संस्कृति-रक्षकों और धर्म ध्वजाधारियों का असली चेहरा

शिवानी

यदि हम भारतीय राजनीतिक परिदृश्य की बात करें तो लम्बे समय से भारतीय जनता पार्टी के तारे गर्दिश में चल रहे हैं। और भाजपा के ये दुर्दिन जल्द समाप्त होते भी नहीं दिखलायी पड़ रहे हैं। विशेषकर, अगर कर्नाटक की ओर रुख़ करें तो वहाँ भाजपा की स्थिति बहुत-कुछ ‘आसमान से गिरकर खजूर पर अटकने’ वाली हो गयी है। एक विवाद ख़त्म नहीं कि दूसरा हाजि़र! अभी अवैध खनन मामले और भूमि आबण्टन में भाई-भतीजावाद के आरोपों के चलते पूर्व मुख्यमन्त्री येदियुरप्पा के इस्तीफ़े की यादें धुंधली भी नहीं पड़ी थीं कि राज्य की भाजपा सरकार एक और विवाद से घिर गयी! हाल ही में कर्नाटक विधानसभा की कार्यवाही के दौरान भाजपा के तीन मन्त्री मोबाईल पर पोर्न वीडियो देखते हुए पकड़े गये! ज्ञात हो कि इनमें से एक महिला एवं बाल कल्याण मन्त्री था! अपनी इस हरक़त के जरिये यह महानुभाव कितना ‘कल्याणकारी’ काम कर रहे थे, यह तो साफ़ ही है! ग़ौरतलब है कि कुछ समय पहले इस शख़्स ने महिलाओं को हिदायत दी थी कि उन्हें यौन उत्पीड़न और बलात्कार से बचने के लिए ‘‘उत्तेजक’’ कपड़े नहीं पहनने चाहिए (शायद उनका मतलब था कि उन्हें कोई कपड़े नहीं पहनने चाहिए!!) यहाँ तक कह डाला था कि महिलाओं के लिए ‘ड्रेस कोड’ (!!) लागू होना चाहिए! कर्नाटक राज्य महिला आयोग द्वारा लगभग दो महीने पहले आयोजित एक कार्यशाला में उक्त मन्त्री यह सुझाव दे रहे थे कि यौन उत्पीड़न को कानूनों द्वारा नहीं बल्कि ‘नैतिक मूल्यों’ के जरिये ही रोका जा सकता है। लगता है माननीय मन्त्री जी उन्हीं ‘नैतिक मूल्यों’ की बात कर रहे थे जिनका नमूना उन्होंने विधानसभा में पेश किया!

