Category Archives: गतिविधि बुलेटिन

नौजवान भारत सभा दिल्ली का प्रथम राज्य सम्मेलन सफलतापूर्वक सम्पन्न

नौजवान भारत सभा, दिल्ली ने 30 सितम्बर रविवार को सोनिया विहार में अपना प्रथम राज्य सम्मलेन सफलतापूर्वक सम्पन्न किया। सम्मेलन की शुरुआत शहीद भगतसिंह को उनके 111वें जन्मदिवस (28 सितम्बर, 2018) पर याद करते हुए उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण और ‘विहान’ द्वारा ‘मेरा रंग दे बसंती चोला ..’ गीत से हुई। सम्मेलन की औपचारिक शुरुआत संयोजक की ओर से दिल्ली में 2005 से अब तक के कार्यों की रिपोर्ट पेश कर की गयी। संयोजक की रिपोर्ट पर नौभास के सदस्यों द्वारा बातचीत रखी गर्इ। इसके बाद दिल्ली राज्य कमेटी तथा पदाधिकारियों का चुनाव हुआ। नौभास सदस्यों द्वारा दिल्ली राज्य कमेटी में विशाल, भारत, भास्कर, करन, राकेश, अदिति, खालिद, हाशिम और योगेश चुने गये।

ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन का प्रथम सम्मेलन सफलतापूर्वक सम्पन्न

7 अक्टूबर, 2018 को गुड़गाँव में ‘ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन’ के बैनर तले ‘ऑटोमोबाइल मज़दूर सम्मेलन’ का सफल आयोजन किया गया। इस आयोजन में गुड़गाँव, धारूहेड़ा, मानेसर इत्यादि इलाकों से ऑटोमोबाइल क्षेत्र के मज़दूरों ने शिरकत की। यूनियन के संयोजक अनंत ने सम्मेलन की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहा कि ऑटोमोबाइल सेक्टर में मज़दूर आन्दोलन पिछले लम्बे समय से एक गतिरोध का शिकार है। इस सेक्टर में पिछले 2 दशकों में मालिक वर्ग-प्रशासन को चुनौती देने वाले आन्दोलन पूरी ऊर्जा के साथ खड़े हुए लेकिन मुकाम तक पहुँच पाने में नाकामयाब रहे। उन्होंने आगे कहा कि बावल से लेकर गुड़गाँव तक रजिस्टर्ड यूनियनों के ऊपर हमले किये गये हैं और छंटनी की तलवार ठेका मज़दूरों के साथ अब स्थायी मजदूरों के सर पर भी लटक रही है। इन्हीं परिस्थितियों में पिछले एक दशक से जारी मज़दूर आन्दोलन के संघर्षों का निचोड़ निकालने के उद्देश्य से इस सम्मेलन का आयोजन किया गया था। ठेका मजदूरों को गोलबन्द करने के साथ ही ठेका और स्थायी मज़दूरों की एकता की ज़रूरत पर बल दिया गया।

काकोरी एक्शन के शहीदों की शान में कार्यक्रम

काकोरी एक्शन के शहीदों के शहादत के अवसर पर रोहतक, हरियाणा में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इसके तहत महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय के पुस्तकालय के लॉन में पोस्टर एवं पुस्तक प्रदर्शनी का आयोजन किया तथा काकोरी एक्शन के शहीदों की याद में निकाले गये परचे का व्यापक वितरण किया गया।

इलाहबाद विश्वविद्यालय में छात्रावास की माँग को लेकर संघर्ष  

इलाहाबाद विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्ज़ा मिले 12 साल बीत चुके हैं। वर्तमान में यहाँ 26000 छात्र पढ़ते हैं, विश्वविद्यालय के डीएसडब्ल्यू (डीन स्टूडेंट वेलफेयर) के अनुसार विश्वविद्यालय केवल 3801 छात्रों को हॉस्टल मुहैया कराता है। बाकी के छात्र महँगे किराए पर आसपास के इलाकों में किराये पर कमरा लेकर रहने के लिए बाध्य है।

शहीद-ए-आज़म भगतसिंह के जन्मदिवस (28 सितम्बर) के अवसर पर रोहतक में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन

पाँच दिन तक चले इस अभियान के दौरान वक्ताओं ने विस्तारपूर्वक लोगों से अपनी बात साझा की। अभियान के दौरान वक्ताओं ने बताया कि भगतसिंह और उनके साथियों के लिए आज़ादी की लड़ाई का मतलब था; क्रान्ति के द्वारा मेहनतकश जनता का राज स्थापित करना, जिसमें उत्पादन, राजकाज और समाज के पूरे ढाँचे पर आम मेहनतकश जनता काबिज हो। अपने क्रान्तिकारी संगठनों ‘एच.आर. ए.’, ‘एच. एस.आर.ए.’ और नौजवान भारत सभा के घोषणापत्रों में, अदालतों में दिये गये बयानों में, लेखों और जेलों से भेजे गये सन्देशों में भगतसिंह और उनके साथियों ने बार-बार इस बात को साफ़ किया था कि वे लोग मेहनतकशों के राज के हिमायती थे।

पटना में “महान अक्टूबर क्रान्ति, समाजवादी संक्रमण की समस्याएँ और इक्कीसवीं सदी की नई समाजवादी क्रान्तियाँ” विषय पर एक व्याख्यान का आयोजन

