Category Archives: पूंजीवादी संस्‍कृति

अवसाद के अँधेरे में भटकते युवा

कौन-सा घुन है जो हमारे युवाओं को भीतर ही भीतर खाये जा रहा है? उम्मीदों और सपनों से भरी उम्र में नाउम्मीदी, चुप्पी, अकेलेपन और मौत का दामन क्यों थाम रहे हैं इस देश के नौजवान? चारों ओर अवसाद का अँधेरा छाया हुआ है। खोखली हँसी, मोबाइल पर बतियाते, इंटरनेट पर चैटिंग करते, मशीनों की तरह भागते-दौड़ते, अकेलेपन के रौरव नरक में जीते लोग। आत्मनिर्वासित आत्माएँ। चमकदार चीजों के बीच बुझे हुए चेहरे। इस अँधेरे से कैसे निकलें?

स्त्री उत्पीड़न और भाजपा का रामराज्य

स्त्री-विरोधी अपराधों में भाजपा के राज में जो अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी हुई है, वह कोई इत्तेफ़ाक नहीं है। इतिहास गवाह है कि जब भी जनविरोधी, स्त्री-विरोधी, दलित-विरोधी व अल्पसंख्यक-विरोधी ताक़तें सत्ता में होती हैं, तो स्त्रियों के विरुद्ध बर्बर अपराधों में इज़ाफ़ा होता ही है।

विचारधारा के पीछे अपनी कायरता को मत छिपाओ नवाज़ुद्दीन

बाज़ार के हाथों बिक चुके अभिनेताओं से यह उम्मीद नहीं की जा सकती है और न ही नवाज़ से यह उम्‍मीद रखी जा सकती है। नवाज़ सरीखा बॉलीवुड का कोई भी अभिनेता अपने कैरियर में ऊपर पहुँचने के लिए बहुत समझौते करता है। इसके लिए वह उन सभी सिद्धान्‍तों को बलि चढ़ाने से हिचकता नहीं है। किसी फासीवादी प्रयोजनमूलक फिल्म में काम करने को ”कला के लिए काम करना’ बताना लोगों की आँख में धूल झोंकना है।

पाठकों के पत्र : फासीवाद की चुनौती में वैकल्पिक मीडिया की अहम भूमिका होगी

मौजूदा दौर में जिस किस्म से मजदूरों, छात्रों, किसानों और नौकरीपेशा लोगों पर ये सरकार चौतरफा हमला कर रही है इस काम में मुख्य धारा की मीडिया और सोशल मीडिया के जरिये ये फासीवादी जनता को भरमा रहे हैं। यह होना भी है क्योंकि भाजपा को सबसे ज़्यादा चन्दा देने वाले बड़े पूँजीपति भी मीडिया को चलाते हैं और ये पूरी तरह इनके हाथ में दस्तानों की तरह काम कर रहे हैं।

16 दिसम्बर; ‘दिल्ली निर्भया काण्ड’ के पाँच बरस : मूल सवाल अब भी ज्यों का त्यों 

आज जिस रूप में पूँजीवाद यहाँ विकसित हुआ है उसने हर चीज़ की तरह स्त्रियों को भी बस खरीदे-बेचे जा सकने वाले सामान में तब्दील कर दिया है। पूँजीवाद के बाज़ार मूल्यों ने अश्लीलता फैलाना भी मोटे पैसे कमाने का धन्धा बना दिया है। कई सर्वेक्षणों में अनुमान हमारे सामने हैं। स्कूल से निकलने की उम्र तक एक बच्चा औसतन परदे पर 8,000 हत्याएँ और 1,00,000 (एक लाख) अन्य हिंसक दृश्य देख चुका होता है। 18 वर्ष का होने तक वह 2,00,000 (दो लाख) हिंसक दृश्य देख चुका होता है जिनमें 40,000 (चालीस हज़ार) हत्याएँ और 8,000 स्त्री विरोधी अपराध शामिल हैं। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में ‘इण्टरनेट’ पर अश्लील सामग्री ‘पोर्न’ का कुल बाज़ार क़रीब 97 बिलियन डॉलर तक पहुँच चुका है। 34 प्रतिशत ‘इण्टरनेट’ उपभोक्ता बताते हैं कि किस तरह से उन्हें न चाहते हुए भी पोर्न आधारित विज्ञापन देखने पड़ते हैं। कुल डाउनलोड की जाने वाली सामग्री का 45 प्रतिशत अश्लील और पोर्न सामग्री का ही होता है। एक शोध यह भी बताता है कि ‘पोर्न’ के कारण वैवाहिक बेवफाइयाँ 300 प्रतिशत तक बढ़ी हैं।

स्त्रियों का उत्पीड़न करता एक और बाबा पकड़ा गया ! चुनावबाज पार्टियों के राजनीतिक संरक्षण में पल रहे पाखण्डी बाबा !!