Karntatka-minister

रंगे हाथों पकड़े जाने की बावजूद इन ‘जन-प्रतिनिधियों’ की बेशर्मी की इन्तहाँ देखिये! इनका कहना था कि ऐसा करके उन्होंने कोई अपराध नहीं किया! संसद-विधानसभाओं की असलियत क्या है यह तो आज़ादी के चैंसठ साल बाद देश की जनता के सामने है। देश की मेहनतकश जनता की गाढ़ी कमाई को तमाम नेता-मन्त्री संसद-विधानसभाओं में होने वाली फि़जूल की बहसबाज़ी और जूतम-पैजार में कैसे उड़ाते हैं, यह भी किसी से छिपा नहीं। लेकिन इन ‘जन-प्रतिनिधियों’ को तो अपने इन बहसबाज़ी के अड्डों की ‘गरिमा’ का थोड़ा तो ख़्याल करना चाहिए! सदन की कार्यवाही के दौरान नेताओं का ऊँघना, सोना, एक-दूसरे पर जूते-चप्पल बरसाना, यहाँ तक कि एक-दूसरे पर कूड़ा फेंकना-यह सब तो देख ही लिया था। लेकिन सदन की कार्यवाही के दौरान खुलेआम पोर्न वीडियो देखना! यह तो शायद ही कहीं हुआ हो! एक-दूसरे को पीछे छोड़ने की गलाकाटू पूँजीवादी प्रतिस्पर्द्धा की एक मिसाल यहाँ भी देखने को मिलती है! इस वाकये के थोड़े दिन बाद लम्बे समय से देश के प्रधानमन्त्री बनने का ख़्वाब देख रहे आडवाणी जी का एक मज़ेदार बयान आया। उन्होंने देशवासियों में चरित्र-निर्माण पर ज़ोर देने की बात कही। अब इस तरह की बातें करना उन्हें शोभा नहीं देता। वैसे आडवाणी जी पहले या अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं जो ‘‘उच्च’’ नैतिक मूल्यों की बात कर रहे हों। वह जिस संघ परिवार से ताल्लुक रखते हैं उसने तो देश में धर्म, भारतीय संस्कृति और नैतिकता की रक्षा का बीड़ा उठा रखा है! भारतीय संस्कृति को पाश्चात्य संस्कृति के आक्रमण से बचाने के लिए यह हर वैलेण्टाइन डे पर प्रेमी जोड़ों का शिकार करने निकल पड़ते हैं! हिन्दू धर्म की रक्षा करने के लिए यह विश्वविद्यालयों में रामायण के ऐतिहासिक अध्ययन को पढ़ाये जाने का विरोध करते हैं, यह कहते हुए कि इससे उनकी ‘भावनाओं को ठेस पहुँचती है’! स्त्रियों की नैतिकता और भारतीयता को यह कॉलेजों में लड़कियों के आधुनिक परिधान पहनने पर रोक लगाकर कलुषित होने से बचाते हैं! लेकिन यदा-कदा धर्म और संस्कृति के इन ठेकेदारों का असली चरित्र ऐसी ही घटनाओं से सामने आता रहता है।

कुछ वर्ष पहले भगवा ब्रिगेड के एक सिपहसालार के पोर्न वीडियो की सी.डी. संघ परिवार के स्थापना समारोह में बँट गयी! ऐसे लोग कौन-सी संस्कृति और ‘‘उच्च’’ नैतिक स्तर देश में स्थापित करेंगे इसका अन्दाज़ा लगाया जा सकता है।

साम्प्रदायिक फ़ासीवादी ताक़तें या यूँ कहें कि सभी तरह की फ़ासीवादी ताक़तें मिथकों को यथार्थ और ‘कॉमन सेंस’ बनाकर और प्रतिक्रिया की ज़मीन पर खड़े होकर कल्पित अतीत से अपनी राजनीतिक ताक़त और ऊर्जा ग्रहण करते हैं। जर्मनी में नात्सियों ने यही किया और भारत में संघ परिवार और उसके तमाम आनुषंगिक संगठन यही कर रहे हैं। स्त्रियों, दलितों, धार्मिक अल्पसंख्यकों, आदिवासियों और आम ग़रीब आबादी के प्रति इनका फासीवादी रवैया बार-बार हमारे सामने आता है। ये ताक़तें इसे धर्म-सम्मत और संस्कृति-सम्मत बताकर सही ठहराती हैं और अनुशासित और निरन्तरतापूर्ण तरीके से मस्तिष्कों में विष घोलने का काम करती रहती हैं। ये ताक़तें जनता के बीच सतत् मौजूद हैं और इसलिए जनता के तमाम संघर्षों की एकजुटता के लिए नुकसानदेह हैं। इसलिए आज इन संस्कृति-रक्षकों और धर्मध्वजाधारियों के दोगले और पाखण्डी चेहरे को पूरे देश की जनता के सामने बेनक़ाब करने की ज़रूरत है। साथ ही, इन साम्प्रदायिक फ़ासीवादी ताक़तों के खि़लाफ़ समझौताविहीन संघर्ष चलाने की भी उतनी ही ज़रूरत है।

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-फरवरी 2012

 

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