Category Archives: गतिविधि बुलेटिन

हरियाणा में चला जाति तोड़ो अभियान

नौजवान भारत सभा (कलायत इकाई) द्वारा कलायत के सजूमा रोड स्थित हरिजन धर्मशाला में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। मंच संचालन नौभास के बण्टी ने किया। कार्यक्रम की शुरूआत में नौभास के उमेद ने बताया की राहुल सांकृत्यायन का पूरा जीवन जनता की चेतना को जगाने और पुरानी नकारात्मक परम्पराओं, रूढ़ियों, तर्कहीनता के खिलाफ सतत प्रचण्ड प्रहार करते रहे। राहुल जी का जीवन का सूत्र वाक्य था ‘भागो नहीं दुनिया को बदलो’ तभी अपनी अन्तिम साँस तक राहुल की लेखनी और यात्राएँ लगातार जारी रही। लेकिन बड़े अफसोस की बात है कि आज की युवा पीढ़ी के राहुल के जनपक्षधर और रूढ़िभंजक विद्रोही साहित्य से परिचित नहीं है जिसका मुख्य कारण मौजूद सत्ताधारी भी हैं जिनकी हमेशा यही कोशिश रहती है कि जनता के सच्चे सिपाहियों के परिवर्तनकामी विचारों को दबाया या कुचला जा सके। ताकि जनता की चेतना को कुन्द बनाकर उस पर अपने शासन को मजबूत किया जा सके। लेकिन इतिहास ने भी ये बार-बार साबित किया है कि जनता के सच्चे जननायकों के विचार लम्बे समय नीम-अंधेरे में दबे नहीं रह सकते। इसलिए नौजवान भारत सभा जनता की चेतना जगाने के लिए राहुल सांकृत्यायन के यथास्थिति बदलने वाले विचारों को लेकर जनता तक जाती रहेगी।

‘वाम को प्रतिक्रियात्मक रक्षावाद से आगे बढना होगा’

दक्षिणपंथी उग्रवाद के अन्य रूपों से अलग, फासीवाद एक जनान्दोलन है जिसका कि एक सामाजिक जनाधार है जिसमें मुख्यत परिवर्ती वर्ग आते हैं, जैसे पेशेवर और गैर-पेशेवर निम्न बुर्जुआ वर्ग जिसे जर्मन ‘मितेलस्टैण्ड’ कहते थे, जिसमें निम्न व्यवसायियों, छोटे व्यापारियों, दलाल, प्रोपर्टी डीलरों, दुकानदारों व निम्न मध्यम वर्ग के अन्य हिस्सों का पूरा वर्ग शामिल है। इसके अतिरिक्त, फासीवाद के सामाजिक आधार में लम्पट सर्वहारा के एक हिस्से के साथ ही असंगठित मज़दूर वर्ग, खासकर वो जिसमें किसी मजदूर संगठन, जैसे ट्रेड यूनियन में कोई राजनीतिक शिक्षा पाने का अभाव होता है, भी शामिल हैं। पूँजीवाद के विरुद्ध संघर्ष में निम्न मध्य वर्ग सर्वहारा वर्ग का एक सम्भावित सहयोगी है। हालांकि, क्रान्तिकारी ताकतों के एक संगठित हस्तक्षेप के अभाव में यह अक्सर उनकी राजनीतिक पहुँच से बाहर छूट जाता है जो कि बदले में इसे फासीवादी राजनीति की ओर ले जाता है, विशेषकर राजनीतिक व आर्थिक संकट के समय में, क्योंकि इसकी नाजुक सामाजिक स्थिरता खतरे में पड जाती है और इसे इस बात की कोई समझदारी नहीं होती कि इस सामाजिक व आर्थिक असुरक्षा व अनिश्चितता के लिए कौन जिम्मेदार है? यह हताशा इस वर्ग को फासीवादी प्रचार के लिए विशेष रूप से भेद्य बना देती है।

‘फासीवाद के विरुद्ध लम्बी लड़ाई की सांस्कृतिक रणनीति बनानी होगी’

