इलाहबाद विश्वविद्यालय में छात्रावास की माँग को लेकर संघर्ष
बीते साल के पहले सत्र की शुरुआत में ही विश्वविद्यालय के विभिन्न पाठ्यक्रमों की फीस में 3 गुना तक का इजाफा कर दिया गया था। दिशा छात्र संगठन समेत विभिन्न प्रगतिशील और जनवादी छात्र संगठनों ने जब इस मुद्दे पर व्यापक संघर्ष चलाया तो प्रशासन को छात्रों की माँगों के आगे झुकने के लिए बाध्य होना पड़ा। लेकिन फीस वृद्धि वापस लेने के बाद ही इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हॉस्टल की फीस में दो गुना वृद्धि कर दी। इस फीस में व्यवसायिक दर से लिया जाने वाला 8000 रुपये बिजली के बिल के रूप में भी शामिल है। छात्रों ने इस वृद्धि के बारे में पहले ही अनुमान लगा लिया था। इसी वज़ह से पाठ्यक्रमों की फीस वापस कराते समय इस मुद्दे पर भी प्रशासन के साथ बातचीत की गयी थी, लेकिन तब तक कोई अधिसूचना न ज़ारी होने और हॉस्टल के मुद्दे के हाईकोर्ट में होने की बात कहकर पल्ला झाड़ता रहा। फीस वृद्धि के चुनावी पार्टियों के पिछलग्गू छात्रसंगठनों ने इस मुद्दे को उठाया, लेकिन छात्रसंघ चुनाव के बीतने के साथ ही यह मुद्दा भी दूसरे मुद्दों की तरह ठन्डे बस्ते में डाल दिया गया, लेकिन दिशा छात्र संगठन ने छात्रों के बीच में हॉस्टल की फीस के सवाल को छात्रों के बीच में जिंदा रखा।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्ज़ा मिले 12 साल बीत चुके हैं। वर्तमान में यहाँ 26000 छात्र पढ़ते हैं, विश्वविद्यालय के डीएसडब्ल्यू (डीन स्टूडेंट वेलफेयर) के अनुसार विश्वविद्यालय केवल 3801 छात्रों को हॉस्टल मुहैया कराता है। बाकी के छात्र महँगे किराए पर आसपास के इलाकों में किराये पर कमरा लेकर रहने के लिए बाध्य है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय की तरह इलाहाबाद शहर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी का एक बड़ा केन्द्र है, जहाँ पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार से वन डे एग्जाम और सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए बड़े पैमाने पर छात्र रहते हैं। अनुमान के मुताबिक इलाहाबाद शहर में बाहर से आकर रहने वाले छात्रों की संख्या 2 लाख से ज्यादा है। इन छात्रों को किराए के जिन कमरों में रहना पड़ता है, उनमें से बहुत से तो ऐसे हैं, जहाँ दिन में भी सूरज की रोशनी नहीं पहुँचती। इन अँधेरे कमरों में अपनी पूरी नौजवानी घिस देने के बाद छात्रों की एक बड़ी आबादी के हाथ निराशा ही आती है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों को भी बेरोजगारों की इन्ही कतारों में शामिल हो जाना पड़ता है।
इसके पहले तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हॉस्टल के आवंटन की प्रक्रिया देश के अन्य केन्द्रीय विश्वविद्यालयों से अलग थी। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रशासनिक अधिकारियों ने बताया कि स्नातक प्रथम वर्ष में हॉस्टल मिल जाने के बाद उसमें सात सालों के लिए सीट सुरक्षित हो जाती थी। लेकिन सात वर्ष बीतने के बाद भी विश्वविद्यालय के हॉस्टलों में अवैध रूप से क़ब्ज़ा बना रहता था। जिसका नतीजा ये था कि हर साल जिन गिने-चुने छात्रों को हॉस्टल की लिस्ट में जगह मिलती भी थी, उनमें से अधिकाँश को हॉस्टल के भीतर जगह नहीं मिलती थी। हर वर्ष आधा सत्र बीत जाने के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन और जिला प्रशासन मिलकर विश्वविद्यालय के छात्रावासों पर आधी रात में छापा मारकर अवैध कमरों को खाली कराता था, और नए छात्रों को हॉस्टल में जगह दिलाता था, लेकिन यह केवल रस्म अदायगी थी। अवैध छात्र, जो प्रशासन के प्रसाद से ही हॉस्टलों में क़ब्ज़ा जमाये हुए थे, उनको इन छापों की सूचना पहले ही मिल जाती थी और वो सूचना पाकर फ़रार हो जाते थे। छापेमारी के बाद वो फिर से अपनी-अपनी जगहों पर पहुँच जाते थे। कई बार तो प्रशासन ने छापेमारी से पहले बाक़ायदा विश्वाविद्यालय के छात्रसंघ भवन पर लाउडस्पीकर से घोषणा करके सूचना भी दी कि आज किस हॉस्टल में छापेमारी की जानी है।
