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जन संगठन, विचारधारा और पहचान की राजनीति से सम्बन्धित प्रश्नों पर ‘दिशा’ और ‘बाप्सा’ के बीच चली बहस में ‘दिशा’ का जवाब

जन संगठन, विचारधारा और पहचान की राजनीति से सम्बन्धित प्रश्नों पर ‘दिशा’ और ‘बाप्सा’ के बीच चली बहस में ‘दिशा’ का जवाब प्रिय पाठको, हाल ही में जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय…

‘सेपियन्स’ की आलोचना: चेतना के उद्भव तथा मानव प्रजाति का हरारी द्वारा पूँजीवादी संस्कृति के अनुसार सारभूतीकरण

‘सेपियन्स’ की आलोचना: चेतना के उद्भव तथा मानव प्रजाति का हरारी द्वारा पूँजीवादी संस्कृति के अनुसार सारभूतीकरण सनी युवल नोआ हरारी की किताब ‘सेपियन्स’ पर बात करते हुए हमने पिछली…

पेपर लीक के लिए भाजपा सरकार, प्रशासन और शिक्षा माफ़ियाओं का नापाक गठजोड़ ज़िम्मेदार है!!

पेपर लीक के लिए भाजपा सरकार, प्रशासन और शिक्षा माफ़ियाओं का नापाक गठजोड़ ज़िम्मेदार है!! अविनाश (इलाहाबाद) फ़ासीवादी मोदी सरकार का शासनकाल छात्रों-युवाओं के लिए किसी भयानक दुःस्वप्न से कम…

लोकसभा चुनाव के नतीजे और छात्रों-युवाओं के कार्यभार

लोकसभा चुनाव के नतीजे और छात्रों-युवाओं के कार्यभार सम्पादकीय लोकसभा चुनावों के नतीजे आ चुके हैं। येन-केन-प्रकारेण मोदी का तीसरी बार प्रधानमन्त्री बनने का सपना चन्द्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार…

मेटामॉरफ़ॉसिस

मैं सोचता हूँ कि रात भर वह नेता क्या सोच रहा होगा! ऐसा क्या हुआ कि सुबह उठते ही उसे वह सरकार इतनी पसन्द आने लगी जिसे रात में वह गाली दे रहा था। रात में उसे देश में हर जगह महँगाई-बेरोज़गारी दिख रही थी, सुबह उठने के बाद उसे देश में विकास दिखने लगा। कल तक सर्वधर्म समभाव की बात कर रहा था, आज सुबह से सनातन ख़तरे में दिखने लगा। रात भर में उसे यह दिव्य दृष्टि कहाँ से मिल गयी, सोते-सोते यह बोधिज्ञान कहाँ से प्राप्त हो गया, जो अब तक लुप्त था। क्या पता वो रात में यही सोचते-सोचते सो गया हो कि जीवन में आज तक आगे बढ़ने के लिए क्या-क्या किया और भविष्य में आगे बढ़ने के लिए क्या करना है! रात को वह सोया और सुबह उठा तो ख़ुद को एक क़िस्म के तिलचट्टे में बदला हुआ पाया। हो गया मेटामॉरफ़ॉसिस! मेटामॉरफ़ॉसिस की प्रक्रिया क्या होती है यह भी जान लीजिए! सबसे पहले रीढ़ की हड्डी मुड़ना शुरू हो जाती है और धीरे-धीरे ग़ायब हो जाती है। आँखें छोटी-छोटी हो जाती हैं, कान फैलकर चमगादड़ जैसे हो जाते हैं। हाथ-पैर छोटे-छोटे, दाँत नुकीले और और छाती-पेट सब फूलकर गोल हो जाते हैं। दिमाग़़ भी सिकुड़कर बिलकुल छोटा हो जाता है।

नूँह दंगा और सरकारी दमन : एक रिपोर्ट

नूँह दंगा और सरकारी दमन : एक रिपोर्ट भारत बिगुल मज़दूर दस्ता की टीम कुछ अन्य जन संगठनों व बुद्धिजीवियों के साथ नूँह में फैक्ट फाइण्डिंग के लिए गयी। इस…

आपस में नहीं, सबको रोज़गार की गारण्टी के लिए लड़ो!

अब इन आँकड़ों की रोशनी में सोचिए! जब सरकारी प्राथमिक विद्यालय रहेंगे ही नहीं तो क्या सारे बीटीसी वालों को नौकरी दी जा सकती है? या अगर बीएड अभ्यर्थियों को योग्य मान भी लिया जाय तो सभी को रोज़गार दिया जा सकता है? दरअसल आज नौकरियाँ ही तेज़ी से सिमटती जा रही हैं। निजीकरण छात्रों-नौजवानों के भविष्य पर भारी पड़ता जा रहा है। रेलवे, बिजली, कोल, संचार आदि सभी विभागों को तेज़ी से धनपशुओं के हवाले किया जा रहा है। अगर इस स्थिति के ख़िलाफ़ कोई देशव्यापी जुझारू आन्दोलन नहीं खड़ा होगा तो यह स्थिति और ख़राब होगी। इसलिए ज़रूरी है कि आपस में लड़ने की जगह रोज़गार गारण्टी की लड़ाई के लिए कमर कसी जाय।

सेपियंस : युवल नोआ हरारी के प्रतिक्रियावादी बौद्धिक कचरे और सड़कछाप लुगदी को मिली विश्‍वख्‍याति

अफ़सोस की बात है कि बहुत से प्रगतिशील लोग इस पुस्‍तक को इतिहास और मानव की उत्‍पत्ति समझने हेतु पढ़ और पढ़वा रहे हैं। स्‍कूल तथा कॉलेज के छात्र अक्सर पॉपुलर विज्ञान की क़िताबों को पढ़कर विज्ञान की नयी खोजों तथा ब्रह्माण्‍ड के रहस्यों को जानना चाहते हैं, वे भी आजकल हरारी की क़िताब के ज़रिये विज्ञान की अधकचरी और ग़लत समझदारी बना रहे हैं। युवल नोआ हरारी विशुद्ध मूर्ख है जो विज्ञान और इतिहास के जटिल प्रश्‍नों के लिए चना जोर गर्म रास्‍ता सुझाता है। लेकिन उसकी मूर्खता भी आज एक बड़ी आबादी में विभ्रम फैला रही है और हुक्‍मरानों की ही राजनीति की नुमाइश करती है।

अमृतकाल में बढ़ते स्त्री-विरोधी अपराध

वैसे तो देश की सभी चुनावबाज़ पार्टियों में स्त्री-विरोधी अपराधी बैठे हुए हैं लेकिन भाजपा ने इस मामले में भी सबको पीछे छोड़ दिया। हाल की बलात्कार की तमाम घटनाओं में इनसे जुड़े हुए लोगों की भागीदारी ने भाजपा के स्त्री हितैषी होने के झूठ को तार-तार कर दिया है और इनका असली चेहरा आम जनता के सामने बेनक़ाब किया है।