मोदी सरकार के दो वर्षों में उपरोक्त आर्थिक नीतियों के कारण आम मेहनतकश जनता को अभूतपूर्व महँगाई का सामना करना पड़ रहा है। इन दो वर्षों में ही रोज़गार सृजन में भारी कमी आयी है और साथ ही बेरोज़गारों की संख्या में भी खासा इज़ाफ़ा हुआ है। मज़दूरों के शोषण में भी तेज़ी से बढ़ोत्तरी हुई है क्योंकि मन्दी के दौर में मज़दूरों को ज़्यादा निचोड़ने के लिए जिस प्रकार के खुले हाथ और विनियमन की पूँजीपति वर्ग को ज़रूरत है, वह मोदी सरकार ने उन्हें देनी शुरू कर दी है। कृषि क्षेत्र भी भयंकर संकट का शिकार है। यह संकट एक पूँजीवादी संकट है। साथ ही, सरकारी नीतियों के कारण ही देश कई दशकों के बाद इतने विकराल सूखे से गुज़र रहा है। इन सभी कारकों ने मिलकर व्यापक मज़दूर आबादी और आम मेहनतकश जनसमुदायों के जीवन को नर्क बना दिया है। यही कारण है कि मोदी सरकार ने हाफपैण्टिया ब्रिगेड को दो चीज़ों की पूरी छूट दे दी है: पहला, सभी शैक्षणिक, शोध व सांस्कृतिक संस्थानों को खाकी चड्ढीधारियों के नियंत्रण में पहुँचा दिया है ताकि देशभर में आम राय के निर्माण के प्रमुख संस्थान संघ परिवार के हाथ में आ जायें और दूसरा, देश भर में आम मेहनतकश अवाम के भीतर इस भयंकर जनविरोधी सरकार के प्रति विद्रोह की भावना न पनपे इसके लिए उन्हें दंगों, साम्प्रदायिक तनाव, गौरक्षा, घर-वापसी जैसे बेमतलब के मुद्दों में उलझाकर रखने के प्रयास जारी हैं।