तीन राज्यों के आगामी विधानसभा चुनाव: तैयारियाँ, जोड़-तोड़ और सम्भावनाएँ
भाजपा अगले पाँच वर्षों में, पहले लोकलुभावन नारों-वायदों की लहर के सहारे और फिर हिन्दुत्व और अन्धराष्ट्रवाद के कार्डों के सहारे देश के ज़्यादा से ज़्यादा राज्यों की सत्ता पर काबिज़ होना चाहती है ताकि नवउदारवादी एजेण्डा को अधिक से अधिक प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके। इस आर्थिक एजेण्डा के साथ-साथ निरंकुश दमन तथा साम्प्रदायिक विभाजन, मारकाट तथा शिक्षा और संस्कृतिकरण के हिन्दुत्ववादी फ़ासिस्ट एजेण्डा का भी अमल में आना लाजिमी है। इसका मुकाबला बुर्जुआ संसदीय चुनावों की चौहद्दी में सम्भव ही नहीं। मज़दूर वर्ग और व्यापक मेहनतकश जनता तथा मध्यवर्ग के रैडिकल प्रगतिशील हिस्से की जुझारू एकजुटता ही इसका मुकाबला कर सकती है। फासीवाद अपनी हर सूरत में एक धुर प्रतिक्रियावादी सामाजिक आन्दोलन होता है। एक क्रान्तिकारी प्रगतिशील सामाजिक आन्दोलन ही उसका कारगर मुकाबला कर सकता है और अन्ततोगत्वा उसे शिकस्त दे सकता है।