया।
इस प्रकार के उतार चढ़ावों के बीच अमेरिका में चुनाव शुरू हो गये जहाँ यूर्गिस ने डेमोक्रेटिकों तथा रिपब्लिकनों की चुनावी तिकड़में तथा धोखेबाजियाँ देखीं। “और इस तरह यूर्गिस को शिकागो की दुनिया के ऊँचे तबकों की एक झलक मिली। इस शहर पर नाम के लिए जनता का शासन था लेकिन इसका असली मालिक पूँजीपतियों का एक अल्पतन्त्र था। और सत्ता के हस्तान्तरण को कायम रखने के लिए अपराधियों की एक लम्बी-चौड़ी फ़ौज़ की ज़रूरत पड़ती थी। साल में दो बार बसन्त और पतझड़ के समय होने वाले चुनावों में पूँजीपति लाखों डालर मुहैया करते थे जिन्हें ये फ़ौज़ ख़र्च करती थी – मीटिंगें आयोजित की जाती थी और कुशल वक्ता भाड़े पर बुलाये जाते थे और आतिशबाजियाँ होती थीं, टनों परचे और हज़ारों लीटर शराब बाँटी जाती थी। दसियों हज़ार वोट पैसे देकर खरीदे जाते थी। जाहिर है अपराधियों की इस फ़ौज़ को साल भर टिकाये रहना पड़ता था। नेताओं और संगठनकर्ताओं का ख़र्च पूँजीपतियों से सीधे मिलने वाले पैसे से चलता था – पार्षदों और विधायक का रिश्वत के जरिये, पार्टी पदाधिकारियों का चुनाव प्रचार के फण्ड से, वकीलों का तनख्वाह से, यूनियन नेताओं का चन्दे से और अख़बार मालिकों और सम्पादकों का विज्ञापन से…” अन्त में ये सारा ख़र्च आम मज़दूर तथा ग़रीब आबादी से ही वसूल होता था। चुनाव में यूर्गिस ने भी कुछ हाथ मारा तथा पैसे को अमानवीयकरण के कारण जुए, शराब तथा मौज-मस्ती में उड़ा दिया। उसने एल्जबियेता तथा परिवार के बारे में सोचना ही छोड़ दिया था। चुनाव के बाद पैकरों और यूनियनों के बीच हुए समझौते की अवधि ख़त्म हो गई थी। एक तरफ़ मालिक मज़दूरी को लगातार घटाते जा रहे थे तथा छँटनी कर रहे थे वहीं मज़दूर इसके विरोध में हड़ताल का फैसला कर चुके थे। पचास-साठ हज़ार मज़दूरों ने काम छोड़ दिये और फैक्टरियों से बाहर आ गये। देशव्यापी ‘मांस हड़ताल’ शुरू हो गई थी। यूर्गिस हड़ताल के ग़द्दारों में शामिल हो जाता है, पूँजीपति भिन्न-भिन्न तरीकों से मज़दूरों को “हराने” पर आमाद थे। दूर-दूर से मज़दूरों को खींचकर काम के लिए लाया जा रहा था। यूर्गिस ने इस समय महँगे दामों पर काम किया तथा खूब पैसा उड़ाया। यहाँ उसकी मुठभेड़ फिर से कॉनर के साथ हो जाती है तथा यूर्गिस फसाद के आरोप में फिर जेल जाता है तथा सारा पैसा गँवा देता है।
जेल से छूटने के बाद यूर्गिस फिर से समाज से बहिष्कृत आवार और पंगु हो गया था। कई दिनों तक वह ऐसे ही भूख से तड़पते हुए भटकता रहा। कुछ दिनों बाद हड़ताल खत्म हो जाने और आधे हड़तालियों को काम पर वापस लिये जाने के बाद भी बेरोज़गारी के संकट पर कोई फ़र्क नहीं पड़ा। हज़ारों लोग अब भी काम की तलाश में सड़कों पर थे। “सुबह से यूर्गिस काम के लिए भीख माँगता हुआ तब तक चलता रहता जब तक की थककर बैठ नहीं जाता था, वह एक जगह रुक नहीं सकता था – बैचेन आँखों से चारों ओर देखते हुए वह भटकता रहता था। उस विशाल शहर के एक सिरे से दूसरे सिरे तक जहाँ भी वह जाता, उस जैसे सैकड़ों लोग पहले से मौजूद रहते। हर जगह एक ही दृश्य था – काम के लिए भटकते हुए लोगों की भीड़ और उन्हें खदेड़ते हुए सत्ता के हाथ। एक तरह की जेल वह होती है जिसमें आदमी सलाखों के पीछे और उसकी चाहत की हर चीज़ बाहर