पिछले जिन 25 वर्षों के दौरान देश में हिन्‍दुत्‍ववादी कट्टरपंथ और उसीसे होड़ करते इस्‍लामी कट्टरपंथ का उभार हुआ है उन्‍हीं वर्षों के दौरान नवउदारवादी आर्थिक नीतियां भी परवान चढ़ी हैं, यह महज़ संयोग नहीं है। पूंजीवादी व्‍यवस्‍था के आर्थिक संकट के कारण बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई, अराजकता और भ्रष्‍टाचार से तबाह-परेशान आम जनता के सामने एक काल्‍पनिक शत्रु खड़ा करके और समस्‍याओं का एक फर्जी सरल समाधान प्रस्‍तुत करके फासिस्‍ट शक्तियां जनता में अपना आधार बढ़ाने में कामयाब हुई हैं। इनका मुकाबला करने के लिए हमें भी व्‍यापक अवाम के बीच जाकर इनके असली चेहरे का पर्दाफाश करना होगा, केवल महानगरों में और मध्‍य वर्ग के बीच रस्‍मी विरोध कार्रवाइयों से काम नहीं चलेगा और न ही सर्वधर्म समभाव की ज़मीन पर खड़ा होकर इनका सामाजिक आधार कमज़ोर किया जा सकता है। हमें फासीवाद की एक सही वैचारिक समझ बनानी होगी और यह समझना होगा कि दुनिया में पहले कहर बरपा कर चुके फासीवाद और आज हमारे सामने मौजूद फासीवाद के बीच क्‍या समानताएं हैं और क्‍या भिन्‍नताएं हैं। हमें समझना होगा कि अतीत की ‘पॉपुलर फ्रंट’ की रणनीति आज नहीं चल सकगी क्‍योंकि बुर्जुआ वर्ग का आज कोई भी हिस्‍सा ऐसा नहीं है जो फासीवाद के विरुद्ध लम्‍बी लड़ाई में हमारे साथ खड़ा होगा। फासीवाद की पूरी परिघटना को समझने के लिए मौजूद मार्क्‍सवादी लेखन के साथ ही हमें इसके सांस्‍कृतिक प्रतिरोध के वैचारिक पहलुओं पर अपनी नज़र साफ करने के लिए विशेषकर बर्टोल्‍ट ब्रेष्‍ट, वाल्‍टर बेन्‍यामिन, अन्‍र्स्‍ट ब्‍लोख और अदोर्नो की रचनाओं को पढ़ना चाहिए।

25 मार्च की घटना के विरोध में देश के अलग-अलग हिस्सों में आम आदमी पार्टी के विरोध में प्रदर्शन

25 मार्च की घटना के विरोध दिल्ली, पटना, मुम्बई और लखनऊ में विरोध प्रदर्शन हुए। 1 अप्रैल को दिल्ली के वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र के मज़दूरों ने ‘दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन’ के नेतृत्व में सैंकड़ों की संख्या में मज़दूरों ने रैली निकाली और इलाके के आप विधायक राजेश गुप्ता का घेराव किया। राजेश गुप्ता मज़दूरों की रैली के पहुँचने के पहले ही पलायन कर गये। इसके बाद मज़दूरों ने उनके कार्यालय के बाहर पुतला दहन किया और फिर वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में आम आदमी पार्टी के पूर्ण बहिष्कार का एलान किया।

हज़ारों इंसाफ़पसन्द लोगों ने दी बहादुर शहनाज़़ को भावभीनी श्रद्धांजलि

ढण्डारी (लुधियाना) बलात्कार व क़त्ल काण्ड विरोधी संघर्ष कमेटी के आह्वान पर 28 दिसम्बर को कड़ाके की सर्दी व सरकार द्वारा पूरे ढण्डारी इलाक़े को पुलिस छावनी में बदलकर दहशत का माहौल खड़ा करने के बावजूद हज़ारों लोगों के विशाल जनसमूह ने अपहरण, बलात्कार, मिट्टी का तेल डालकर जलाए जाने के दिल दहला देने वाले जुल्मों का शिकार व गुण्डा गिरोह के ख़िलाफ़ जूझती हुई मर-मिटने वाली बहादुर शहनाज़़ को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

रोहतक में निर्भया काण्ड के ख़िलाफ़ जन-अभियान व प्रदर्शन

पुलिस-प्रशासन की भूमिका आज अग्नि शमन विभाग से ज़्यादा नहीं रह गयी है। छेड़छाड़ और बलात्कार की दर्दनाक घटनाएँ हो जाने के बाद ही पुलिस-प्रशासन सकते में आता है। यदि इस देश की सरकारें स्त्रियों की सुरक्षा नहीं दे सकती, रोज़गार और शिक्षा नहीं दे सकती तो उनका काम क्या है? दूसरी बात आज समाज को पीछे ले जाने वाली ताक़तें भी समाज में सक्रिय हैं जो लड़कियों को घर की चार-दीवारी में ही कैद रखना चाहती हैं। इनके ख़िलाफ़ भी हमें एकजुट होना पड़ेगा, इनसे लोहा लेना पड़ेगा।

दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन के पंजीकरण के बाद वज़ीरपुर में मज़दूर हुँकार रैली

गरम रोला के मज़दूरों की हड़ताल से जन्मी यह यूनियन आज पूरी स्टील लाइन के मज़दूरों की यूनियन बन चुकी है। गरम रोला के आन्दोलन में 27 अगस्त की आम सभा में यह तय हुआ था कि ऐसी यूनियन बनानी होगी जो स्टील उद्योग के सभी तरह के काम करने वाले मज़दूरों का प्रतिनिधित्व करे। दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन ऐसी ही यूनियन के रूप में उभरकर सामने आयी। आज इसके सदस्य गरम रोला, ठण्डा रोला, तेज़ाब, तपाई, तैयारी, रिक्शा, पोलिश आदि यानी हर तरह के मज़दूर साथी हैं तथा सदस्यता संख्या में लगातार विस्तार हो रहा है।

