Category Archives: फ़ासीवाद

एनआरसी के ड्रैगन को समझिए! नाम में ही सब कुछ रखा है, लेकिन आपका नाम कहाँ है?

एनआरसी प्रक्रिया में हर भारतीय की नागरिकता सन्दिग्ध मान ली जायेगी, आपको लाइन लगाकर यह सिद्ध करना होगा कि आपका जन्म 1972 से पहले भारत में हुआ है और यहीं रहते थे, यदि उसके बाद हुआ है तो आपके माता-पिता/दादा-दादी का जन्म उस अवधि से पूर्व भारत में हुआ था और वह यहाँ रह रहे थे। जिसके लिए आपके पास ऐसा दस्तावेज़ होना चाहिए। जन्म पंजीकरण के क़ानून को लागू हुए अभी जुमा-जुमा आठ दिन हुए हैं लेकिन आपको एनआरसी के लिए दश्को पुराने अपने बुज़ुर्गों का जन्म प्रमाण चाहिए होगा।

विचारधारा के पीछे अपनी कायरता को मत छिपाओ नवाज़ुद्दीन

बाज़ार के हाथों बिक चुके अभिनेताओं से यह उम्मीद नहीं की जा सकती है और न ही नवाज़ से यह उम्‍मीद रखी जा सकती है। नवाज़ सरीखा बॉलीवुड का कोई भी अभिनेता अपने कैरियर में ऊपर पहुँचने के लिए बहुत समझौते करता है। इसके लिए वह उन सभी सिद्धान्‍तों को बलि चढ़ाने से हिचकता नहीं है। किसी फासीवादी प्रयोजनमूलक फिल्म में काम करने को ”कला के लिए काम करना’ बताना लोगों की आँख में धूल झोंकना है।

तमाशा-ए-सीबीआई

अपने फासीवादी एजेंडों को अमल में लाने की कोशिश में भाजपा विभिन्न सरकारी संस्थाओं के प्रमुख पदों पर लगातार अपने करीबी लोगों को बिठाती रही है फिर चाहे वो विश्वविद्यालय, एफ़टीआईआई हो या सीबीएफसी हो। राकेश अस्थाना को सीबीआई का विशेष निदेशक बनाना इसी श्रृंखला की एक कड़ी भर था। राकेश अस्थाना के इतिहास पर भी एक निगाह डालने की आवश्यकता है। वर्तमान प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी से राकेश अस्थाना की नजदीकियाँ दो दशक पुरानी हैं। नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के प्रधानमन्त्री थे तब अस्थाना गुजरात के पुलिस महकमे में उच्च अधिकारी थे। उनकी गिनती नरेन्द्र मोदी के नजदीकी अधिकारियों में होती थी। 2002 में हुए गोधरा काण्ड को उन्होंने पूर्व नियोजित नहीं बल्कि ‘क्रिया की प्रतिक्रिया’ कहा था। जबकि 2009 में आयी जाँच रिपोर्ट में साबित हुआ है कि यह पूर्वनिर्धारित था। उनपर वित्तीय अनियमितता के आरोप भी लगे है। अभी हाल में एक रिटायर्ड पी.एस.आई. ने सूरत के पुलिस कमिश्नर रहे राकेश अस्थाना पर 2013-2015 के दौरान पुलिस वेलफेयर फण्ड के 20 करोड़ रुपये अवैध तरीके से भाजपा को चुनावी चन्दे के तौर पर देने का आरोप लगाया था।

ब्राजील में फासिस्ट बोलसोनारो की जीत, विश्व स्तर पर नया फासिस्ट उभार और आने वाले समय की चुनौतियाँ

