बाबा रामदेव का स्वाभिमान और खाता-पीता मध्यवर्ग

प्रसेन

बाबा रामदेव भारतीय मध्यवर्ग के एक बहुत बडे़ हिस्से की सींग हैं, नाख़ून हैं, चार भुजाधारी विष्णु हैं, जो एक भुजा से बीमारी का संहार करते हैं, दूसरी भुजा से भ्रष्टाचार का, तीसरी भुजा से स्वदेशी का शंख बजाते हैं तो चौथी भुजा से देश के स्वाभिमान की रक्षा करते हैं। जब बाबा रामदेव यौगिक क्रियाओं के साथ स्वदेशी का शंखनाद करते हुए अवतरित होते हैं और भ्रष्टाचार के खि़लाफ हुंकार भरते हैं, तो ‘बाबा रामदेव की जय हो’ के नाद और करतल ध्वनि में वातावरण डूब जाता है।

अपनी भारत स्वाभिमान यात्रा के दौरान बाबा बात करते हैं शुचिता की, अपरिग्रह की, सत्य वचन की, परिवारवाद से उपर उठकर समूचे संसार को अपना परिवार मानने की। इसके बाद बाबा आसन बदलते हैं और कपालभाति क्रिया करते हुए ज़ोर-ज़ोर से साँस खींचते हुए बात करते हैं योग और आयुर्वेद की महिमा की, विश्वगुरु भारत की गरिमा की रक्षा की। फिर बाबा लोगों के हाथ उठवाते हैं, विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने के लिए उनके 4 जून से शुरू होने बाले “आमरण अनशन” (डरियेगा मत! यह पहले से ही तय है कि इस अनशन से बाबा मरण तक नहीं जायेंगे) में साथ देने का।

हम इस बाबा के सन्दर्भ में आपसे कुछ बातें करना चाहते हैं। नाराज़ मत होइयेगा! दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतन्त्र में हमें भी अपनी बात कहने की आज़ादी है। हम बस बाबा रामदेव के स्वेदशी, भ्रष्टाचार विरोध, अपरिग्रह, शुचिता, सत्य वचन तथा योग व आयुर्वेद द्वारा सभी व्याधियों के निदान के दावे पर अपनी बात रखना चाहते हैं, उम्मीद है कि आप सभी ग़ौर फरमायेंगे।