एसओएल के छात्रों का दिल्ली सचिवालय पर प्रदर्शन

एस ओ एल यानी कि स्कूल ऑफ़ ओपन लर्निंग दिल्ली विश्वविद्यालय का पत्राचार शिक्षा विभाग है जिसमें लगभग साढे चार लाख छात्रों की बड़ी आबादी पढती है। इन छात्रों को अपनी शिक्षा सम्बन्धी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, मसलन कक्षाओं की कमी, लाइब्रेरी का न होना, कक्षाएं कम लगने की वजह से समय पर सिलेबस पूरा न होना और परीक्षा परिणाम का देर से घोषित किया जाना जिस कारण से एमए में दाख़िला न हो पाना; ये तमाम समस्याएँ हैं जिनसे छात्र जूझते रहते हैं और विश्वविद्यालय प्रशासन इस पर कोई कार्यवाई नहीं कर रहा है। छात्रों की समस्याओं के बारे में दिल्ली विश्वविद्यालय गंभीर नहीं है क्योंकि आम घरों से आने वाले इन छात्रों को विश्वविद्यालय छात्र मानता ही नहीं है।

दिल्ली सचिवालय पर अपनी माँगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे मेट्रो के ठेका मज़दूरों पर लाठी चार्ज

दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के ठेका मज़दूरों ने 3 मार्च को अपनी माँगों को लेकर दिल्ली सचिवालय पर बड़ी संख्या में प्रदर्शन किया परन्तु केजरीवाल सरकार ने मज़दूरों से मिलना तो दूर उल्टा उन पर लाठीचार्ज करवा दिया जिसके विरोध में मज़दूरों ने केजरीवाल का पुतला फूँका जबकि पहले मज़दूर वहाँ डीएमआरसी में व्याप्त भ्रष्टाचार का पुतला फूंकना चाहते थे। लाठीचार्ज के बावजूद जब मज़दूर डटे रहे तब जाकर श्रम मन्त्री के निजी सचिव ने मज़दूरों के प्रतिनिधि मण्डल ने मुलाकात की। डीएमआरसी में काम करने वाले टॉम (टिकट ऑपरेटिंग मशीन) ऑपरेटर, हाउसकीपर व सिक्योरिटी गार्ड नियमित प्रकृति का कार्य करने के बावजूद ठेके पर रखे जाते हैं। दिल्ली की शान मानी जाने वाली दिल्ली मेट्रो इन ठेका कर्मचारियों को अपना कर्मचारी न मानकर ठेका कम्पनियों यथा, जेएमडी, ट्रिग, एटूज़ेड, बेदी एण्ड बेदी, एनसीईएस आदि का कर्मचारी बताती है, जबकि भारत का श्रम क़ानून स्पष्ट तौर पर कहता है कि प्रधान नियोक्ता स्वयं डीएमआरसी है। ठेका कम्पनियाँ भर्ती के समय सिक्योरिटी राशि के नाम पर वर्कर्स से 20-30 हज़ार रुपये वसूलती हैं और ‘रिकॉल’ के नाम पर मनमाने तरीक़े से उन्हें काम से निकाल दिया जाता है। ज़्यादातर वर्कर्स को न्यूनतम मज़़दूरी, ई,सआई, पीएफ़ की सुविधाएँ नहीं मिलती हैं।

शहीद मेले में अव्यवस्था फैलाने, लूटपाट और मारपीट करने की धार्मिक कट्टरपंथी फासिस्टों और उनके गुण्डा गिरोहों की हरकतें

बवाना और होलम्बी में साम्प्रदायिक तनाव भड़काने की घटनाओं से सभी वाकिफ हैं। मजदूर बस्तियों में जो लम्पट नशेड़ी-गँजेड़ी अपराधी गिरोह मौजूद हैं, वे मौका पड़ने पर किन लोगों द्वारा इस्तेमाल किये जाते हैं, यह सभी जानते हैं? इन्हीं बस्तियों में ठेकेदारों, दलालों, सूदखोरों, दुकानदारों की एक ऐसी आबादी भी रहती है, जो गरीब मेहनतकशों को संगठित करने की हर कार्रवाई से नफरत करती है। इसके पहले भी ‘शहीद भगतसिंह पुस्तकालय’ पर ढेले-पत्थर फेंकने, पुस्तकालय का बोर्ड उतारने और पोस्टर फाड़ने की घटनाएँ घट चुकी हैं। इतना तय है कि ऐसे तमाम प्रतिक्रियावादियों से सड़कों पर मोर्चा लेकर ही काम किया जा सकता है। इनसे भिडंत तो होगी ही। जिसमें यह साहस होगा वही भगतसिंह की राजनीतिक परम्परा की बात करने का हक़दार है, वर्ना गोष्ठियों-सेमिनारों में बौद्धिक बतरस तो बहुतेरे कर लेते हैं।