पूँजीपतियों के लिए सुशासन जनता के लिए भ्रष्ट प्रशासन
सत्या
तमाम चुनावी मदारी जनता को बरगलाने के लिए नये-नये नुस्ख़े ईजाद करते रहते हैं। बिहार में भाजपा व जद (यू) के गठबन्धन वाली सरकार के मुख्यमन्त्री नितीश कुमार इस खेल के काफी मँझे हुए खिलाड़ी हैं। अपने इस कार्यकाल की शुरुआत में उन्होंने ‘‘जनता को रिपोर्ट कार्ड’‘ देने की परम्परा शुरू की थी, जिसे अब केन्द्र सरकार भी निभा रही है। रिपोर्ट कार्ड नामक मायावी जाल इसलिए बुना जाता है, ताकि इसके लच्छेदार शब्दों व भ्रामक आँकड़ों को सुनने के बाद जनता अपनी वास्तविक समस्याओं को भूलकर विकास के झूठे नारे पर अन्धी होकर नाचती रहे।
ऐसा ही एक रिपोर्ट कार्ड 9 जुलाई को नितीश कुमार ने अपनी सरकार के 55 महीने 2 सप्ताह पूरा होने पर जारी किया, जिसका शीर्षक था ‘न्याय के साथ विकास-यात्रा का पाँचवाँ वर्ष’। इस कार्ड में नितीश कुमार ने सबसे ज़्यादा ज़ोर राज्य की सुधरी हुई न्याय-व्यवस्था व आर्थिक वृद्धि दर (2004-09 के बीच 11-03 प्रतिशत) पर दिया है। वैसे तो पूरा रिपोर्ट कार्ड ही झूठ का पुलिन्दा है और इसकी पोल खोलने के लिए एक पुस्तिका लिखने की ज़रूरत पड़ेगी, लेकिन फिलहाल नीतीश के कुछ मुख्य दावों की जाँच-पड़ताल ही ज़रूरी है।
कानून व न्याय-व्यवस्था – नितीश कुमार ने बिहार की जनता को आश्वासन देते हुए बताया – ‘‘अब लोग अपराधियों से नहीं डरते बल्कि अपराधी कानून से डरते है’‘। वैसे ये ‘लोग’ कौन हैं जो अपराधियों से नहीं डरते, इस बारे में नितीश कुमार ही बता सकते हैं (शायद राज्य में निवेश करने वाले बड़े पूँजीपतियों की बात कर रहे हैं नितीश जी, जिन्हें राज्य सरकार ख़ूब सुरक्षा दे रही है), लेकिन आँकड़े दिखाते हैं कि राज्य में अपराध बदस्तूर जारी है (तालिका 1)।
तालिका 1
2001 से जून 2010 तक बिहार में अपराध के आँकड़े
वर्ष 2001 2003 2005 2007 2009 2010
संज्ञेय अपराध 95942 98298 104778 118176 133525 70361
हत्या 3619 3652 3423 2963 3152 1679
डकैती 1293 1203 1191 646 654 315
दंगा 8520 8189 7704 7996 8554 4892
अपहरण 1689 1956 2226 2092 3142 1875
बलात्कार 746 804 973 1122 929 409
दलितों, महिलाओं व आदिवासियों के प्रति होने वाले अपराधों में भी ख़ासा बढ़ोत्तरी हुई है, जिससे पता लगता है कि नितीश का सुशासन दरअसल दुःशासन है (तालिका 2)।
तालिका 2
महिलाओं व आदिवासियों के खि़लाफ अपराध के आँकड़े
वर्ष 2004 2005 2006 2007 2008 वार्षिक वृद्धि दर
2004-2008
बलात्कार 1063 973 1083 1122 1041 1.01
बलात्कार (अजा-जजा) 9 22 20 11 25 14.46
महिलाओं का अपहरण 756 884 925 1184 1490 17.93
छेड़छाड़ 192 140 201 69 188 -7.22
वैसे नितीश जी के ख़ुद के मन्त्रीमण्डल में भी अपराधियों की संख्या कम नहीं हैं। 2005 में बिहार चुनाव में सतर्कता आयोग को सौंपे गये शपथपत्र (Affidavits) के अनुसार 19 मन्त्रियों में से 10 के खि़लाफ आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। ग़ौरतलब है कि 28 मन्त्रियों में से सिर्फ 19 ने ही शपथपत्र दिया था। कुछ मन्त्रियों के खि़लाफ तो हत्या के प्रयास, दंगा-फसाद जैसे मुकदमे भी चल रहे हैं।
स्वास्थ्य सुविधाएँ – नितीश ने दावा किया कि – ‘’सरकारी अस्पतालों में अब डॉक्टर तैनात हो गये हैं व अस्पतालों में लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है।’‘ लेकिन बिहार ही उन कुछ राज्यों में शामिल है, जहाँ पर अभी भी कालाजार जैसी बीमारियाँ महामारी के रूप में आती रहती हैं। यह एक ऐसी बीमारी है, जो अत्यन्त गन्दगी व कुपोषण के कारण फैलती है। बिहार में सबसे अधिक मुसहर (दलित जाति) जाति के लोग इस बीमारी से पीड़ित मिले। 2007 में बिहार के उत्तरी गंगा क्षेत्र के जिलों में 37,738 लोगों में कालाजार पाया गया। मुज़फ्ऱफरपुर और वैशाली नामक दो जिलों में जहाँ 2007 में कालाजार के मरीजों की संख्या 4559 थी, वहीं 2008 में बढ़कर 5,561 हो गयी। अगर कुपोषण की बात की जाये तो बिहार काफी आगे है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (3) 2006 के आँकड़े बताते हैं कि 6 से 35 महीने के 87-4% बच्चे ख़ून की कमी से पीड़ित हैं। 3 साल से कम उम्र के 50% बच्चे बाधित विकास (आयु के अनुसार वज़न में कमी), 54-9% बच्चे ‘अण्डरवेट’ (क्षरित विकास व बाधित विकास का संयुक्त माप) के शिकार हैं। 15 से 49 वर्ष तक की शादीशुदा महिलाओं में से 68-3% के अन्दर ख़ून की कमी (एनीमिया) है।