बाबा रामदेव के हृदय में स्वदेशी-स्वदेशी की हूक उठती है। विदेशी शूल उनके कलेजे में चुभ जाता है और वह ज़ोर-ज़ोर से स्वदेशी गौरव गान में पिल पड़ते हैं। आइये इनके स्वदेश-राग की मूल बात पर एक नज़र डालें। वस्तुतः पूँजीवादी व्यवस्था का आम नियम है कि बड़ी मछली छोटी मछली को निगलती है। यानी बड़ी पूँजी छोटी पूँजी को खा जाती है। ऐसा वह अपनी साख, वित्तीय उपायों, उन्नत तकनीक, शासन व प्रशासन में अपने प्रभाव के ज़रिये करती है। छोटी मछली को बड़ी मछली बनने के लिए सदैव ही धर्म, नस्ल, अन्धराष्ट्रवाद (या स्वदेशी) इत्यादि की ज़रूरत पड़ती है। ऐसा करके वह न केवल अपने उत्पादों की उत्पादन लागत को कम कर पाने में सफल हो पाती है वरन बिक्री भी बढ़ा पाने में सफल होती है। बाबा रामदेव दोनों हथकण्डे अपनाते हैं। बाबा के ट्रस्टों को कोई भी टैक्स नहीं देना पड़ता। धर्म व ‘’देश गौरव” की धुन में मगन बहुत सारे ‘’दानवीरों” का धन (काला या सफेद) भी बाबा के लिए पूँजी की कमी को दूर करता है। धर्म के अन्धे उत्साह में बहुत से स्वयंसेवक बिना मेहनताने के अपना श्रम मुफ्त मुहैया कराते हैं। और फिर मज़दूरों के श्रम का भयंकर शोषण करते हैं, जिसके बग़ैर मुनाफा पैदा होने का सवाल ही नहीं उठता। ग़ौरतलब है कि मई, 2005 में न्यूनतम वेतन भी न मिलने की वजह से दिव्य फार्मेसी के मज़दूरों ने हड़ताल कर दी थी। जिन्हें बाद में फैक्टरी से निकाल दिया गया । इससे सहज ही अन्दाज़ा लगाया जा सकता है कि बाबा अपने उत्पादों की लागत को कितना कम कर पाने में सफल होता है। जबकि उत्पादों की कीमत बहुत ऊँची रहने से उसका मुनाफा कई गुना बढ़ जाता है। अब बाबा को स्वदेशी की हूक उठती है। बाबा ज़ोर-ज़ोर से प्राचीन भारतीय संस्कृति का गौरव-गान करने लगते हैं, जब लोग योग-बल व आयुर्वेदिक दवाओं का इस्तेमाल कर 200-200 साल निरोग जीते थे। विश्वगुरु भारत की प्रसिद्ध प्राचीन योग परम्परा और आयुर्वेद को अपनाने के बजाय विदेशी कम्पनी व आधुनिक दवाओं के इस्तेमाल करने के लिए बाबा रामदेव देश की जनता को धिक्कारते हैं। पूरे अतीत का महिमामण्डन करते हैं। उन स्वर्णिम दिनों की याद दिलाते हैं जब ‘शेर और बकरी एक घाट पर पानी पीते थे’। लूट और शोषण की शिकार जनता बाबा के भ्रमजाल में अपनी सुध-बुध खो बैठती है। बस इसी समय बाबा अपने योग का गुटका व दवाओं की पोटली निकालते हैं। बाबा कहते हैं कि दवा ख़रीदने से विश्वगुरु भारत की महान योग परम्परा की हिफाज़त होगी। लोग निरोग होंगे और पुनः रामराज्य की वापसी होगी। दिव्य दवाइयों की बिक्री बढ़ती है और बाबा खटारा स्कूटर से 1100 करोड़ टर्नओवर वाले ट्रस्टों के स्वामी बन जाते हैं। पर पूँजी की अपनी गति होती है। बाबा स्वदेशी का जाप करते-करते अरबों रुपयों से विदेश में (विदेश में!) अमेरिका के ह्यूसटन में 100 एकड़ ज़मीन ख़रीद लेते हैं और स्कॉटलैण्ड में एक द्वीप! और अब स्वदेशी बाबा विदेशी अमेरिकी कम्पनी के साथ उत्पादन करने जा रहे हैं। उम्मीद है कि बाबा के स्वदेशी राग का सुरताल तो अब समझ ही गये होंगे।

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समझ गये! तो चलिये थोड़ी बात बाबा के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान पर! बाबा रामदेव का भ्रष्टाचार पर गुस्सा प्राचीन पौराणिक क्रोधी ऋषि दुर्वासा से कम नहीं है। वह अपने भारत स्वाभिमान अभियान के दौरान ऐलान करते हैं कि भ्रष्टाचारियों को सूली पर चढ़ाकर उनके शवों पर रासायनिक लेप लगाकर उन्हें ‘ममी’ के रूप में सुरक्षित रखने का कानून बना देंगे। आइये, देश में भ्रष्टाचार से क्रोध की आग में जलकर कण्डा बने बाबा रामदेव के भ्रष्टाचरण को देखें। और उसके बाद तय करें कि ‘ममियों’ की सूची में कितने नाम और होने चाहिए। इसके लिए रामकिशन यादव से बाबा रामदेव बनने तक यानी 3 कमरों से 1100 करोड़ के टर्नओवर वाले 2 ट्रस्टों और अरबों रुपयों में अमेरिका व स्कॉटलैण्ड में एक द्वीप के मालिक बनने तक की बाबा की जीवन यात्रा पर एक नज़र डालना ज़रूरी होगा। शुरू में रामकिशन, आचार्य बालकृष्ण और आचार्य करमबीर कृपालुबाग आश्रम में स्वामी शंकरदेव के शिष्य बनकर रहना शुरू किये। यहीं उन्होंने संन्यास ग्रहण किया और रामदेव बने। 5 जनवरी 1995 में स्वामी शंकरदेव के साथ इन तीनों ने ‘दिव्य योग’ नाम से एक ट्रस्ट बनाया। स्वामी शंकरदेव की सारी सम्पत्ति को भी इस ट्रस्ट में शामिल कर लिया गया। ट्रस्ट बनने के 2-3 सालों में ट्रस्ट में शामिल अन्य न्यासियों को तमाम आरोप लगाकर धीरे-धीरे निकाल दिया गया। फिर बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने अपने गुरु स्वामी शंकरदेव से यह भी लिखवा लिया कि न्यास के विघटन की दशा में न्यास की सम्पत्ति समउद्देश्य वाले किसी न्यास को हस्तान्तरित हो जायेगी। 2007 में इनके गुरु शंकरदेव रहस्यमय परिस्थितियों में लापता हो गये, जिनका आज तक कहीं पता नहीं चल पाया। इस न्यास पर कानूनी और वास्तविक तौर पर स्वामी रामदेव और बालकृष्ण का अधिकार हो गया।