ब्राजील के राष्ट्रपति चुनाव में फासिस्ट बोलसोनारो की जीत ने स्पष्ट कर दिया है कि संकटग्रस्त बुर्जुआ वर्ग ने अपनी रक्षा के लिए कुत्तेु की जंज़ीर को ढीला छोड़ दिया है। दैत्य-दुर्ग के पिछवाड़े सम्‍भावित तूफान से आतंकित अमेरिकी साम्राज्यवाद भी इस फासिस्ट की पीठ पर खड़ा है। एक दिलचस्प जानकारी यह भी है कि जायर बोलसोनारो इतालवी-जर्मन मूल का ब्राजीली नागरिक है। उसका नाना हिटलर की नात्सी सेना में सिपाही था। ब्राजील में बोलसोनारो का सत्तारूढ़ होना अपने-आप में इस सच्चाई को साबित करता है कि तथा‍कथित समाजवाद का जो नया सामाजिक जनवादी मॉडल लातिन अमेरिका के कई देशों में गत क़रीब दो दशकों के दौरान स्थापित हुआ था (जिसके हमारे देश के संसदीय जड़वामन वामपन्थी भी खूब मुरीद हो गये थे), वह सामाजिक जनवादी गुलाबी लहर (‘पिंक टाइड’) भी अब उतार पर है।

कठुआ और उन्नाव : बलात्कार का भगवा गणतंत्र

हिंदुत्व फ़ासीवादी ताकतों द्वारा यौन हिंसा का प्रयोग एक राजनीतिक हथियार के रूप में कर अल्पसंख्यकों के मन में डर भर देना कड़वी वास्तविकता है। पुलिस द्वारा दायर की गयी चार्जशीट में भी साफ़ तौर पर इसका उल्लेख है। हिंदुत्ववादी ताकतों द्वारा यह भयावह कृत्य मुस्लिम बकरवालों को उनके गाँवों से भगा देने के एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा था। ‘ हिन्दू एकता मंच’ के बैनर तले बलात्कारियों के समर्थन में आयोजित रैली से भी स्पष्ट हो जाता है कि इस बलात्कार की घटना के पीछे एक बड़ा राजनीतिक प्रयोजन था।

फासीवाद को हराने के लिए पूँजीवाद के खात्मे की लड़ाई लड़नी होगी!

आज का फासीवाद मुसोलीनी के इटली सरीखे और हिटलर के जर्मनी सरीखे फासीवादी मॉडल से भिन्नता लिए हुए है। 1920 के दशक की आर्थिक महामन्दी के दौर में उभरे फासीवादी आन्दोलन में आकस्मिकता का तत्व था तो 1970 से मन्द-मन्द मन्दी की शिकार व्यवस्था, जो 2008 के बाद से मन्दी के अधिक भयंकर भँवर में जा फँसी है, में धीरे-धीरे पोर-पोर में समाकर सत्ता में पहुँचने का तत्व है। भारत में फासीवादी अचानक ब्लिट्जक्रिग अंदाज़ में सत्ता में जाने की जगह धीरे-धीरे पोर-पोर में समाकर और समय-समय पर आन्दोलनों के जरिये सत्ता के करीब पहुँचे हैं।

फ़ेक न्यूज़: डिजिटल माध्यमों से समाज की रग़ों में घुलता नफ़रत का ज़हर

इंटरनेट, सोशल मीडिया और व्हाट्सएप के ज़रिये समाज में झूठी ख़बरों को फैलाने की यह परिघटना, जिसे फ़ेक न्यूज़ के नाम से जाना जाता है, दुनिया भर में भयावह रूप अख़्तियार करती जा रही है। अमेरिका में पि‍छले राष्ट्रपति चुनावों में ट्रम्प के अभियानकर्ताओं ने फ़ेक न्यूज़ का जमकर इस्तेमाल करते हुए अप्रवासियों, मुस्लिमों और लातिन लोगों व अश्वेतों के ख़िलाफ़ नफ़रत का माहौल बनाया जिसने ट्रम्प की जीत में अहम भूमिका निभायी। इसी तरह से यूरोप के तमाम देशों में भी अप्रवासियों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने में फ़ेक न्यूज़ का जमकर इस्तेेमाल किया जा रहा है। ब्रिटेन में यूरोपीय संघ से अलग होने के लिए हुए जनमतसंग्रह के दौरान भी फ़ेक न्यूज़ का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया गया। लेकिन भारत में फ़ेक न्यूज़ की परिघटना जिस क़दर फैल रही है उसकी मिसाल दुनिया में शायद ही किसी और देश में देखने को मिले। इसकी वजह यह है कि भारत में अधिकांश फ़ेक न्यूज़ संघ जैसे काडर आधारित फ़ासिस्ट संगठन के द्वारा संगठित तरीके से फैलाया जा रहा है जिसकी पहुँच देश के कोने-कोने तक है।

