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भगतसिंह के जन्मदिवस के अवसर पर ‘शहीदेआज़म भगतसिंह विचार यात्रा’

आज भगतसिंह को याद करने का मतलब महज रस्मअदायगी नहीं है। भगतसिंह ने खुद कहा था कि हमारी लड़ाई महज गोरी लूट के खि़लाफ नहीं है हम हर प्रकार को शोषण के विरुद्ध हैं। आज आजादी के 65वर्ष बाद भी यदि लोगों को बुनियादी सुविधाएं मुहैया नहीं हैं तब ऐसी आजादी पर प्रश्न चिन्ह लगना लाजिमी है।

दिल्ली में ‘स्कूल बचाओ अभियान’ की शुरुआत

स्कूली शिक्षा बच्चों के जीवन की बुनियाद होती है जहाँ वह सामाजिक होना, इतिहास, कला आदि से परिचित होता है। अमीरी और ग़रीबी में बँटे हमारे समाज का यह फ़र्क देश के स्कूलों में भी नज़र आता है। जहाँ एक तरफ़ पैसों के दम पर चलने वाले प्राईवेट स्कूलों में अमीरों के बच्चों के लिए ‘फाइव-स्टार होटल’-मार्का सुख-सुविधाएँ उपलब्ध हैं, वही दूसरी ओर सरकार द्वारा चलाये जा रहे ज़्यादातर स्कूलों की स्थिति ख़स्ताहाल है। केन्द्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय और सैनिक स्कूल जैसे कुलीन सरकारी स्कूलों को छोड़ दिया जाये, तो सरकारी स्कूल सरकार द्वारा ही तय विद्यालय मानकों का पालन नहीं करते। ज़्यादातर सरकारी स्कूलों में साफ़ पीने के पानी की व्यवस्था तक नहीं है, सभी बच्चों के बैठने के लिए डेस्क नहीं हैं, कक्षाओं में पंखों तक की व्यवस्था नहीं है; वहीं अमीरज़ादों के स्कूलों में पीने के पानी के लिए बड़े-बड़े ‘आर.ओ. सिस्टम’, खेलने के लिए बड़े मैदान, कम्प्यूटर रूम, लाइब्रेरी और यहाँ तक कि कई स्कूलों में स्विमिंग पूल व घुड़सवारी की भी व्यवस्था है!

शहीदेआज़म भगतसिंह के 81वें शहादत दिवस पर सांस्कृतिक कार्यक्रम

शहीद भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव के 81वें शहादत दिवस पर दिल्ली में नौजवान भारत सभा के बैनर तले 23 मार्च, 2012 को खजूरी चौक पर शहीदों को याद करते हुए एक पोस्टर-पुस्तक प्रदर्शनी लगाई गई। सुबह नौभास के सदस्य और शहीद भगतसिंह पुस्तकालय से जुड़े बच्चों की टीम साईकिल पर नारे लगाते हुए खजूरी चौक पहुँची। करावलनगर की बहुसंख्यक आबादी खजूरी चौक से होते हुए ही अपने काम पर जाती है। चौक के एक किनारे पटरी पर लगी इस प्रदर्शनी में शहीद भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव की बड़ी तस्वीर लगाई गई थी। कुछ अलग पोस्टरों से भगतसिंह और उनके साथियों की राजनीतिक-वैचारिक यात्रा को भी बताया गया था। प्रदर्शनी को काफी नागरिकों ने सराहा और उत्साहवर्धन किया।

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट के जन्मदिवस पर नौजवान भारत सभा द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन

10 फरवरी को जर्मनी के प्रसिद्ध नाटककार तथा संस्कृतिकर्मी बर्टोल्ट ब्रेष्ट के 114वें जन्मदिवस पर ‘नौजवान भारत सभा’ के द्वारा एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के अन्तर्गत ब्रेष्ट व कई अन्य क्रान्तिकारी धारा के अन्य कवियों की कविताओं का पाठ किया गया तथा गौहर रज़ा की प्रसिद्ध डॅाक्युमेण्टरी फिल्म ‘जुल्मतों के दौर में’ का प्रदर्शन भी किया गया।

महँगाई के मुद्दे पर नौभास ने द्वारा विचार विमर्श चक्र का आयोजन

मौजूदा समय में देशभर में तेजी से बढ़ती महँगाई ने आम जनता का जीना दूभर कर दिया हैं। केन्द्र सरकार के तमाम दावों के बावजूद देशभर में महँगाई कम नहीं हो पा रही है नौजवान भारत सभा ने दिल्ली के करावल नगर में 13 नवम्बर, 2011 को इसी मुद्दे पर एक विचार-विमर्श आयोजित किया गया। शहीद भगतसिंह पुस्तकालय में हुए इस विचार-विमर्श का विषय था. बेलागम होती महंगाई. कारण और समाधान। इस विमर्श में इलाके के छात्रों, नागरिकों और अध्यापकों ने भाग लिया। विमर्श में आये अशोक शर्मा ने कहा कि महंगाई बढ़ने का एक कारण बताया कि विज्ञापनों द्वारा गै़र-ज़रूरी चीजों को अत्यधिक प्रचारित कर माल-अन्धभक्ति पैदा की जाती है और अत्यधिक ज़रूरी बताया जाता है। आठवीं कक्षा के विद्यार्थी रामकुमार का कहना था कि कहीं न कहीं सरकारी नीतियाँ इसके लिए जिम्मेदार हैं। जो धनिक वर्ग से जुड़े कामों पर ज्यादा खर्चा करती है। पर उसकी वसूली सभी लोगों से की जाती है।

