और कितने बेगुनाहों की बलि के बाद समझेंगे हम? आपस में लड़ना छोड़, अपने असली दुश्मन को पहचानना ही होगा!!
इस वारदात ने एक बार फिर से साबित किया है कि जब आम लोगों को जीविकोपार्जन के साधन हासिल नहीं होते हैं, उन्हें रोज़गार नसीब नहीं होता, और महँगाई से उनकी कमर टूट जाती है तो यह व्यवस्था जनता को आपस में लड़वाती है, जिसमें शासक वर्गो के सभी हिस्सों में पूरी सर्वसम्मति होती है। असली गुनहगार वह व्यवस्था है जो एक शस्य-श्यामला धरती वाले देश में सभी को सहज रोज़गार, शिक्षा, आवास, चिकित्सा और बेहतर जीवन स्थितियाँ और एक खुशहाल इंसानी जिन्दगी मुहैया नहीं करा सकती। ज़ाहिर है, कि ऐसे में व्यवस्था जनता के बीच एक नकली दुश्मन का निर्माण करती है। कभी वह मुसलमान होता है, कभी ईसाई, कभी दलित तो कभी कोई और अल्पसंख्यक समुदाय। हम सभी को समझना चाहिए कि हमारा असली दुश्मन कौन है! मेहनत करने वालों का न तो कोई धर्म होता है और न कोई देश वह जहाँ भी जाता है अपना शोषण करवाने के लिए मज़बूर होता है। साफ है, जब तक इस व्यवस्था को चकनाचूर नहीं कर दिया जाता देश की आम मेहनतकश जनता को मुक्ति नहीं मिल सकती।