ख़ुद को ग़रीब किसान का बेटा कहने वाले बाबा रामदेव किसानों के दुख से बेकल हो उठते हैं। और सरकार को कोसते हैं कि सरकारों ने देश के किसानों का जमकर शोषण किया है, इनकी ज़मीनों को हड़पने के लिए सरकारों ने अलग-अलग अधिग्रहण कानून बनाये हैं। इन कानूनों के ज़रिये सरकारें किसानों की ज़मीनें औने-पौने दामों में ख़रीदकर उद्योगपतियों को सौग़ात में देती हैं। इस सच को हम भी स्वीकार करते हैं। परन्तु बाबा के इस सच को भी हम उजागर करना चाहेंगे कि बाबा का किसानों के दुःखों को लेकर बेकली कितनी पाखण्डपूर्ण है। इस ग़रीब के बेटे ने ख़ुद किसानों को तबाह करके अवैध तरीके से उनकी ज़मीन का अधिग्रहण किया है। इसके चन्द उदाहरण आपके समक्ष हैं – उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद 2004 मे कांग्रेस सरकार द्वारा बनाये भू-संशोधन कानून के अनुसार राज्य में बाहरी निवासी केवल 500 वर्ग मीटर भूमि ही ख़रीद सकते थे। पर तब तक बाबा रामदेव ने 800 बीघे से भी अधिक ज़मीन इकट्ठा कर ली थी। 2007 में उत्तराखण्ड में भाजपा सरकार आने के बाद बाहरी व्यक्ति को 250 वर्ग मीटर से अधिक ज़मीन बिना इजाज़त के नहीं मिलने का प्रावधान किया गया। पर यह नियम बाबा के लिए काम नहीं करता। 2008 के जुलाई महीने तक 2 शासनादेशों के ज़रिये बाबा रामदेव को 1700 बीघे ज़मीन ख़रीदने की इजाज़त मिली। यह ज़मीन किसानों से औने-पौने दामों में ख़रीदी गयी। इनमें से मुस्तफाबाद की 800 बीघा ज़मीन को बाबा ने औद्योगिक पार्क में बदलने के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा है। हरिद्वार में रियलस्टेट के एक दिग्गज के अनुसार औद्योगिक क्षेत्र घोषित होते ही बड़ा खेल शुरू होगा। तब यह भूमि गज के हिसाब से बिकेगी और वह भी ख़रीद मूल्य से कई गुना ज़्यादा कीमत में। यहाँ सहयोगी इकाइयाँ लगाने के लिए उद्योगों को बुलाया जायेगा। यानी माल बनाने वाले बाबा की शर्तों पर ज़मीन ख़रीद कर निवेश करेंगे और फिर बाबा उस माल को अपने ब्राण्ड से बेचेंगे।

हरिद्वार तहसील के औरंगाबाद गाँव के लोगों का आरोप है कि बाबा ने योग-ग्राम की आड़ में ग्राम समाज की लगभग 200 बीघा ज़मीन पर कब्ज़ा कर रखा है। योग-ग्राम के दोनों ओर बरसाती नदी रतमउ बहती है। बाबा के चेलों (आजीवन मानवमात्र सेवा व्रतधारियों) ने रतमउ नदी की आधा किलोमीटर लम्बी भूमि को लगभग 20 मीटर चौड़ाई तक भरकर अवैध तरीके से विस्तार किया है। इसी गाँव के अजब सिंह चौहान का कहना है कि पिछली बरसात में बाबा के चेलों ने रातोंरात भारी मशीनों की मदद से बाँध बनाकर रतमउ नदी का प्रवाह गाँव के खेतों की ओर कर दिया था जिसके कारण गाँव के ग़रीब किसानों की करीब 1500 बीघा भूमि बालू में बदल गयी। यहाँ से दो किलोमीटर दूर शिवदासपुर गाँव में भी ऐतिहासिक चन्दाताल की ज़मीन अब पतंजलि योगपीठ के कब्ज़े में है। बाबा के जिस प्रोजेक्ट में कुछ किसानों ने औने-पौने दामों में ज़मीन नहीं बेची है, उनके बारे में आचार्य बालकृष्ण का कहना है कि ये कुछ अनाड़ी किसानों की ज़मीनें हैं जो इन्हें बेचने को तैयार नहीं, लेकिन जायेंगे कहाँ? झक मारकर हमारे ही पैरों में आयेंगे।