देश में बढ़ती असमानता और नरेंद्र मोदी का नग्न प्रहसन

जिस समय दावोस में मोदी पूँजीपतियों, रसोइयों और बॉलीवुड के भाड़ों को लेकर भारत में निवेश करने व विकसित देश से तक्नोलॉजी के लिए चिरौरी-मिन्नतें कर रहा था, ऑक्सफेम ने विश्व स्तर पर असामनता की एक रिपोर्ट प्रकाशित की। इस रिपोर्ट ने आँकड़ों के जरिये यह प्रदर्शित किया कि ग़रीब आबादी को आँसुओं के समन्दर में धकेलकर ऐयाशी की मीनारों में अमीरजादों की जमात बैठी है। यह रिपोर्ट भले पूँजीवाद की पैरवी करती है और थॉमस पिकेटी सरीखे उदारवादी लेखक के उपदेशों को पेश करती है। यानी कल्याणकारी राज्य को स्थापित कर असामनता को कम करने की पैरवी करती है। परन्तु सवाल भले या बुरे पूँजीवाद का नहीं बल्कि पूँजीवाद का है। इस असमानता को ख़त्म करने के लिए पूँजीवाद को ख़त्म करना होगा।

फासीवाद को मात देने का रास्ता इंक़लाब से होकर जाता है चुनावी राजनीति से नहीं!

फासीवाद को चुनाव से नहीं हराया जा सकता है। फासीवाद का जन्म इसी संसदीय गणतंत्र के खोल के भीतर से हुआ है, समय को वापस कर इसे वापस इस खोल में नहीं डाला जा सकता है। इसे जीव विज्ञान के उदाहरण से समझा जा सकता है। कुकुन में से निकले नुकसानदायक कीट को पैरों के नीचे कुचल कर ही ख़त्म किया जा सकता है। परन्तु भारत के तमाम वामपन्थी बुद्धिजीवी वक्त को उलट कर नेहरु काल के ‘समाजवाद’ को लाना चाहते हैं। यह बात 2004 और 2009 के चुनाव से साफ़ हो चुकी है जब यही सारे वामपन्थी विचारक लोग फासीवाद की हार का जश्न मना रहे थे तब इनकी सोच के विपरीत  भाजपा 2014 में ज्यादा वोटों के साथ सत्ता पर पहुँची। हमें यह समझना होगा कि फासीवाद निम्न मध्य वर्ग का आन्दोलन है जिसे काडर आधारित फासीवादी पार्टी नेतृत्व देती है। इसे क्रान्तिकारी पार्टी के नेतृत्व में संगठित काडर आधारित मजदूर आन्दोलन ही परास्त कर सकता है। हमें फासीवाद से लड़ने में इस सबक को बिलकुल याद रखना होगा।

अर्नब गोस्वामी के रिपब्लिक टीवी के ख़िलाफ़ दिशा का विरोध प्रदर्शन

खुद को पत्रकारिता का ठेकेदार समझने वाले अर्नब गोस्वामी के नये समाचार चैनल रिपब्लिक टीवी (जिसमेंं सबसे ज्यादा पैसा भाजपा के एम.पी. राजीव चंद्रशेखर ने लगाया है) ने दिल्ली विश्वविद्यालय में दिशा छात्र संगठन द्वारा लगाये गये पोस्टरों को आई.एस.आई.एस. जैसे आतंकवादी समूह का समर्थक बताते हुए 28 मई 2017 को ख़बर प्रसारित की। इस ख़बर में रिपब्लिक टीवी ने बेहद ही ग़ैरजिम्मेदाराना तरीके से दिशा के पोस्टर, जिन पर ‘भगत सिंह के सपनो को साकार करने’, ‘शिक्षा है सब का अधिकार, बन्द करो इसका व्यापार’, ‘दिशा का रास्ता, भगत सिंह का रास्ता’ लिखा था की तस्वीरें अपने टीवी चैनल पर दिखाते हुए उन्हें आई.एस.आई.एस. का बताया।