आज पूरे देश में सबसे पहली माँग तो यह बनती है कि इन सभी बाबाओं पर नकेल कसने के लिए केंद्र सरकार ‘अन्ध-श्रद्धा निर्मूलन कानून’ पारित कर ऐसे सभी बाबों की ‘दुकानें’ और ‘धन्धे’ बन्द करें। ‘अच्छे और सच्चे’ बाबा एक मिथक है। धर्म सभी नागरिकों का व्यक्तिगत मसला है और सार्वजानिक जीवन में इसका हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।

फ़ेक न्यूज़: डिजिटल माध्यमों से समाज की रग़ों में घुलता नफ़रत का ज़हर

इंटरनेट, सोशल मीडिया और व्हाट्सएप के ज़रिये समाज में झूठी ख़बरों को फैलाने की यह परिघटना, जिसे फ़ेक न्यूज़ के नाम से जाना जाता है, दुनिया भर में भयावह रूप अख़्तियार करती जा रही है। अमेरिका में पि‍छले राष्ट्रपति चुनावों में ट्रम्प के अभियानकर्ताओं ने फ़ेक न्यूज़ का जमकर इस्तेमाल करते हुए अप्रवासियों, मुस्लिमों और लातिन लोगों व अश्वेतों के ख़िलाफ़ नफ़रत का माहौल बनाया जिसने ट्रम्प की जीत में अहम भूमिका निभायी। इसी तरह से यूरोप के तमाम देशों में भी अप्रवासियों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने में फ़ेक न्यूज़ का जमकर इस्तेेमाल किया जा रहा है। ब्रिटेन में यूरोपीय संघ से अलग होने के लिए हुए जनमतसंग्रह के दौरान भी फ़ेक न्यूज़ का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया गया। लेकिन भारत में फ़ेक न्यूज़ की परिघटना जिस क़दर फैल रही है उसकी मिसाल दुनिया में शायद ही किसी और देश में देखने को मिले। इसकी वजह यह है कि भारत में अधिकांश फ़ेक न्यूज़ संघ जैसे काडर आधारित फ़ासिस्ट संगठन के द्वारा संगठित तरीके से फैलाया जा रहा है जिसकी पहुँच देश के कोने-कोने तक है।

अर्नब गोस्वामी के रिपब्लिक टीवी के ख़िलाफ़ दिशा का विरोध प्रदर्शन

खुद को पत्रकारिता का ठेकेदार समझने वाले अर्नब गोस्वामी के नये समाचार चैनल रिपब्लिक टीवी (जिसमेंं सबसे ज्यादा पैसा भाजपा के एम.पी. राजीव चंद्रशेखर ने लगाया है) ने दिल्ली विश्वविद्यालय में दिशा छात्र संगठन द्वारा लगाये गये पोस्टरों को आई.एस.आई.एस. जैसे आतंकवादी समूह का समर्थक बताते हुए 28 मई 2017 को ख़बर प्रसारित की। इस ख़बर में रिपब्लिक टीवी ने बेहद ही ग़ैरजिम्मेदाराना तरीके से दिशा के पोस्टर, जिन पर ‘भगत सिंह के सपनो को साकार करने’, ‘शिक्षा है सब का अधिकार, बन्द करो इसका व्यापार’, ‘दिशा का रास्ता, भगत सिंह का रास्ता’ लिखा था की तस्वीरें अपने टीवी चैनल पर दिखाते हुए उन्हें आई.एस.आई.एस. का बताया।

स्त्री को एक वस्तु बनाकर पेश कर रहा सिनेमा

सिनेमा में औरतों को उस रूप में पेश किया जाता है जिस रूप में पूँजीवादी व्यवस्था उन्हें देखती है। मौजूदा व्यवस्था के लिये औरत एक भोगने की वस्तु है और उसका जिस्म नुमाइश लगाने की चीज़ है जिसको बाज़ार में कई तरह का माल बेचने के लिये इस्तेमाल किया जाता है। ऐसी औरत की तो मनुष्य के तौर पर कोई पहचान ही नहीं है बल्कि जिन मर्दों के मन में स्त्री का ऐसा अक्स बनता है वे भी मनुष्य होने की संवेदना गँवा चुके और पशु बन चुके हैं। मौजूदा समाज में स्त्री को मनुष्य का दर्ज़ा दिलवाने के लिये उन सामाजिक सम्बन्धों को तोड़ना ज़रूरी है जिनके केन्द्र में मुनाफा और इसके साथ जुड़ी हर तरह की वहशी हवस है। इस सामाजिक व्यवस्था को बदलने के साथ-साथ सिनेमा और कला और साहित्य के अन्य माध्यमों में भी स्त्रियों की इस तरह की पेशकारी के ख़िलाफ़ आन्दोलन चलाया जाना चाहिए और इन क्षेत्रों में मज़दूर वर्ग के नज़रिये वाले साहित्य, कला और सिनेमा को ये लोगों में ले जाया जाना चाहिए जिन में स्त्रियाँ और मर्द आज़ादी, समानता के साथ भी सब मानवीय भावनाओं के साथ लबरेज़ मनुष्यों के रूप में सामने आते हैं। यानी सामाजिक सम्बन्धों के ख़िलाफ़ लड़ाई के साथ-साथ अपनी पूरी आत्मिक दौलत के साथ मनुष्य होना क्या होता है, यह भी लोगों को सिखाया जाना चाहिए।

इण्टरनेट की बुरी लत

एक इण्टरनेट छुड़ाओ केन्द्र में इलाज़ करा रहा 21 वर्षीय नौजवान बताता है कि: “मैं महसूस करता हूँ कि यह तकनीक मेरी ज़िन्दगी में बहुत खुशियाँ लेकर आयी है और कोई भी काम मुझे इतना उत्तेजित नहीं करता और आराम नहीं देता जितना कि यह तकनीक देती है। जब मैं उदास होता हूँ तो मैं खुद को अकेला करने और दुबारा खुश होने के लिये इस तकनीक का इस्तेमाल करता हूँ। जो नौजवान वर्ग ‘नये’ जैसे प्यारे शब्द को जिन्दा रखता है, जिनके पास नये कल के सपने, नये संकल्प, नयी इच्छाएँ, नया प्यार और नये विश्वास होते हैं वही नौजवान आज बेगानगी और अकेलेपन से दुखी होकर आभासी यथार्थ की राहों पर चल रहे हैं जिसका अन्त अत्यन्त बेगानगी में होता है।