भूलना नहीं है
भूलना नहीं है कि
अभी भी है भूख और बदहाली,
अभी भी हैं लूट और सौदागरी और महाजनी
और जेल और फाँसी और कोड़े।
भूलना नहीं है कि
ये सारी चीज़ें अगर हमेशा से नहीं रही हैं
तो हमेशा नहीं रहेंगी।
भूलना नहीं है कि
अभी भी है भूख और बदहाली,
अभी भी हैं लूट और सौदागरी और महाजनी
और जेल और फाँसी और कोड़े।
भूलना नहीं है कि
ये सारी चीज़ें अगर हमेशा से नहीं रही हैं
तो हमेशा नहीं रहेंगी।
एक दिन लोग
कविता में
उन दिनों की बातें भूतकाल में करेंगे
जो अभी आये नहीं।
इण्टरनेट जैसी तकनोलोजी का इस्तेमाल राज्य हर उस व्यक्ति पर नज़र रखने के लिए करता है जो व्यवस्था के विरुद्ध खड़ा है। हर राज्यसत्ता आज के दौर में खुद को हर प्रकार के जन विरोध के खिलाफ चाक-चौबन्द कर रही है, जनता पर नज़र रख रही है और उन लोगों को चिन्हित कर रही है जो राज्य के दमनतंत्र के खिलाफ़ आवाज़ उठा रहे हैं, जो कानून को ‘तोड़’ रहे हैं, चाहे वह कोई चोर हो, अल कायदा से हो, या मजदूर आन्दोलन से जुड़े हुए कार्यकर्ता हों। चाहे देशभर में मजदूरों का संघर्ष हो, नोएडा में किसानों का विरोध हो, हरियाणा के गोरखपुर गाँव के लोगों द्वारा संघर्ष हो, कश्मीर व उत्तर पूर्वी भारत में जन संघर्ष हो; जो कोई भी पूँजी की लूट के रास्ते में खड़ा है वह राज्य का शत्रु है और उसे राज्य तंत्र कुचलने की कोशिश करता है। इस इलेक्ट्रॉनिक निगरानी तंत्र को और चुस्त बनाने के लिए इसको कानूनी जामा पहनाते हुए भारत सरकार ने 2008 में इंफॉरमेशन तकनोलॉजी अधिनियम (2000) को संशोधित कर पारित किया। सोचने की बात यह है कि इस अधिनियम को बिना किसी सवाल या विरोध के संसद ने पारित किया। यह कानून सरकार को बिना किसी वारण्ट या कोर्ट आर्डर के किसी भी संचार को रिकॉर्ड करने तथा उसका उपयोग करने का अधिकार देता है। यह कानून केंद्रीय, राजकीय व आधिकारिक एजेंसी को किसी भी सूचना या जानकारी को अवरोधित (इण्टरसेप्ट), मॉनीटर व इन्क्रिप्ट (गोपनीय कोड में रूपान्तरित) करने का अधिकार देता है, ‘अगर यह कार्य राष्ट्र के हित में हो या किसी अपराध की जाँच में आवश्यक हो’। पिछले 64 साल का इतिहास स्पष्ट तौर पर बताता है कि राष्ट्र का हित वास्तव में हमेशा राज्य का हित होता है।
अब महज अभिव्यक्ति के नहीं
विद्रोह के सारे खतरे उठाने होंगे,
अगर तुम युवा हो!
हाथ मिलाओ साथी, देखो
अभी हथेलियों में गर्मी है ।
पंजों का कस बना हुआ है ।
पीठ अभी सीधी है,
सिर भी तना हुआ है ।
अन्धकार तो घना हुआ है
मगर गोलियथ से डेविड का
द्वंद्व अभी भी ठना हुआ है ।
दूसरों के लिए प्रकाश की एक किरण बनना, दूसरों के जीवन को देदीप्यमान करना, यह सबसे बड़ा सुख है जो मानव प्राप्त कर सकता है । इसके बाद कष्टों अथवा पीड़ा से, दुर्भाग्य अथवा अभाव से मानव नहीं डरता । फिर मृत्यु का भय उसके अन्दर से मिट जाता है, यद्यपि, वास्तव में जीवन को प्यार करना वह तभी सीखता है । और, केवल तभी पृथ्वी पर आँखें खोलकर वह इस तरह चल पाता है कि जिससे कि वह सब कुछ देख, सुन और समझ सके; केवल तभी अपने संकुचित घोंघे से निकलकर वह बाहर प्रकाश में आ सकता है और समस्त मानवजाति के सुखों और दु:खों का अनुभव कर सकता है । और केवल तभी वह वास्तविक मानव बन सकता है ।
बेशक थकान और उदासी भरे दिन
आयेंगे अपनी पूरी ताक़त के साथ
तुम पर हल्ला बोलने और
थोड़ा जी लेने की चाहत भी
थोड़ा और, थोड़ा और जी लेने के लिए लुभायेगी,
लेकिन तब ज़रूर याद करना कि किस तरह
प्यार और संगीत को जलाते रहे
हथियारबन्द हत्यारों के गिरोह
और किस तरह भुखमरी और युद्धों और
पागलपन और आत्महत्याओं के बीच
नये-नये सिद्धान्त जनमते रहे
विवेक को दफ़नाते हुए
नयी-नयी सनक भरी विलासिताओं के साथ।
आज कैम्पस केन्द्रित छात्र आन्दोलनों की सम्भावनाएँ वस्तुगत तौर पर भी कम हो गयी हैं। छात्र आन्दोलन और नौजवान आन्दोलन के संयुक्त रूप में एक छात्र-युवा आन्दोलन के रूप में संगठित होने की अनुकूल परिस्थितियाँ अब पहले हमेशा से अधिक तैयार हैं और उसे व्यापक मेहनतकश अवाम के पूँजी-विरोधी संघर्षों से सीधे जोड़ देने की सम्भावनाएँ भी पहले से अधिक पैदा हो गयी हैं। पूरे समाज से लेकर कैम्पस तक में आये संरचनागत बदलावों के चलते, क्रान्तिकारी छात्र आन्दोलन के पुराने जड़ीभूत, बद्धमूल साँचे और खाँचे को पूरी तरह से बदल देना होगा और उपरोक्त बदलावों के मद्देनज़र एक नये कार्यक्रम के आधार पर नयी शुरुआत करनी होगी।
भगतसिंह ने जो भविष्य-स्वप्न देखा था, उसे मुक्ति की परियोजना में ढालने और अमली जामा पहनाने का काम अभी भी हमारे सामने एक यक्ष प्रश्न के रूप में खड़ा है। क्या अब भी हम उस आह्वान की अनसुनी करते रहेंगे? क्रान्तिकारी तूफ़ानों में उड़ान भरने के लिए अपने पंखों को तोलने के वास्ते भविष्य मुक्तिकामी युवा दिलों का आह्वान कर रहा है। गर्वीले गरुड़ और तूफ़ानी पितरेल इस आह्वान की अनसुनी क़तई नहीं कर सकते।