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नूँह दंगा और सरकारी दमन : एक रिपोर्ट

नूँह दंगा और सरकारी दमन : एक रिपोर्ट भारत बिगुल मज़दूर दस्ता की टीम कुछ अन्य जन संगठनों व बुद्धिजीवियों के साथ नूँह में फैक्ट फाइण्डिंग के लिए गयी। इस…

आपस में नहीं, सबको रोज़गार की गारण्टी के लिए लड़ो!

अब इन आँकड़ों की रोशनी में सोचिए! जब सरकारी प्राथमिक विद्यालय रहेंगे ही नहीं तो क्या सारे बीटीसी वालों को नौकरी दी जा सकती है? या अगर बीएड अभ्यर्थियों को योग्य मान भी लिया जाय तो सभी को रोज़गार दिया जा सकता है? दरअसल आज नौकरियाँ ही तेज़ी से सिमटती जा रही हैं। निजीकरण छात्रों-नौजवानों के भविष्य पर भारी पड़ता जा रहा है। रेलवे, बिजली, कोल, संचार आदि सभी विभागों को तेज़ी से धनपशुओं के हवाले किया जा रहा है। अगर इस स्थिति के ख़िलाफ़ कोई देशव्यापी जुझारू आन्दोलन नहीं खड़ा होगा तो यह स्थिति और ख़राब होगी। इसलिए ज़रूरी है कि आपस में लड़ने की जगह रोज़गार गारण्टी की लड़ाई के लिए कमर कसी जाय।

सेपियंस : युवल नोआ हरारी के प्रतिक्रियावादी बौद्धिक कचरे और सड़कछाप लुगदी को मिली विश्‍वख्‍याति

अफ़सोस की बात है कि बहुत से प्रगतिशील लोग इस पुस्‍तक को इतिहास और मानव की उत्‍पत्ति समझने हेतु पढ़ और पढ़वा रहे हैं। स्‍कूल तथा कॉलेज के छात्र अक्सर पॉपुलर विज्ञान की क़िताबों को पढ़कर विज्ञान की नयी खोजों तथा ब्रह्माण्‍ड के रहस्यों को जानना चाहते हैं, वे भी आजकल हरारी की क़िताब के ज़रिये विज्ञान की अधकचरी और ग़लत समझदारी बना रहे हैं। युवल नोआ हरारी विशुद्ध मूर्ख है जो विज्ञान और इतिहास के जटिल प्रश्‍नों के लिए चना जोर गर्म रास्‍ता सुझाता है। लेकिन उसकी मूर्खता भी आज एक बड़ी आबादी में विभ्रम फैला रही है और हुक्‍मरानों की ही राजनीति की नुमाइश करती है।

अमृतकाल में बढ़ते स्त्री-विरोधी अपराध

वैसे तो देश की सभी चुनावबाज़ पार्टियों में स्त्री-विरोधी अपराधी बैठे हुए हैं लेकिन भाजपा ने इस मामले में भी सबको पीछे छोड़ दिया। हाल की बलात्कार की तमाम घटनाओं में इनसे जुड़े हुए लोगों की भागीदारी ने भाजपा के स्त्री हितैषी होने के झूठ को तार-तार कर दिया है और इनका असली चेहरा आम जनता के सामने बेनक़ाब किया है।

साक्षी की हत्या को ‘लव जिहाद’ बनाने की संघ की कोशिश को किया गया असफल

वास्तव में, ‘लव जिहाद’ कोई मसला है ही नहीं। ‘लव जिहाद’ तो बहाना है, जनता ही निशाना है। मोदी सरकार जनता को रोज़गार नहीं दे सकती, महँगाई से छुटकारा नहीं दिला सकती, खुले तौर पर अडानी-अम्बानी के तलवे चाटने में लगी है और सिर से पाँव तक भ्रष्टाचार में लिप्त है, तो वह उन असली मसलों पर बात कर ही नहीं सकती, जो आपकी और हमारी ज़िन्दगी को प्रभावित करते हैं। शाहाबाद डेरी में संघ के ‘लव जिहाद’ के प्रयोग को असफल कर दिया गया।

मिथक को यथार्थ बनाने के संघ के प्रयोग

इतिहास का निर्माण जनता करती है। फ़ासिस्ट ताक़तें जनता की इतिहास-निर्मात्री शक्ति से डरती हैं। इसलिए वे न केवल इतिहास के निर्माण में जनता की भूमिका को छिपा देना चाहती हैं, बल्कि इतिहास का ऐसा विकृतिकरण करने की कोशिश करती हैं जिससे वह अपनी विचारधारा और राजनीति को सही ठहरा सकें। संघ परिवार हमेशा से ही इतिहास का ऐसा ही एक फ़ासीवादी कुपाठ प्रस्तुत करता रहा है। 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस की घटना इस फ़ासीवादी मुहिम की एक प्रतीक घटना है।

