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ब्राजील में फासिस्ट बोलसोनारो की जीत, विश्व स्तर पर नया फासिस्ट उभार और आने वाले समय की चुनौतियाँ

ब्राजील के राष्ट्रपति चुनाव में फासिस्ट बोलसोनारो की जीत ने स्पष्ट कर दिया है कि संकटग्रस्त बुर्जुआ वर्ग ने अपनी रक्षा के लिए कुत्तेु की जंज़ीर को ढीला छोड़ दिया है। दैत्य-दुर्ग के पिछवाड़े सम्‍भावित तूफान से आतंकित अमेरिकी साम्राज्यवाद भी इस फासिस्ट की पीठ पर खड़ा है। एक दिलचस्प जानकारी यह भी है कि जायर बोलसोनारो इतालवी-जर्मन मूल का ब्राजीली नागरिक है। उसका नाना हिटलर की नात्सी सेना में सिपाही था। ब्राजील में बोलसोनारो का सत्तारूढ़ होना अपने-आप में इस सच्चाई को साबित करता है कि तथा‍कथित समाजवाद का जो नया सामाजिक जनवादी मॉडल लातिन अमेरिका के कई देशों में गत क़रीब दो दशकों के दौरान स्थापित हुआ था (जिसके हमारे देश के संसदीय जड़वामन वामपन्थी भी खूब मुरीद हो गये थे), वह सामाजिक जनवादी गुलाबी लहर (‘पिंक टाइड’) भी अब उतार पर है।

यूरोप में यूनानी त्रासदी के बाद इतालवी कामदी!

इटली के इतिहस को कामदी के मोड़ पर लाकर खड़ा करने वाले इस आन्दोलन का स्थापक एक कॉमेडियन बेप्पे ग्रिल्लो था। इस आन्दोलन ने सत्ता और भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ अपशब्द नामक विरोध दिवस मनाये। यह आन्दोलन मुख्यतः भ्रष्टाचार, किफायतसारी और संकट के कारण बढ़ती बेरोज़गारी व गरीबी के खिलाफ था व इसमें नेताओं की ईमानदारी की बात कही गयी। इस आन्दोलन ने एक तरफ यूरोपियन यूनियन से अलग होने की बात कही तो दूसरी ओर सम्प्रभु कर्ज को मिटा देने की बात भी की। भारत में अन्ना हजारे आन्दोलन भी कुछ ऐसा ही था। ‘इण्डिया अगेंस्ट करप्शन” के उत्पाद के तौर पर केजरीवाल की सरकार बनी तो हजारे ने इस सरकार से खुद को अलग कर लिया है वहीं बेप्पे ग्रिल्लो भी इस आन्दोलन से व पार्टी से अलग हो चुका है।