वियतनाम युद्ध और ओबामा के झूठ
शिवानी
वियतनाम युद्ध अमेरिकी साम्राज्यवादियों की सबसे बुरी यादों में से एक है। यह पूरे अमेरिकी जनमानस के लिए एक सदमा था जिसमें पहली बार साम्राज्यवादी अमेरिका को स्पष्ट तौर पर समर्पण सन्धि पर हस्ताक्षर करना पड़ा और दुम दबाकर भागना पड़ा। इसलिए, अगर अमेरिकी साम्राज्यवादी हमेशा से वियतनाम युद्ध की कड़वी सच्चाइयों को अपने झूठों से ढँकने और उस राष्ट्रीय अमेरिकी शर्म पर पर्दा डालने की कोशिश करते रहे हैं तो इसमें कोई ताज्जुब की बात नहीं है। इन प्रयासों को अंजाम देने वाले राष्ट्रपतियों में मई महीने में अमेरिका “प्रगतिशील” अश्वेत राष्ट्रपति ओबामा का नाम भी शुमार हो गया।
वाशिंगटन में वियतनाम युद्ध स्मारक पर वियतनाम युद्ध में अमेरिकी हस्तक्षेप के पचास वर्ष पूरे होने के मौके पर ओबामा प्रशासन ने एक 13 वर्षीय लम्बे कार्यक्रम की शुरुआत की। इस कार्यक्रम का मकसद है वियतनाम युद्ध में “साहसिक अमेरिकी हस्तक्षेप” का जश्न मनाना और उस युद्ध का पुनर्वास करना! ग़ौर करें, यह काम एक ऐसा डेमोक्रैट राष्ट्रपति कर रहा है जिसके जीतने में उसके युद्ध-विरोधी रवैये की काप़फ़ी महत्वपूर्ण भूमिका थी। ऐसा क्लिण्टन ने भी किया था। और उसके पहले कई डेमोक्रैटिक राष्ट्रपतियों ने यह स्वाँग रचा है। लेकिन अमेरिकी जनता (जिसे जॉन रीड ने राजनीतिक रूप से दुनिया की सबसे अशिक्षित जनता कहा था) बार-बार यह नाटक देखती है, और बार-बार इस झाँसे में आ जाती है! लेकिन अमेरिका में भी वे सभी लोग जो एक विवेकवान आलोचनात्मक दृष्टिकोण रखते हैं, जानते हैं कि युद्ध का मसला अमेरिकी शासक वर्ग के लिए चयन का मसला नहीं है, बल्कि बाध्यता है। इसलिए चाहे रिपब्लिकन राष्ट्रपति हो या डेमोक्रैट राष्ट्रपति, युद्ध उनकी ज़रूरत है, ताकि साम्राज्यवाद के संकट को वे टाल सकें।
पहले इराक से दुम दबाकर भागने और फिर अफ़गानिस्तान में अपना मुँह पिटाने के बाद, ओबामा के लिए युद्ध के लिए समर्थन बनाये रखना और सेना में अपना आधार बनाये रखने के लिए वियतनाम युद्ध का पुनर्वास करना ज़रूरी था। इसका दूरगामी मकसद अमेरिकी साम्राज्यवाद की सबसे शर्मनाक पराजय वाले युद्ध की सच्चाइयों पर पर्दा डालना और सबसे नापसन्द किये जाने वाले अमेरिकी युद्ध का पुनर्वास करना था – वही लक्ष्य जिसे पूरा करने में अमेरिकी राष्ट्रपतियों की खेप की खेप पिछले चालीस सालों में खप गयी! ओबामा ने वाशिंगटन वियनाम युद्ध स्मारक पर भाषण में कहा, “आप पर अक्सर उस युद्ध का आरोप डाला जाता है जो आपने नहीं शुरू किया। जबकि आपकी अपने देश की बहादुरी के साथ सेवा करने के लिए प्रशंसा की जानी चाहिए।….आपका अपमान किया जाता है, जबकि आपकी उपलब्धियों पर जश्न मनाया जाना चाहिए था – यह एक राष्ट्रीय शर्म है – ऐसा दोबारा कभी नहीं होगा।”
