चुनावी पार्टियों के अरबों की नौटंकी भी नहीं रोक सकी महँगाई डायन के कहर को!
महँगाई के विरोध में भाजपा द्वारा आयोजित रैली के एक दिन पहले मैं अपने कुछ मित्रों के साथ नयी दिल्ली स्टेशन जा रहा था। पूरा शहर मानो भगवा रंग में डुबो दिया गया था। सड़कों, गलियों, दीवारों को बड़े-बड़े होर्डिंग, पोस्टर, वाल राइटिंग, झण्डे और चमचमाते चमकियों से पाट दिया गया था। अख़बारों के पन्ने का भी रंग रैली के विज्ञापनों से सराबोर था। स्टेशन का दृश्य भी कुछ वैसा ही था। जगह-जगह स्वागत डेस्क और सहायता डेस्क लगे हुए थे जहाँ पर कार्यकर्ता चमकते-दमकते कपड़ों में जूस और स्वादिष्ट व्यंजनों का रसास्वदन कर रहे थे। उन्हें देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि महँगाई का ज़रा भी असर उनकी सेहत पर नहीं था, उल्टे कुछ की तो कुम्भकरणा स्वरूपम काया थी जिसे देखकर तो मँहगाई डायन भी मूर्छित हो जाती! प्लेटफार्म पर खड़े कुछ लोग बता रहे थे कि कई जगहों से पूरी ट्रेन रिज़र्व होकर रैली के लिए आ रही है। वहीं मज़दूरों की छोटी-बड़ी टोलियाँ भी स्वागत डेस्क के करीब से गुज़र रही थी। यह वह आबादी थी जिस पर मँहगाई डायन ने अपना कहर बरपाया है, जिसे यह भव्य आयोजन खाये-पिये व्यक्ति के द्वारा आयोजित एक भव्य नौटंकी से ज़्यादा कुछ नहीं दिखायी पड़ता होगा।