गणतन्‍त्र दिवस पर विचार-विमर्श…

संविधान के जन्म के ऐतिहासिक विकास से यह स्पष्ट है कि जनवाद की बात करने वाला यह भारतीय संविधान ज़मींदार और उच्च अभिजात्य कुलीन वर्ग का मानसपुत्र है। जो आज तक सच्चे और निष्ठापूर्ण तरीक़े से देश के शासकों और पूँजीपतियों की सेवा कर रहा है। आज अगर भारत की आम मेहनतकश जनता, भुखमरी और आत्महत्या के कगार पर खड़े किसानों को सच्चे मायने में जनवाद और जनतन्त्र चाहिए, जो उसके जीने की सच्ची आज़ादी को सुनिश्चित करे तो आज एक बार फिर सार्विक मताधिकार पर आधारित सच्चे जनप्रतिनिधियों द्वारा संविधान सभा बुलाने की माँग को उठाना होगा; जो सम्पत्ति पर आधारित किसी भी चुनाव प्रक्रिया का अंग न हो।

काकोरी के शहीदों की याद में ‘अवामी एकता मार्च’

आज देश एक भयंकर संकट के दौर से गुज़र रहा है तो दूसरी तरफ देश के नेता-नौकरशाह जनता की गाढ़ी कमाई को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। यह वर्ष घोटालों और भ्रष्टाचार का वर्ष रहा और एक बार फिर देश की जनता के स्वप्न और शहीदों के मंसूबों को तार-तार किया गया। देश के हुक्मरान आये-दिन मेहनतकशों को धर्म-जाति के नाम पर बाँट रहे हैं। ऐसे में अशफ़ाक, बिस्मिल, रोशन सिंह, राजेन्द्र सिंह लाहिड़ी की शहादत को याद करने का एक ही मकसद है कि आज देश के नौजवानों के सामने शिक्षा, चिकित्सा, रोज़गार के ऐसे सवाल हैं जिनकों लेकर एकजुट होना होगा; तभी सच्ची आज़ादी आयेगी।

‘जागो फि़र एक बार’

निराला का पूरा जीवन रचनाकार की जनपक्षधरता व विचारों के साथ बिना समझौता किये जीने के लिए समर्पित था। उन्होंने निःसंकोच कई बार अपनी ही मान्यताओं को खण्डित किया। उनकी प्रबल मान्यता थी कि जीवन की गतिकी में जो कुछ भी बाधक है, वह त्याज्य है। यह सब उनकी रचनाओं में व्याप्त है, चाहे वह बन्धनमुक्त छन्दों की बात हो या ‘कुल्ली भाट’ के माध्यम से समाज पर सवाल खड़ा करने और उसकी पश्चगामी रूढ़िवादिता पर चोट करने का सवाल हो। आज जब साहित्य के नाम पर निरर्थक बहसों और कलावाद का घटाटोप छाया हुआ है, ऐसे में निराला को जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास और साहित्य को जनसंस्कृति से जोड़ने की ज़रूरत शिद्दत से महसूस की जा रही है।

नौजवान भारत सभा की पुलिस दमन–विरोधी मुहिम

‘नौजवान भारत सभा’ ने इस पुलिसिया दमन के खिलाफ़ आवाज़ उठाते हुए ‘पुलिस दमन विरोधी मुहिम’ चलाई। नौभास ने माँग की कि परमेश्वर की हिरासत में हुई मौत की उच्चस्तरीय जाँच की जाए, दोषी पुलिस कर्मियों को तत्काल निलम्बित किया जाए और उन पर हत्या का मुकदमा चलाया जाए, और परमेश्वर के मोहल्ले से गिरफ़्तार लोगों को तत्काल रिहा किया जाए। इसके ख़िलाफ़ 17 मार्च की शाम को करावलनगर में एक जनसभा की गई। पुलिस को बेनकाब करते हुए पर्चा बांटा गया। फ़िर हस्ताक्षर अभियान चलाकर करीब दो हजार हस्ताक्षर वाला माँगपत्रक 21 मार्च को पुलिस आयुक्त मुख्यमंत्री उपराज्यपाल, अध्यक्ष मानवाधिकार आयोग, को सौंपा गया।