कहानी : सुबह का रंग भूरा / फ्रांक पावलोफ़
पेशे से मनोविज्ञानी और बाल अधिकारों के विशेषज्ञ फ्रांसीसी लेखक पावलोफ़ ने यह कहानी 1988 में फ्रांस की राजनीति में धुर दक्षिणपंथी ताक़तों के बढ़ते असर के दौर में लिखी थी। एक सर्वसत्तावादी समाज किस तरह से सोच-विचार के तरीकों से लेकर रहन-सहन और जीवनशैलियों की स्वाभाविकता में ख़लल और आख़िरकार डकैती डालकर उन्हें गिरवी बना लेता है, यह कहानी (मूल नाम ‘मातिन ब्रून’) इसका दस्तावेज़ है। स्वेच्छाचारी, निरकुंश और फ़ासिस्ट चरित्र वाला राज्य किस तरह हर सोच, हर पसन्द, जीने की हर शैली को एक ही रंग में ढाल देना चाहता है, यह छोटी-सी कहानी इसे बेहद मारक ढंग से हमारे सामने रखती है। शीर्षक नाज़ी पार्टी की पोशाक ‘ब्राउन शर्ट्स’ की याद दिलाता है।