बाबा रामदेव मेहनतकशों का ख़ून चूसने में भी कोई कमी नहीं रखते। ग़ौरतलब है कि मई 2005 में दिव्य फार्मेसी के मैनेजर रामभरत ने फार्मेसी से उन 90 मज़दूरों को नौकरी से निकाल दिया था जो न्यूनतम वेतन देने की माँग कर रहे थे। इसके विरोध में बाकी मज़दूरों ने भी हड़ताल कर दी। 16 दिनों की हड़ताल के बाद एक त्रिपक्षीय लिखित समझौते के बाद दिव्य पीठ विभिन्न श्रेणियों में न्यूनतम वेतन देने के लिए सहमत हो गया। लेकिन जब मज़दूर फैक्टरी में काम करने गये तो उन्हें अन्दर नहीं जाने दिया गया। उल्टे अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर मज़दूरों पर झूठे मुकदमे भी दायर कराये गये। आन्दोलन के बाद 114 मज़दूर निकाले गये। अब मामला श्रम न्यायाधिकरण में चल रहा है। वास्तव में, देखा जाये तो भारत में ही नहीं समूची दुनिया में कानूनी और गै़रकानूनी ढंग से खुलेआम श्रम की लूट मची है। बहुसंख्यक मेहनतकशों की लूट से मुट्ठीभर धनकुबेरों के लिए विलासिता की मीनारें खड़ी की जा रही हैं। तो सबसे बड़ा भ्रष्टाचार तो श्रम की लूट है जिसमें बाबा रामदेव किसी पूँजीपति से पीछे नहीं है।

बाबा के कानून में मिलावटखोरों की सज़ा फाँसी है। वे शुद्धता के बहुत बड़े हिमायती हैं। जबकि इनके कारख़ानों में काम करने वाले मज़दूरों ने ही बताया कि रामदेव की फार्मेसी की दवाइयों में जानवरों व मानवों की हड्डियों की मिलावट की जाती है। दवाइयों के विधिवत नमूने लेकर उन्हें जाँच के लिए भेजा गया तो पाया कि फार्मेसी द्वारा भारतीय ड्रग और कॉस्मेटिक एक्ट का उल्लंघन हो रहा है।

सत्य वचन बाबा रामदेव का प्राचीन ऋषिवत आदर्श है। वह सबको सत्य वचन बोलने की सीख देते हैं। बस यह सीख वह अपने ख़ासमख़ास आचार्य बालकृष्ण को देना भूल गये। ग़ौरतलब है बालकृष्ण नेपाली मूल के हैं। लेकिन उन्होंने भारतीय पासपोर्ट के लिए आवेदन करते समय ख़ुद को भारतीय नागरिक बताते हुए अपना जन्मस्थान हरिद्वार दर्शाया था। एलआईयू के अनुसार बालकृष्ण ने झूठे तथ्यों के आधार पर न केवल भारत का पासपोर्ट लिया बल्कि एक पिस्टल और एक राइफल का लाइसेंस भी हासिल किया।

अब जब दुनियावी चीज़ों से दूर इन संन्यासियों के झूठों की बात हो रही है, तो एक-दो झूठ और! 2008 में आचार्य बालकृष्ण ने एकाएक लक्ष्मण की मूर्छा हटाने वाली संजीवनी बूटी खोज निकालने का दावा किया जिससे मनुष्य सैकड़ों साल जियेगा। बाद में ग्रामीणों तथा वनस्पतिशास्त्रियों द्वारा खिल्ली उड़ाने पर चुप्पी साध गये। फिर एक पुस्तक छापकर दावा किया कि च्यवनप्राश में पड़ने वाली जो दिव्य अष्ट वर्ग औषधियाँ विलुप्त हो गयी हैं उन्होंने उसे खोज लिया है। जबकि भारतीय वन अनुसन्धान संस्थान के गजेटियर में 60 के दशक में ही न केवल इन औषधियों का वर्णन है बल्कि उनके चित्र भी छपे हैं।