वैसे तो ये सारे आँकड़े चीख़-चीख़कर बिहार की जनता की बदहाली की कहानी बता रहे हैं, लेकिन मुनाफे की लूट पर टिकी इस व्यवस्था के पैरोकार जब जनता के सामने जाते हैं, तो कुछ अलग आँकड़े पेश करते हैं, ताकि लोग वास्तविक स्थिति को जान न सके। माननीय नितीश महोदय भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं।
भ्रष्टाचार के कीर्तिमान – वैसे तो नितीश जी ने यह कहकर खानापूर्ति कर ली कि ‘’योजनाओं, कार्यक्रमों और दफ्तरों से भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए विशेष पहल की गयी है’‘, लेकिन कुछ ही दिनों बाद नितीश कुमार, उपमुख्यमन्त्री सुशील कुमार मोदी व अन्य मन्त्रियों पर 11,412 करोड़ के घोटाले का आरोप लगा जिसमें विशेष अदालत ने उन पर मुकदमा चलाने की अनुमति भी दे दी है। यह घोटाला उन्होंने विभिन्न जनकल्याण की योजनाओं जैसे सड़क, बिजली, राशन इत्यादि में किया है। और हद तो तब हो गयी, जब 2008 में कोसी विभीषिका के समय भी भ्रष्टाचार की तमाम ख़बरें आयीं कि बाढ़ जैसी आपदा के मौके पर भी प्रशासन अपनी जेबें भरने में लगा रहा, जबकि दूसरी तरफ लोग भूख, अभाव से दम तोड़ते रहे।
तो आखि़र किसका विकास? – माइक्रोसॉफ्ट कम्पनी के प्रमुख बिल गेट्स बिहार की प्रशंसा करते हुए कहते हैं – ‘’यह वह बिहार नहीं जो पहले हुआ करता था। अब सड़कें दिखती हैं, योजनाएँ दिखती हैं, ख़तरनाक बीमारियों से बचाने वाले टीके भी लोगों को लग रहे हैं।’‘ इससे साफ पता चलता है कि बिहार वर्तमान में देश-विदेश के मुनाफाख़ोर लुटेरों की पसन्दीदा लूटस्थली बना हुआ है जिसमें उनकी सहायता यहाँ की सरकार व पूरा तन्त्र कर रहा है। बिहार राज्य निवेश प्रोत्साहन परिषद द्वारा अब तक कुल 1,171 करोड़ रुपये के 342 प्रस्तावों पर सहमति दी जा चुकी है। बिहार को इथेनॅाल हब के रूप में विकसित करने के लिए परिषद ने एक संयुक्त उपक्रम ‘इण्डिन गैसहोल’ को निवेश की मंजूरी दी है, जो बिहार के 10 जिलों में ज़्यादा से ज़्यादा गन्ने व मक्के की खेती को प्रोत्साहन देगा। इस गन्ने व मक्के का उपयोग इथेनॉल बनाने में किया जायेगा, जो बाद मे पेट्रोल में मिलाने के लिए पेट्रोलियम कम्पनियों को बेचा जायेगा। एक देश में जहाँ 9000 बच्चे रोज़ाना भूख व कुपोषण से मरते हों, हर तीसरे व्यक्ति को एक वक़्त का खाना मयस्सर न होता हो, वहाँ पर कुछ अमीरों की ऐयाशी के लिए खाद्यान्नों का बायोफ्यूल उत्पादन में प्रयोग करना दिखा देता है कि सरकारें किसके पक्ष में खड़ी हैं। आज देश के कोने-कोने में जनता की गाढ़ी कमाई से इकट्ठा किये गये राजस्व से पूँजीपतियों को बेलआउट पैकेज दिये जा रहे हैं। साथ में ऐसे तरीके खोजे जा रहे हैं जिससे ये मुनाफे पर टिकी व्यवस्था कुछ दिन और जिन्दा रह सके। जब लोग सरकार के ऐसे कृत्यों के खि़लाफ खड़े होते हैं तो उन्हें रिपोर्ट कार्ड जैसे झुनझुने थमाकर यह बताया जाता है कि देखो, यह सारा विकास तुम्हारे लिए ही तो है। लेकिन इस व्यवस्था को बचाने के चाहे कितने ही प्रयत्न कर लिये जायें, अन्ततः इसे इतिहास के कूड़ेदान में जाना ही है। व्यापक मेहनतकश अवाम की लूट पर टिकी यह व्यवस्था मज़दूरों और ग़रीब किसानों के फौलादी मुक्के के प्रहार से ढहनी ही है। एक न्यायप्रिय व्यवस्था, एक सुन्दर समाज हमारा इन्तज़ार कर रहा है। लेकिन उसके लिए आज व्यापक मेहनतकश अवाम को एक करके इस सड़ी-गली व्यवस्था को उखाड़ फेंकना होगा।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जुलाई-अक्टूबर 2010
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