पिछले सत्र में विश्वविद्यालय में दाखिला लेने वाले छात्रों को जब आधा सत्र बीत जाने के बाद भी जब हॉस्टल नहीं मिला तो दिशा छात्र संगठन समेत विश्वविद्यालय में काम करने वाले विभिन्न प्रगतिशील छात्र संगठनों ने ‘फोरम फॉर कैम्पस डेमोक्रेसी’ के बैनर तले विश्वविद्यालय में इस मुद्दे पर एक व्यापक आन्दोलन चलाया। आन्दोलन के दबाव और कोर्ट के हस्तक्षेप के चलते पिछले सत्र में सभी हॉस्टलों को वाश आउट कराया गया। इसके बाद इस सत्र में हॉस्टलों के अलाटमेंट से सम्बन्धित नए नियम बनाए गये और यह तय किया गया कि हर सत्र के अन्त में हॉस्टल खाली करा लिए जायेंगे और नए सत्र की शुरुआत में नए सिरे से हॉस्टल दिए जायेंगे। लेकिन इन सब क़वायदों के बावजूद नतीजा ज्यों का त्यों रहा। नए सत्र में स्नातक के प्रथम वर्ष में दाखिला लेने वाले कुछ छात्रों को तो हॉस्टल अलाट कर दिए गए थे, लेकिन कमरे खाली होने के बावजूद नयी लिस्ट ज़ारी नहीं की गयी। इतना ही नहीं, 6 महीना बीत जाने के बाद भी हॉस्टलों में मेस चालू नहीं कराये गए। कुछ हॉस्टलों में छात्रों ने खुद पहल लेकर अस्थायी तौर पर प्राइवेट वेंडरों को रखा है, लेकिन अधिकतर जगहों पर छात्र इधर-उधर से खाना खाकर बीमार होने को मजबूर हैं।
दिशा छात्र संगठन ने जब इस मुद्दे पर आन्दोलन की शुरुआत की तो पता चला कि कई छात्र हॉस्टल की लिस्ट का इन्तजार करने के बाद वापस लौट चुके हैं, क्योंकि कमरों का महँगा किराया चुका पाना उनके बस के बाहर की बात थी। आन्दोलन की शुरुआत में दिशा छात्र संगठन ने छात्रों के नाम एक अपील ज़ारी करके विभिन्न कक्षाओं और छात्र बहुल इलाकों में जाकर छात्रों के बीच इस पूरे मुद्दे पर विस्तार से बातचीत की, उसके बाद विश्वविद्यालय परिसर के भीतर सभा करके छात्रो को एकजुट किया गया और विश्वविद्यालय के डीएसडब्ल्यू का घेराव करके उनको ज्ञापन सौंपा। प्रशासन ने स्पष्ट तौर पर माँगों को मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद दिशा छात्र संगठन के कार्यकर्ताओं ने विश्वविद्यालय के डीएसडब्ल्यू के कार्यालय के सामने दो दिवसीय धरना दिया। आन्दोलन के दबाव में प्रशासन ने मेस आदि के चालू करवाने की प्रक्रिया तेज कर दी। प्रशासन ने छात्रों के सामने अपनी मजबूरी बताते हुए कहा कि इन माँगों पर वह भी सहमत है पर इन चीज़ों की माँग छात्रों को सरकार से करनी चाहिये। दो दिवसीय धरने के बाद एक बार फिर से छात्रों को एकजुट करके विभिन्न छात्रावासों और डेलीगेसियों में अभियान चलाने के बाद दिशा छात्र संगठन के कार्यकर्ताओं ने छात्रों की समस्याओं पर केन्द्रित नाटक ‘राजा का बाजा’ का मंचन किया। इसके बाद पुनः प्रशासन को ज्ञापन सौंपकर प्रशासन को उग्र आन्दोलन की चेतावनी दी गयी। इस बीच इन सवालों को लेकर दिशा छात्र संगठन के कार्यकर्ताओं ने विश्वविद्यालय के दौरे पर आयी एम.एच.आर.डी. की पाँच सदस्यीय टीम से भी मुलाक़ात की, जिन्होंने इस मुद्दे को ऊपर तक ले जाने की बात कही।
आन्दोलन के अगले चरण में दिशा छात्र संगठन के कार्यकर्ताओं द्वारा पुनः हॉस्टलों में जाकर छात्र-छात्राओं के बीच में हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा है, जिसको लेकर एम.एच.आर.डी. और केन्द्र सरकार को ज्ञापन सौंपा जायेगा, साथ ही इस मुद्दे पर कोर्ट में जनहित याचिका दायर करने की भी तैयारी की जा रही है।
दिशा छात्र संगठन द्वारा चलाये जा रहे आन्दोलन की माँगें:
- हॉस्टल के आवण्टन का काम शीघ्र पूरा किया जाय और आधा सत्र बीत जाने के बाद हॉस्टल की फीस भी आधी की जाय।
- आगामी सत्र से सत्र की शुरुआत के साथ ही हॉस्टल के आवण्टन का काम भी पूरा किया जाय।
- सभी छात्रों के लिए हॉस्टल का प्रबन्ध किया जाय और जिन छात्रों को हॉस्टल मुहैया नहीं कराया जा रहा है, उनके लिए पर्याप्त डेलीगेसी भत्ते का इन्तज़ाम किया जाय।
- सभी हॉस्टलों में फ़र्नीचर और मेस की सुविधा बहाल की जाय।
- हॉस्टल की फीस के पुराने नियम बहाल किये जायं।
- बिजली और मेस को पूर्णतः सब्सिडाईज़्ड किया जाय।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,जनवरी-फरवरी 2018
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