निजी पूँजी का ताण्डव नृत्य जारी, लुटती जनता और प्राकृतिक संसाधन!
पिछले दो दशकों के दौरान भारतीय पूँजीवाद का सबसे मानवद्रोही चेहरा उभरकर हमारे सामने आया है। उत्पादन के हर क्षेत्र में लागू की जा रही उदारीकरण-निजीकरण की नीतियाँ, एक तरफ मुनाफे और लूट की मार्जिन में अप्रत्याशित वृद्धि दरें हासिल करा रही हैं, वहीं दूसरी ओर आम जनजीवन से लेकर पर्यावरण के ऊपर सबसे भयंकर कहर बरपा करने का काम भी कर रही हैं। भारतीय खनन उद्योग इन नीतियों की सबसे सघन प्रयोग-भूमि बनकर उभरा है। यही कारण है कि कभी रेड्डी बन्धुओं के कारण, तो कभी सरकार द्वारा चलाये जा रहे ‘ऑपरेशन ग्रीन हण्ट’ के कारण खनन उद्योग लगातार चर्चा में रहा है।