भाजपा की साम्प्रदायिक फ़ासीवादी राजनीति की आग में जलता मणिपुर

उपरोक्त कारकों के अलावा मणिपुर की हालिया हिंसा में एक नया और बड़ा कारण मणिपुर में संघ परिवार व भाजपा की मौजूदगी और उसका फ़ासीवादी प्रयोग रहा है। ग़ौरतलब है कि मणिपुर में 2017 से ही भाजपा की सरकार है जिसका इस समय दूसरा कार्यकाल चल रहा है। पिछले छह वर्षों में संघ परिवार ने सचेतन रूप से मणिपुर में मैतेयी राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने और उसे हिन्दुत्ववादी भारतीय राष्ट्रवाद से जोड़ने के तमाम प्रयास किये हैं।

बार-बार हो रही रेल दुर्घटनाओं का कारण क्या है?

इन तथ्यों की रोशनी में समझा जा सकता है कि बढ़ती रेल दुर्घटनाओं के पीछे मानवीय चूकों की जगह ढाँचागत कमियाँ ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं। रेल दुर्घटनाओं को रोकने के लिए तमाम सुरक्षा उपायों का समुचित इस्तेमाल ही नहीं किया जा रहा है।
बढ़ती रेल दुर्घटनाओं का दूसरा प्रमुख कारण ट्रेनों के विशाल नेटवर्क को संचालित करने के लिए कर्मचरियों की कमी है। वास्तव में, नवउदारवादी नीतियों के लागू होने के बाद के 32 वर्षों में और ख़ास तौर पर मोदी सरकार के पिछले 9 वर्षों में, रेलवे में नौकरियों को घटाया जा रहा है, जो नौकरियाँ हैं उनका ठेकाकरण और कैजुअलीकरण किया जा रहा है। नतीजतन, ड्राइवरों समेत सभी रेल कर्मचारियों पर काम का भयंकर बोझ है। कई जगहों पर ड्राइवरों को गाड़ियाँ रोककर झपकियाँ लेनी पड़ रही हैं क्‍योंकि 18-18, 20-20 घण्‍टे बिना सोये लगातार गाड़ी चलाने के बाद दुर्घटना की सम्‍भावना बढ़ जाती है।

फ़ासीवादी साम्प्रदायिक उन्माद और आत्महत्या करते बेरोज़गार छात्र-युवा

लेकिन इस साम्प्रदायिक उन्माद के शोर में जनता के ऊपर हो रही बहुत सारी तकलीफ़ों की बारिश की तरह बेरोज़गारी की भयानक मार सहते हुए निराश, अवसादग्रस्त छात्रों-युवाओं की रिकॉर्डतोड़ आत्महत्याएँ और उनके परिवार की चीख़ें दब गयीं। मौजूदा व्यवस्था और उसके रहनुमाओं की नीतियों से निकलने वाला बेरोज़गारी का बुलडोज़र आम घरों के बेटे-बेटियों के भविष्य और सपनों को रौंदता हुआ दौड़ रहा है, चाहे वो जिस मज़हब और जाति के हों! अभी हाल ही में मोदी सरकार ने अग्निपथ योजना के ज़रिये बहुत से छात्रों-युवाओं की उम्मीदों पर बुलडोज़र चढ़ा दिया है और आगे अन्य विभागों में भी छात्रों-युवाओं की उम्मीदों पर बुलडोज़र चढ़ना तय है।

‘द कश्मीर फ़ाइल्स’: कश्मीरी पण्डितों की त्रासदी दिखाने की आड़ में मुस्लिमों और वामपन्थियों के ख़िलाफ़ नफ़रत को चरम पर ले जाने का हिन्दुत्ववादी हथकण्डा

फ़िल्म में धूर्ततापूर्ण तरीक़े से यह सच्चाई भी छिपायी गयी है कि जिस दौर में कश्‍मीरी पण्डितों के साथ सबसे घृणित अपराध हुए उस समय दिल्ली में वी.पी.सिंह की सरकार थी जो भाजपा के समर्थन के बिना एक दिन भी नहीं चल सकती थी। लेकिन भाजपा ने कश्मीरी पण्डितों पर होने वाले ज़ुल्मों के मुद्दे पर सरकार से समर्थन वापस नहीं लिया। फ़िल्म में उस दौर को कुछ इस तरह से प्रस्तुत किया गया है मानो उस समय राजीव गाँधी की कांग्रेसी सरकार हो। यह भी दिखाता है कि फ़‍िल्मकार का मक़सद सच दिखाना नहीं बल्कि संघ परिवार का प्रोपागैण्डा फैलाना है।