ये महज़ हादसे नहीं, निर्मम हत्याएँ हैं
श्वेता
गत 27 फरवरी को उत्तरप्रदेश के सोनभद्र जिले के बिली – मारकुण्डी खनन क्षेत्र के बग्घानाला रोड के निकट अवैध खनन के समय पहाड़ी धँसने के कारण करीब नौ मज़दूरों की मौत हो गयी और दर्जनों मज़दूर गम्भीर रूप से घायल हो गये। जहाँ हादसा होने के बाद स्थानीय प्रशासन को तुरन्त हरकत में आना चाहिए था वहीं उसका रवैया अत्यन्त उपेक्षापूर्ण बना रहा। शवों को मलबे से बाहर निकालने से लेकर राहत कार्य को अंजाम देने तक में प्रशासन ने पर्याप्त कदम नहीं उठाये। ग़ौरतलब है कि मौके पर न तो कोई बड़ा अधिकारी और न ही कोई विशेषज्ञ मौजूद था। घटनास्थल पर मौजूद कुछ प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार खदान संचालक फ़ौजदार सिंह ने दो शवों को आनन-फानन में बाहर निकलवाने के बाद कहीं भिजवा दिया। बाद में घटना की भयावहता को देखते हुए वह ख़ुद भी फ़रार हो गया। घटना के बाद स्थानीय प्रशासन और पुलिस प्रशासन की अकर्मण्यता को देखकर लोगों का गुस्सा जब बढ़ने लगा तो प्रशासन ने जिला अस्पताल को पुलिस छावनी बना दिया ताकि लोगों के आक्रोश को “नियन्त्रित” किया जा सके। इस पूरे मामले में जिन 16 आरोपियों के खिलाफ़ एफ.आई.आर. दर्ज थी वे खुलेआम पुलिस संरक्षण में घूम रहे थे। जब स्थितियाँ बेकाबू होने लगी और बढ़ते जनाक्रोश को रोकना मुश्किल हो गया तब औपचारिकता पूरी करते हुए पुलिस ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया।
ग़ौरतलब है कि इस खदान में सौ फीट की गहराई से पत्थर निकालने का काम किया जा रहा था जिसके कारण पहाड़ी आधारविहीन हो गई और एक विद्युत टावर को साथ लेकर वह धंस गयी। स्थानीय लोगों ने कई बार टावर के नीचे अवैध रूप से हो रहे खनन की शिकायत खनन विभाग के अधिकारियों से की थी। लोगों की शिकायत पर वर्ष 2011 के अगस्त माह में जबलपुर से आये सेफ्टी साइंस के डायरेक्टर ने खनन क्षेत्रों का भ्रमण भी किया था। ताज्जुब तो इस बात का है कि अवैध खनन उनकी नज़रों से ओझल रहा। स्पष्ट है कि विभागीय अनदेखी की कीमत बेगुनाह मज़दूरों को अपनी जान गँवाकर चुकानी पड़ी। करीब पाँच वर्ष पूर्व ओबरा के रासपहाड़ी इलाके में भी एक ऐसा ही हादसा हुआ था जिसमें 11 श्रमिकों की मौत हो गयी थी। ऐसा माना जा रहा है कि बिली-मारकुण्डी क्षेत्र में लीज़ की कानूनी अवधि समाप्त होने के बावजूद करीब 300 खदानों में काम जारी है, इनमें से कुछ खदानों की गहराई तो 100 फीट तक भी है। खदानों में काम करने वाले मज़दूर बमुश्किल ही प्रतिदिन का 100 रुपया कमा पाते हैं, उसका भी एक हिस्सा बेईमान ठेकेदार हड़प ले जाते हैं।
सोनभद्र की यह घटना एकमात्र ऐसी घटना नहीं है। इससे पहले भी देश के अलग-अलग हिस्सों में खदानों में हुई दुर्घटनाओं में हज़ारों बेगुनाह मज़दूरों की जान जा चुकी है। 28 मई 1965 को धनबाद कोयला खदान के ही चसनाला में कोयला खदान के भीतर आग लगने से 375 मज़दूरों की मौत हो गयी थी। इस खदान का मालिकाना ‘इण्डियन आइरन एण्ड स्टील कम्पनी’ के हाथ में था जिसने यह दावा किया था कि खदान में अन्तरराष्ट्रीय मापदण्डों के अनुसार ही काम कराया जाता है। हालाँकि इतने बड़े हादसे ने उन तमाम दावों की पोल खोल कर रख दी। वर्ष 2006 के सितम्बर माह के धनबाद के नगदा क्षेत्र में बटडीह कोयला खदान में 50 मज़दूरों की मौत हो गयी थी। इसी प्रकार की न जाने और कितनी ही घटनाओं में काम के दौरान मज़दूरों की जान जा चुकी है। चूँकि इस सामाजिक-आर्थिक-व्यवस्था में मजदूरों के जीवन का कोई मोल नहीं होता इसलिए यह तमाम हादसे इतिहास के किसी कोने में दफ़न हो जाते हैं।
