हम सभी मेट्रो रेल को दिल्ली की शान समझते है। मीडिया से लेकर सरकार तक मेट्रो को दिल्ली की शान बताने का कोई मौका नहीं चूकते। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से लेकर प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह तक मेट्रो के कसीदे पढ़ते हुए, इसके कार्यकुशल प्रंबधन को उदाहरण के रूप में पेश करते हैं, तो दूसरी तरफ़ जगमगाती, चमकदार, उन्नत तक्नोलॉजी से लैस मेट्रो को देखकर कोई भी दिल्लीवासी फ़ूला नहीं समाता। लेकिन बहुत कम ही लोग जानते हैं कि इस उन्नत, आरामदेह और विश्व-स्तरीय परिवहन सेवा के निर्माण से लेकर उसे चलाने और जगमगाहट को कायम रखने वाले मजदूरों के जीवन में कैसा अन्धकार व्याप्त है। चाहे वे जान–जोखिम में डालकर निर्माण कार्य में दिनों-रात खटने वाले मजदूर हो, या स्टेशनों पर काम करने वाले गार्ड या सफ़ाईकर्मी, किसी को भी उनका जायज़ हक़ और सुविधाएँ नहीं मिलती।