हमारा आख़िरी जवाब – कुतर्कों, कठदलीली, कूढ़मग़ज़ी और कुलकपरस्ती की पवनचक्की के पंखों में गोल-गोल घिसट रहे दोन किहोते दि ला पटना और “यथार्थवादी” बौड़म मण्डली
जैसे ही हम किसी भी प्रश्न पर उनकी मूर्खतापूर्ण अवस्थिति को इंगित कर आलोचना का प्रकाश उस पर डालते हैं वह मेंढक की तरह कुद्दियाँ मारकर अपनी अवस्थिति बदल लेते हैं! सबएटॉमिक कण का व्यवहार प्रेक्षण में ऐसा ही होता है। अगर उसका संवेग (momentum) पता चलता है तो अवस्थिति (position) नहीं पता चलती और अगर अवस्थिति पता चल जाती है तो संवेग पता नहीं चलता है। माटसाब की नज़र में अक्तूबर क्रान्ति में धनी किसान-कुलक वर्ग सहयोगी हैं भी और नहीं भी, ‘किसान बुर्जुआज़ी’ पूंजीपति वर्ग है भी और नहीं भी, समाजवादी समाज में श्रमशक्ति माल है भी और नहीं भी! उनकी अवस्थिति श्रोडिंगर की बिल्ली की तरह मृत भी है और जीवित भी है!