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साम्प्रदायिक-फ़ासीवादियों ने “लव जिहाद” के नाम पर फैलाये जा रहे झूठ को पहुँचाया क़ानून निर्माण तक

देश के पाँच राज्यों में तथाकथित लव जिहाद के विरोध के नाम पर क़ानून बनाने के ऐलान हो चुके हैं। जिन पाँच राज्यों में “लव जिहाद” के नाम पर क़ानून बनाने को लेकर देश की सियासत गरमायी हुई है वे हैं: उत्तरप्रदेश, हरियाणा, मध्यप्रदेश, असम और कर्नाटक। कहने की ज़रूरत नहीं है कि उपरोक्त पाँचों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की खुद की या इसके गठबन्धन से बनी सरकारें कायम हैं। उत्तरप्रदेश की योगी सरकार तो नया क़ानून ला भी चुकी है लेकिन इसने बड़े ही शातिराना ढंग से इसका नाम ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध क़ानून – 2020’ रखा है जिसमें लव जिहाद शब्द का कोई ज़िक्र तक नहीं है।

‘नयी शिक्षा नीति 2020’: लफ़्फ़ाज़ि‍यों की आड़ में शिक्षा को आमजन से दूर करने की परियोजना

नयी शिक्षा नीति 2020 लागू होने के बाद उच्च शिक्षा के हालात तो और भी बुरे होने वाले हैं। पहले से ही लागू सेमेस्टर सिस्टम, एफ़वाईयूपी, सीबीडीएस, यूजीसी की जगह एचईसीआई इत्यादि स्कीमें भारत की शिक्षा व्यवस्था को अमेरिकी पद्धति के अनुसार ढालने के प्रयास थे। अब विदेशी शिक्षा माफ़ि‍या देश में निवेश करके अपने कैम्पस खड़े कर सकेंगे और पहले से ही अनुकूल शिक्षा ढाँचे को सीधे तौर पर निगल सकेंगे। शिक्षा के मूलभूत ढाँचे की तो बात ही क्या करें यहाँ तो शिक्षकों का ही टोटा है। केन्द्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों में क़रीब 70 हजार प्रोफ़ेसरों के पद ख़ाली हैं।

पूँजीवादी व्यवस्था के पैरोकारों द्वारा फैलाये जाने वाले बेरोज़गारी के “कारणों” की पड़ताल

बेरोज़गारी के संकट का ज़िम्मेदार जनता को ही ठहराने के लिए सबसे ज़्यादा उचारा जाने वाला जुमला होता है, “जनसँख्या बहुत बढ़ गयी है, संसाधन हैं नहीं! अब ‘बेचारी’ सरकार किस-किसको रोज़गार दे!” किन्तु अफ़सोसजनक बात यह है कि इस जुमले में कोई दम नहीं है और यह झूठ के सिवाय कुछ भी नहीं है। कोई भी वस्तु जब कम या ज़्यादा होती है तो वह अन्य वस्तु के साथ तुलना में कम या ज़्यादा होती है। निरपेक्ष में कुछ भी छोटा या बड़ा नहीं होता। इसी तरह जनसँख्या को भी संसाधनों की तुलना में ही देखा जाना चाहिए। उत्पादन का स्वरूप, उपजाऊ ज़मीन, समुद्र, नदियाँ, खनिज पदार्थ इत्यादि की तुलना में ही जनसँख्या को रखा जा सकता है।