होती हैं; लेकिन एक तरह की जेल होती हैं जहाँ सारी चीजे़ं सलाखों के पीछे रहती हैं और आदमी बाहर होता है।” एक दिन भटकते हुए यूर्गिस की मुलाकात मारिया से हो गई जिसे हालात ने वेश्यावृत्ति की तरफ़ धकेल दिया था, वही अब परिवार का ख़र्च चला रही थी। मारिया से यूर्गिस को पता चला की एल्जबियेता के बड़े बेटे स्तानिस्लोवास की भी मौत हो गयी जो अभी मात्र चौदह-पन्द्रह साल का लड़का था। यह उस समय हुआ जब वह ग़लती से एक रात फैक्टरी में ही सो गया जहाँ रात को चूहों ने उसे कुतर डाला। मारिया ने यूर्गिस को घर जाने के लिए भी कहा किन्तु अब वह जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।
ऐसे ही एक बार ठण्ड से बचने के लिए यूर्गिस एक हॉल में पहुँच जाता है जहाँ एक सभा हो रही थी, यहाँ यूर्गिस को कुछ भाषण सुनने का मौका मिला। ये सभा सोशलिस्टों की थी जो समाजवाद का प्रचार कर रहे थे। एक आदमी मंच से भाषण दे रहा था।
“मैं आपसे अपील करता हूँ,” उसने कहा “आप चाहे जो भी हों, बशर्ते आप सच्चाई की फिक्र करते हों; लेकिन सबसे बढ़कर मैं मज़दूरों से अपील करता हूँ, जिनके लिए ये भयानक बातें जिनका मैंने अभी जिक्र किया, महज़ भावना की बातें नहीं हैं जिनसे दिल बहलाया जाये और फिर किनारे रखकर भूल जाया जाये – जिनके लिए ये रोज़मर्रा की कठोर और निर्मम सच्चाइयाँ हैं, उनके शरीर पर जकड़ी ज़ंजीरें हैं, उनकी पीठ पर पड़नेवाले चाबुक हैं, उनकी आत्मा को झुलसाने वाले अंगार हैं। मैं आपसे कहता हूँ मेहनतकश लोगो! आप सब मेहनत करने वालों से, जिन्होनें इस देश को बनाया है लेकिन इसे चलानेवाले तमाम परिषदों में जिनकी कोई आवाज़ नहीं! आपसे, जिनकी तकदीर है सिर्फ बोना ताकि फसल दूसरे काट ले जायें; दूसरों के हुक्म पर काम में जुटे रहना और बोझ ढोने वाले पशु से ज़्यादा किसी चीज़ की माँग न करना, बस इतना पाना कि अगले दिन तक जी सकें। मैं आपके पास ही मुक्ति का सन्देश लेकर आया हूँ, मैं आपसे ही अपील कर रहा हूँ—“
यूर्गिस ने महसूस किया की ये बातें सीधे तौर पर उसकी जिन्दगी से जुड़ती थी। उसने जाना की समाजवादी वे लोग थे जिन्हें खरीदा नहीं जा सकता था। यहाँ पर यूर्गिस की और लोगों से भी मुलाकात हुई तथा उसे समाजवाद के बारे बहुत-सी बातें पता लगी। यूर्गिस भी समाजवाद का कायल हो जाता है तथा ख़ुद भी प्रचार के काम जुट जाता है। यहीं पर उपन्यास समाप्त होता है।
‘जंगल’ उपन्यास वह रचना थी जिसने गहरा सामाजिक प्रभाव छोड़ा था। पत्रिका में धारावाहिक छपने के बाद जब पुस्तक के रूप में इसे प्रकाशित करने की बारी आयी तो छह प्रकाशक सीधे तौर पर हाथ खड़े कर गये। जब सिंक्लेयर ने स्वयं इसके प्रकाशन का निर्णय लिया तो डबलसे इसे प्रकाशित करने के लिए तैयार हो गये। 1906 में पुस्तक के रूप में आते ही इस उपन्यास की 1,50,000 प्रतियाँ बिक गयीं तथा अगले कुछ ही वर्ष के भीतर 17 भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका था इतना ही नहीं अमेरिका के तत्कालिक राष्ट्रपति थियोडोर रूज़वेल्ट ने स्वयं ‘जंगल’ उपन्यास पढ़ने के बाद अप्टन सिंक्लेयर से मुलाकात की और तत्काल ही एक जाँच कमेटी नियुक्त की जिसकी रिपोर्ट के आधार पर उसी वर्ष ‘प्योर फूड एण्ड ड्रग्स ऐक्ट’ और ‘मीट इंस्पेक्शन