अक्टूबर क्रान्ति शतवार्षिकी समिति द्वारा गत 23 दिसम्बर को पटना में “महान अक्टूबर क्रान्ति, समाजवादी संक्रमण की समस्याएँ और इक्कीसवीं सदी की नई समाजवादी क्रान्तियाँ” विषय पर एक व्याख्यान का आयोजन किया गया था, जिसमे वक्ता के तौर पर मार्क्सवादी विचारक, राजनीतिक कार्यकर्ता व मजदूर बिगुल अख़बार के सम्पादक अभिनव सिन्हा मौजूद थे ।

‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी कानून’ बनवाने के लिए जन-संगठनों ने फूँका संघर्ष का बिगुल

हालिया अख़बारी ख़बरों के हवाले से यह बात सामने आयी है कि केन्द्र में बैठी भाजपा नीत राजग सरकार पाँच साल से खाली पड़े पदों को समाप्त करने की ठान चुकी है। कहाँ तो चुनाव से पहले करोड़ों रोज़गार देने के ढोल बजाये जा रहे थे कहाँ अब खाली पदों पर काबिल युवाओं को नियुक्त करने की बजाय पदों को ही समाप्त करने के लिए कमर कस ली गयी है। देश के प्रधानमन्त्री से लेकर सरकार के आला मन्त्रीगण बहकी-बहकी बातें कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि ‘शाम तक 200 रुपये के पकोड़े बेचना भी काफ़ी बेहतर रोज़गार है’ और इसके लिए भी सरकार बहादुर अपनी पीठ थपथपा रही है!

अक्टूबर क्रान्ति शतवार्षिकी समिति द्वारा सोवियत समाजवाद और स्त्रियाँ – एक समकालीन पुनरावलोकन विषय पर पटना में व्याख्यान का आयोजन

बेहद कठिन परिस्थिति में सम्पन्न अक्टूबर क्रान्ति के पहले प्रयोग ने मात्र चार दशकों में स्त्री मुक्ति की यात्रा में जो ऊँचाइयाँ तय की वह आगे भी एक आलोकित शिखर के समान चमकता रहेगा और आने वाली क्रान्तियों को भी दिशा दिखाता रहेगा. अक्टूबर क्रान्ति की शिक्षा हमें बताती है कि पूँजीवादी आर्थिक संरचना को नष्ट किये बिना और समाजवादी समाज की स्थापना के बिना स्त्रियों की वास्तविक मुक्ति हासिल नहीं की जा सकती. इसके लिये स्त्री मुक्ति आन्दोलन को सामाजिक मुक्ति से जोड़ना होगा और सामाजिक आन्दोलन के एजेंडे पर स्त्री प्रश्न को प्रमुखता से स्थान देना होगा. 

पटना में पिंजड़ा तोड़ अभियान की शुरुआत

करीब एक महीने तक चले इस अभियान के तहत अन्त में यूनिवर्सिटी कैंपस में 6 मार्च को एक रैली का आयोजन भी किया गया जिसकी शुरुआत एन आयी टी मोड़ से हुई। ऐन उसी वक़्त जब कुछ लड़कियाँ रैली में शामिल होने आ रही थी कि पटना साइंस कॉलेज परिसर में ही कुछ लड़कों ने उनके साथ बादतमीजी की। इस घटना के जवाब में सारी लड़कियाँ पटना साइंस कॉलेज गेट के सामने इकट्ठी हो गयी व नारेबाज़ी करने लगे। हल्ला सुनकर कुछ ही देर बाद आये कॉलेज प्रिंसिपल ने एक लिखित कम्प्लेंट फाइल देने को कहा। उन्होंने यह तक कहा कि बिना लिखित में दिये वह कोई कार्यवाही नहीं करेंगे! मामले पर अगले ही दिन एक लिखित कम्प्लेंट दायर की गयी। इस घटना पर आक्रोशित लड़कियाँ काफी देर तक साइंस कॉलेज गेट पर जुटी रहीं व नारेबाज़ी करती रहीं। अन्त में रैली पटना कॉलेज गेट पर पहुँची। दोबारा वहाँ सभा की गयी व कुछ गानों और ज़ोरदार नारों के साथ रैली ख़त्म हुई।

पंजाब यूनिवर्सिटी के छात्रों का बहादुराना संघर्ष ज़िन्दाबाद

11 अप्रैल की घटना के बाद संघर्ष को पीठ दिखाकर ‘जॉइंट एक्शन कमेटी’ से बाहर हो जाने वाले संगठनों –सोई, स्टूडैंट काउंसिल, एन.एस.यू.आयी, पुसु, ए.बी.वी.पी, आदि –जो 11 अप्रैल के पथराव वाली घटना का सारा दोष छात्रों पर मढ़ रहे थे और खासकर आरएसएस का छात्र संगठन एबीवीपी तो निजी तौर पर संघर्षशील छात्रों को निशाना बना रहा था ताकि पुलिस उनको गिरफ़्तार कर ले। ये लोग अब बेहद बेशर्मी साथ इस जीत का सेहरा अपने सिर बाँधना चाहते हैं। परन्तु छात्र जानते हैं कि कौन खरा है, कौन पूरे संघर्ष दौरान छात्रों का पक्ष लेता रहा है और कौन प्रशासन और सरकार का टट्टू बन बैठा रहा है! इस जीत ने न सिर्फ़ छात्रों के मन में ऊर्जा का संचार किया है, बल्कि एक क्रान्तिकारी संगठन की ज़रूरत का एहसास भी पक्का किया है। साथ ही, इस संघर्ष ने अपना नाम चमकाने के लिये बैठे संगठनों का चरित्र भी नंगा किया है।