आज जिस रूप में पूँजीवाद यहाँ विकसित हुआ है उसने हर चीज़ की तरह स्त्रियों को भी बस खरीदे-बेचे जा सकने वाले सामान में तब्दील कर दिया है। पूँजीवाद के बाज़ार मूल्यों ने अश्लीलता फैलाना भी मोटे पैसे कमाने का धन्धा बना दिया है। कई सर्वेक्षणों में अनुमान हमारे सामने हैं। स्कूल से निकलने की उम्र तक एक बच्चा औसतन परदे पर 8,000 हत्याएँ और 1,00,000 (एक लाख) अन्य हिंसक दृश्य देख चुका होता है। 18 वर्ष का होने तक वह 2,00,000 (दो लाख) हिंसक दृश्य देख चुका होता है जिनमें 40,000 (चालीस हज़ार) हत्याएँ और 8,000 स्त्री विरोधी अपराध शामिल हैं। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में ‘इण्टरनेट’ पर अश्लील सामग्री ‘पोर्न’ का कुल बाज़ार क़रीब 97 बिलियन डॉलर तक पहुँच चुका है। 34 प्रतिशत ‘इण्टरनेट’ उपभोक्ता बताते हैं कि किस तरह से उन्हें न चाहते हुए भी पोर्न आधारित विज्ञापन देखने पड़ते हैं। कुल डाउनलोड की जाने वाली सामग्री का 45 प्रतिशत अश्लील और पोर्न सामग्री का ही होता है। एक शोध यह भी बताता है कि ‘पोर्न’ के कारण वैवाहिक बेवफाइयाँ 300 प्रतिशत तक बढ़ी हैं।