ऐक्ट’ नामक दो कानून पारित हुए तथा मांस पैकिंग उद्योग के मज़दूरों की जीवन-स्थितियों में सुधार के लिए भी कुछ कदम उठाये गये। इस उपन्यास ने मज़दूरों की व्यापक आबादी को ट्रेड यूनियन व समाजवादी आन्दोलनों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। अप्टन सिंक्लेयर ने कई बार ये स्पष्ट किया कि उनका मकसद पैकिंग उद्योग की अस्वाथ्यकर स्थितियों को ही दिखाना नहीं था बल्कि मुख्य तौर पर उजरती गुलामी को कटघरे में खड़ा करना था। उन्होंने बताया कि उपन्यास का उद्देश्य औद्योगिक पूँजीवाद में मेहनतकश स्त्रियों-पुरुषों की अमानवीय स्थितियों का जीवन्त दस्तावेज़ प्रस्तुत करना था। जाहिर है, रूज़वेल्ट द्वारा कुछ सुधार के कदम उठाने से अमेरिका के मज़दूर वर्ग के लिए स्थितियाँ बहुत अच्छी नहीं हो गयीं। लेकिन मज़दूर वर्ग के आन्दोलन और प्रतिरोध और साथ ही मज़दूर वर्ग के भयंकर जीवन के चित्रण के जरिये इस उपन्यास ने वास्तव में मज़दूर वर्ग की राजनीति को आगे बढ़ाया।
सिंक्लेयर ने अपनी और भी रचनाओं के द्वारा लगातार पूँजीवाद को नग्न किया। उनकी प्रमुख रचनाएँ ‘दि मेट्रोपोलिस’ (1908), ‘किंग कोल’ (1917), ‘आयल!’ (1927), ‘बोस्टन’ (1928) ‘दि फ्रिलव्वर किंग’ (1937), ‘नो पैसारान’ (1937) और ‘दि ब्रास चैक’ (1919) आदि थी। यहाँ यह भी बता दें कि सर्वहारा वर्ग और उसके ऐतिहासिक मिशन के प्रति गहरी भावनात्मक निष्ठा, पूँजीवादी शोषण से ज़बर्दस्त घृणा तथा मानवता के सुन्दर भविष्य में गहरी आस्था होने पर भी उनकी विचार प्रक्रिया में अन्त तक अनुभववाद और प्रत्यक्षवाद की रुझानें बनी रही। लेनिन ने कहा था कि वे भावनाओं से समाजवादी हैं पर उनका कोई सैद्धान्तिक प्रशिक्षण नहीं है। उन्होंने राजनीतिक जीवन में भी कई बार अनुभववादी ढंग के काम किये। उन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध में अमेरिका के शामिल होने के पक्ष में अवस्थिति अपनायी, जिसे बाद में उन्होंने अपनी एक ग़लती के रूप में स्वीकार किया। सिंक्लेयर की सोवियत संघ के बारे में कई शंकाएँ थीं। वे जीवन में कई बार उदारवादी तथा सुधारवादी विभ्रमों का शिकार हुए तथा उनसे अनुभववादी ढंग से ही उबरते रहे। वे मार्क्सवाद और वैज्ञानिक समाजवाद की समझ से लैस न होने के कारण कई बार सुधारवादी और सामाजिक जनवादी अवस्थिति अपनाते रहे और अमेरिकी मज़दूर वर्ग का आन्दोलन जिस सुधारवाद, ट्रेडयूनियनवाद, अर्थवाद, संघाधिपत्यवाद और समझौतापरस्ती का शिकार रहा था, उसके शिकार एक हद तक वे भी थे।
अपने तमाम वैचारिक ढुलमुलपन के बावजूद सिंक्लेयर बीसवीं सदी के एक महान यथार्थवादी रचनाकार थे तथा पूरे विश्व भर में उनका एक बड़ा पाठक वर्ग था। स्पष्ट तौर पर उन्होंने मज़दूर वर्ग का पक्ष चुना। तमाम बुर्जुआ कलमघसीट उनकी चर्चा कम से कम करते हैं। इसका एक ही कारण है कि सिंक्लेयर की रचनाएँ आज भी पूँजीपति वर्ग के लिए उतनी ही ख़तरनाक हैं जितनी बीसवीं सदी के शुरू में थीं। आज जबकि साहित्य से मज़दूर वर्ग गायब नज़र आता है तो अप्टन सिंक्लेयर जैसे रचनाकारों की ज़रूरत और ज़्यादा है।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, सितम्बर-अक्टूबर 2011
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