बाबा वंशवाद, परिवारवाद के बहुत बड़े विरोधी हैं। पर इनके तमाम ट्रस्टों इत्यादि के महत्त्वपूर्ण पदों पर बाबा रामदेव के परिवार के लोग काबिज़ हैं।

तमाम पार्टियों के नेताओं को भ्रष्टाचार के लिए कोसने वाले बाबा रामदेव के पतंजलि कम्पनी लिमिटेड के पैसों से पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा को 10 लाख का चन्दा दिया गया। आरटीआई द्वारा यह बात सामने आने पर बालकृष्ण ने तमाम भ्रष्टाचारियों के साथ अपने गँठजोड़ की पोल यह कहकर ख़ुद ही खोल दी कि उन्होंने कांग्रेस को भी 10 लाख का चन्दा दिया था। बाबा रामदेव ठहरे साधू आदमी इनको क्या पता कि इन पार्टियों के शासनकाल में ताबूत घोटाला, राष्ट्रमण्डल तथा 2-जी स्पेक्ट्रम जैसे महाघोटाले हुए। इन्हीं पार्टियों के नेताओं का सर्वाधिक काला धन विदेशी बैंकों में जमा है। तो इन भ्रष्टाचारियों को चन्दा! बात हजम नहीं हुई और बाबा का कोई भी पाखण्ड, कुतर्क या दिव्य दवा बात को हजम करा भी नहीं सकता। क्योंकि बात हजम होने वाली है भी नहीं, बात सोचने वाली है। और बात यह है कि चोर-चोर मौसेरे भाई। बात वही है जो फ़्रांस के महान लेखक बाल्जाक ने कहा था कि कोई भी सम्पत्ति साम्राज्य बिना लूट, शोषण, भ्रष्टाचार, अपराध व तीन-तिकड़म के खड़ा ही नहीं हो सकता।