इस भाषण को सुनकर लगता है कि वाकई इंसान में असीमित क्षमताएँ होती हैं, चाहे वह बेशर्म होने का ही मामला क्यों न हो! वैसे भी अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने बेशर्म होने के मामले में हमेशा अपने आपको सबसे आगे रखा है! अब ओबामा के इस दावे के समक्ष वियतनाम युद्ध के कुछ तथ्यों पर नज़र डालिए। वियतनाम युद्ध में 40 लाख वियतनामियों की मौत हुई, जिनमें से 11 लाख सैनिक थे जबकि 29 लाख नागरिक। इसमें बड़ी संख्या औरतों और बच्चों की थी, जिन्हें समूहों में अमेरिकी सैनिकों ने मौत के घाट उतार दिया था। वियतनाम युद्ध के दौरान हुए नरसंहार मानव इतिहास के सबसे बर्बर नरसंहारों में से थे, और उनकी तुलना केवल नात्सियों के कुकृत्यों से की जा सकती है।
लेकिन ओबामा इन सबके बावजूद कहता है कि वियतनाम की प्रमुख लड़ाइयों की तुलना नॉर्मेण्डी और इवो जीमा से की जा सकती है, जो कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मित्र राष्ट्रों की सेना के अंग के तौर पर अमेरिका ने लड़ी थीं। इसके उदाहरण के तौर पर ओबामा ने “रोलिंग थण्डर” मिशन का नाम लिया जिसके दौरान कम्युनिस्ट वियतनाम पर अमेरिकी बमवर्षकों ने 8 लाख 64 हज़ार टन बम गिराये और 90 हज़ार वियतनामियों की हत्या कर दी, जिसमें से 72 हज़ार नागरिक थे। ओबामा इस तथ्य को भी गोल कर गये कि अमेरिकी सेना के भीतर ही वियतनाम युद्ध के खि़लाफ़ ज़बर्दस्त आक्रोश था और “फ्रैगिंग” की घटनाएँ बढ़ रही थीं, जिसमें अमेरिकी सैनिक अपने ही कमाण्डरों पर हथगोले फेंक दे रहे थे। छोटे पैमाने के कई विद्रोह भी सेना की भीतर हुए थे।
इसके बाद ओबामा अपने अगले झूठ पर आता है। उसके अनुसार गुमराह जनता ने वियतनाम युद्ध से लौटे सैनिकों के खि़लाफ़ अच्छा बर्ताव नहीं किया। ज्ञात हो कि 65 प्रतिशत जनता युद्ध और कई सैनिकों द्वारा किये गये अत्याचारों के खि़लाफ़ थी। लेकिन यह भी सच है कि जनता ने लौटने पर उनके साथ कोई बुरा बर्ताव नहीं किया। यह तो स्वयं अमेरिकी सरकार थी जिसने युद्ध से लौटे सैनिकों की उपेक्षा की थी। और आज भी अमेरिकी सरकार यही कर रही है। मध्य-पूर्व से लौटे सैनिकों में रोज़गार का प्रतिशत मात्र 12.1 है; 75 हज़ार सैनिक बेघर हैं; 3 लाख सैनिक मनोरोग से ग्रस्त हैं और उनमें से हर दिन औसतन 18 सैनिक आत्महत्याएँ कर रहे हैं।
ओबामा के झूठ गोयबल्स को मात करने वाले हैं। ओबामा इस समय वियतनाम युद्ध के भूत की झाड़-फूँक में इसलिए लगा है क्योंकि अमेरिकी साम्राज्यवादियों को संकट के दौर में नये युद्धों की ज़रूरत है। इसके लिए उन्हें समर्थन चाहिए। और इसी के लिए जनता के बीच राय तैयार करने का प्रयास किया जा रहा है। अमेरिका में 66 प्रतिशत जनता ने मध्य-पूर्व में अमेरिकी हस्तक्षेप को ग़लत बताया है। ज्ञात हो कि वियतनाम युद्ध के दौरान यह प्रतिशत 65 था। इसलिए अमेरिकी साम्राज्यवादी वक़्त की नज़ाकत को समझते हुए भविष्य की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन यह भी तय है कि साम्राज्यवाद द्वारा थोपे गये ये युद्ध ही दुनिया के तमाम हिस्सों में विस्फोटक स्थिति पैदा करेंगे, जो किसी क्रान्तिकारी नेतृत्वकारी ताकत की मौजूदगी में पूँजीवाद के ताबूत पर कील ठोंकने का काम कर सकती हैं।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मई-जून 2012
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