कुछ और चौंका देने वाले आँकड़ों से तस्वीर और भी साफ हो जायेगी। केन्द्रीय श्रम मन्त्रलय की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रतिवर्ष औसतन 160 श्रमिकों की मौत खदानों में काम करते हुए होती है। ग़ौरतलब है कि इनमें वे आँकड़े शामिल नहीं हैं जिन्हें आधिकारिक तौर पर कहीं दर्ज़ नहीं किया गया है या बड़े ही सुनियोजित तरीव़फ़े से छिपाया गया है। मसलन, वर्ष 2009 में नागपुर के निकट उमरीर खदान में काम के दौरान दो श्रमिकों की मौत हो गई थी जबकि ठेकेदार ने तथ्यों को छिपाकर यह बताया कि यह दोनों मौतें एक सड़क दुर्घटना में हुई थी। राँची के एक उच्च पुलिस अधिकारी के अनुसार केवल झारखण्ड में ही हर साल करीब 150 मज़दूरों की मौतें खदानों में काम करते वक़्त होती है। ‘सेण्टर फॅार साइंस एण्ड एनवायरमेण्ट’ की एक रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान के मकराना खदान में औसतन एक मौत प्रतिदिन होती है।
ऐसी तमाम दुर्घटनाओं का एक मुख्य कारण देश में बड़े पैमाने पर जारी अवैध खनन है जहाँ तमाम नियमों को ताक पर रख दिया जाता है। वर्ष 2010 में देश में लगभग 82,330 अवैध खनन के मामले सामने आये थे। इनमें सबसे अधिक मामले महाराष्ट्र (34,384) में पाये गये थे। वर्ष 2011 में कर्नाटक में जारी अवैध खनन पर लोकायुक्त सन्तोष हेगड़े की एक रिपोर्ट के अनुसार अवैध खनन का पूरा कारोबार नौकरशाही-नेताओं-स्थानीय पूँजीपतियों के संरक्षण में फल-फूल रहा है। अवैध खनन में बेशुमार मुनाफ़ा कमाने की इस लूट में बैंक और सार्वजनिक सेक्टर की कम्पनियाँ भी पीछे नहीं हैं। रिपोर्ट के अनुसार अवैध खनन में एन.डी.एम.सी., अदानी एण्टरप्राइस, जेएसडब्लू स्टील जैसे बड़े नाम भी शामिल हैं। हेगड़े के अनुसार कर्नाटक में केवल 158 खदानों को ही लीज़ प्राप्त है जबकि वहाँ 250 से अधिक क्षेत्रें में खनन का काम जारी है। रिपोर्ट में बताया गया है कि इन खदानों में से कई जगह की गहराई तो 100 फीट तक भी है जबकि सुरक्षा मापदण्डों को ध्यान में रखते हुए ‘इण्डियन ब्यूरो ऑफ मांइस’ ने इस गहराई की अधिकतम सीमा 6 मीटर तय कर रखी है, हालाँकि धड़ल्ले से इन तमाम नियमों की धज्जियाँ उड़ायी जा रही हैं। ऊपर दिये गये तमाम आँकड़े स्पष्ट करते हैं कि अवैध खनन का काम बहुत बड़े पैमाने पर देश के अलग-अलग हिस्सों में जारी है। नेताओं से लेकर स्थानीय पूँजीपतियों और नौकरशाह न केवल इसे खुला समर्थन दे रहे हैं बल्कि अवैध खनन में होने वाले अकूत मुनाफ़े में उनकी भी सुनिश्चित हिस्सेदारी है। इन मामलों के उजागर होने के बाद भी अभी तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गयी है। ख़ैर, इस पूँजीवादी व्यवस्था से ऐसी कोई उम्मीद पालने का वैसे भी कोई अर्थ नहीं है। अहम बात है कि अवैध खनन में धनिकों की एक छोटी आबादी के मुनाफ़े को सुनिश्चित करने के लिए बहुसंख्यक बेगुनाह मज़दूर अपनी जान गँवा रहे हैं। खदानों में हुए हादसों के उदाहरण हमारे सामने हैं। मुनाफ़े पर टिकी पूँजीवादी व्यवस्था में हर चीज़ महज़ एक माल होती है। ग़रीबों की श्रमशक्ति को निचोड़कर उनके दम पर अकूत मुनाफ़ा कमाने वाले धनपतियों के लिए मज़दूरों की जान की कोई कीमत नहीं होती। जाहिर है जिस व्यवस्था के केन्द्र में मुनाफ़ा है वहाँ ऐसे हादसे होते रहेंगे। यह महज़ हादसे नहीं, बल्कि इस अमानवीय व्यवस्था द्वारा की गयी निर्मम हत्याएँ हैं।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मई-जून 2012
'आह्वान' की सदस्यता लें!
आर्थिक सहयोग भी करें!