अन्त में थोड़ी बात योग और आयुर्वेद पर। बाबा का दावा है कि योग और अपनी दिव्य दवा द्वारा समस्त बीमारियों से देश ही नहीं विदेश के लोगों को निरोग कर देंगे। एकदम अन्तरराष्ट्रीयतावादी ढंग से। परन्तु अगर हम ग़ौर करें तो पायेंगे कि योग के इस दावे में वो व्याधियाँ (और उनका अंशतः समाधान ही योग द्वारा सम्भव है) ही आ पाती हैं जिनका सम्बन्ध मध्य वर्ग के खाये-पिये, अघाये, मुटियाये, तुन्दियाये लोगों से है। वे व्याधियाँ हैं गैस, कबि्ज़यत, चर्बी, मोटापा, मानसिक तनाव इत्यादि। हम यह नहीं कह रहे हैं कि मेहनत-मशक्कत करने वाली आम आबादी इन व्याधियों से एकदम मुक्त हैं। परन्तु यह तय है कि इनकी बहुतायत मध्यवर्ग एवं उच्च वर्गों में ही मिलती है। जबकि इस देश की 84 करोड़ आबादी जो ख़ुद सरकार द्वारा गठित अर्जुन सेन गुप्ता कमेटी के मुताबिक रोज़ाना 20 रुपये या उससे भी कम ख़र्च कर पाती है। यह आबादी हाड़तोड़ मेहनत, कार्यस्थल पर अस्वास्थ्यकर परिवेश, पौष्टिक भोजन ग्रहण कर पाने की असमर्थता, गन्दी बस्तियों (जहाँ न पीने का साफ पानी है और न ही साफ शौचालय, खुली नालियों में जहाँ गन्दगी बजबजाती रहती है) में रहने की मजबूरी, बेहतर डॉक्टर, अस्पतालों की सुविधा व दवाइयाँ न ख़रीद पाने के कारण कुपोषण, रक्ताल्पता, पीलिया, टीबी, हैजा, असमय मृत्यु जैसी बीमारियों के शिकार हैं। हमारा सवाल यह है कि 33 करोड़ लोग जो एक ही जून भोजन कर पाते हैं, उनके पेट में क्या योग व दिव्य दवा भोजन डाल सकता है? 46 प्रतिशत रक्ताल्पता की शिकार औरतों की नसों में क्या योग रक्त का प्रवाह पैदा कर सकता है? रोज़ाना कुपोषण के कारण मरने वाले 9000 बच्चों को क्या योग व दिव्य दवा जीवन दे सकता है? (सभी आँकड़े राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार) आप सोच रहे होंगे कि ये तो ज़्यादा हो रहा है, भई योग इनको कैसे दूर कर सकता है? हाँ! दोस्तो ठीक हम भी यही कहना चाह रहे हैं कि योग व दिव्य दवा इनको कतई दूर नहीं कर सकता है। तो बाबा रामदेव का योग द्वारा विश्व को समस्त व्याधियों से मुक्त कराने का पाखण्डपूर्ण अनर्गल प्रलाप क्या लोगों का ध्यान हटाकर मूल बीमारी पर पर्दा डालने की कोशिश नहीं है? भ्रष्टाचार विरोधी शोर मचाकर भी वह यही करता है। जबकि मूल बीमारी है लूट और शोषण पर टिकी मौजूदा व्यवस्था। ज़रा कल्पना कीजिये कि एक ऐसी मानव केन्द्रित समानता मूलक व्यवस्था हो जिसमें हर व्यक्ति शारीरिक व बौद्धिक श्रम दोनों करता हो, थोड़े से लोग कुर्सी न तोड़ते हों और बहुसंख्यक आबादी 10 से 12 घण्टे हाड़तोड़ मेहनत करने के लिए मजबूर न हो। मुनाफे की गलाकाट प्रतियोगिता में सामानों को गोदामों में बन्द करके या नष्ट करके लोगों को अभाव व दरिद्रता में दर-दर भटकने के लिए मजबूर न किया जाता हो, मुनाफे की अन्धी हवस में खाद्य सामाग्री से लेकर पूरे पर्यावरण को प्रदूषित कर विषाक्त न किया जाता हो, सभी को बेहतर पौष्टिक खाना, साफ-सुथरा वातावरण मिलता हो (जो कि आसानी से सम्भव है) तो पूरे दावे के साथ कहा जा सकता है कि हर तरह की बीमारियों की दर आश्चर्यजनक रूप से घट जायेंगी। जिन देशों में ऐसी व्यवस्था अस्तित्व में आयी, उन देशों के इतिहास ने इस बात को काफी पहले साबित कर दिया है। लेकिन इसके लिए तो पहले लूट और शोषण पर टिकी मौजूदा मुनाफा केन्द्रित व्यवस्था को उखाड़ना होगा। पर इसी व्यवस्था में ही बाबा रामदेव जैसों के वारे-न्यारे हैं। तो भला ये ऐसा क्यों चाहेंगे? पूँजीपति मेहनतकशों को तबाह करके, ख़ून-पसीना निचोड़कर अपनी तिजोरी भरता है। तो बाबा रामदेव जैसे, लोगों की बीमारी को दूर करने का स्वाँग रचते हुए दिव्य दवा बेचकर अपनी तिजोरी भरते हैं।

आज के अँधेरे दौर में यह बात सच है कि जनता के पिछड़ेपन, ठहराव व परिवर्तनकारी शक्तियों की ताकत कमजोर होने का लाभ तमाम पाखण्डी, अन्धराष्ट्रवादी, धार्मिक-फासीवादी उठा रहे हैं। पर आज नहीं कल जनता इनके कुकृत्यों को समझेगी। मौजूदा लुटेरी व्यवस्था से इनके नाभिनालबद्ध सम्बन्ध को समझेगी। वह जानेगी कि मेहनत की लूट पर टिकी पूँजीवादी व्यवस्था पर ही ऐसे ज़हरीले खरपतवार उगते हैं। वह जागेगी और मौजूदा व्यवस्था के साथ-साथ इन पाखण्डियों को भी इतिहास की बहुत गहरी कब्र में दफन करेगी। और निश्चित रूप से जनता इन पाखण्डियों को ‘ममी’ के रूप में तो क्या किसी अभिलेख में भी सुरक्षित रखने की ज़रूरत नहीं समझेगी।

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मार्च-अप्रैल 2011

 

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