केजरीवाल एण्ड पार्टी के “आन्दोलन” से किसको क्या मिलेगा?
जो भी ताक़त महज़ भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाती है, मुनाफे पर टिकी पूरी पूँजीवादी व्यवस्था को नहीं, वह जनता को धोखा दे रही है। भ्रष्टाचार-मुक्त पूँजीवाद एक मध्यवर्गीय भ्रम है। पूँजीवाद वैसा ही हो सकता है जैसा कि वह है। केजरीवाल और अण्णा हज़ारे जैसे लोगों का काम जाने-अनजाने इसी पूँजीवादी व्यवस्था की उम्र को लम्बा करना है। इसके लिए वह भ्रष्टाचार को एकमात्र समस्या के रूप में और भ्रष्टाचार के किसी कानून के जरिये या “ईमानदार” पार्टी के सत्ता में आने के जरिये ख़ात्मे को सभी दिक्कतों के समाधान के रूप में पेश करते हैं। भ्रष्टाचार का अपने आपमें कोई अर्थ नहीं है, ठीक वैसे ही जैसे मानवाधिकारों, तानाशाही, आतंकवाद आदि जैसी श्रेणियों का अपने आपमें कोई अर्थ नहीं हैं। ये खोखले शब्द हैं और अपने आपमें ये कुछ भी नहीं बताते जब तक कि इनके साथ कोई विशेषण नहीं लगता। भ्रष्टाचार को एकमात्र समस्या के तौर पर पेश करना हमारे समाज में मौजूद असली आर्थिक लूट और सामाजिक अन्याय को छिपाता है और ‘सुशासन’ को एकमात्र मसला बना देता है।