स्वयं एक भ्रष्टाचार है पूँजीवाद
अगर एक बार को यह मान भी लिया जाये कि कोई घोटाला-रहित पूँजीवाद सम्भव है तो भी पूँजीवादी व्यवस्था जिस रूप में मेहनतकश जनता को लूटकर अमीरज़ादों की तिजोरियाँ भरती है, वह एक भ्रष्टाचार है। यह एक ऐसा भ्रष्टाचार है जो पूँजीवादी संविधान और कानून-व्यवस्था द्वारा मान्यता-प्राप्त है। मुनाफा कमाने और पूँजी संचय करना या दूसरे शब्दों में कहें तो निजी सम्पत्ति खड़ी करने का अधिकार पूँजीवादी व्यवस्था के तहत एक मूलभूत अधिकार होता है। निजी मुनाफा कमाने की यह पूरी प्रक्रिया मज़दूरों के शोषण पर आधारित होती है। इसमें मज़दूर समस्त भौतिक सम्पदा का अपनी मेहनत के बूते उत्पादन तो करता है लेकिन उस पर उसका कोई अधिकार या नियन्त्रण नहीं होता है।