Category Archives: छात्र आन्‍दोलन

परिसरों में कम होता जनवादी स्पेस और बढ़ता प्रशासनिक दमन

यह सोचने वाली बात है कि अगर गुण्डागर्दी और अराजकता के बहाने छात्रसंघ पर प्रतिबन्ध लगाना उचित है तब तो इसी तर्क को आगे बढ़ाते हुए देश की संसद और विधानसभाओं, प्रशासनिक संस्थाओं आदि पर भी ताला जड़ देना चाहिए क्योंकि इन सभी संस्थाओं में गाली-गलौच, गुण्डागर्दी, भ्रष्टाचार और अपराध का बोलबाला है। लेकिन इन पर कभी प्रतिबन्ध नहीं लगाया जायेगा क्योंकि वह शासक वर्ग का अड्डा है।

आपस में नहीं, सबको रोज़गार की गारण्टी के लिए लड़ो!

अब इन आँकड़ों की रोशनी में सोचिए! जब सरकारी प्राथमिक विद्यालय रहेंगे ही नहीं तो क्या सारे बीटीसी वालों को नौकरी दी जा सकती है? या अगर बीएड अभ्यर्थियों को योग्य मान भी लिया जाय तो सभी को रोज़गार दिया जा सकता है? दरअसल आज नौकरियाँ ही तेज़ी से सिमटती जा रही हैं। निजीकरण छात्रों-नौजवानों के भविष्य पर भारी पड़ता जा रहा है। रेलवे, बिजली, कोल, संचार आदि सभी विभागों को तेज़ी से धनपशुओं के हवाले किया जा रहा है। अगर इस स्थिति के ख़िलाफ़ कोई देशव्यापी जुझारू आन्दोलन नहीं खड़ा होगा तो यह स्थिति और ख़राब होगी। इसलिए ज़रूरी है कि आपस में लड़ने की जगह रोज़गार गारण्टी की लड़ाई के लिए कमर कसी जाय।

जनवादी अधिकारों पर बढ़ता फ़ासीवादी हमला और कैम्पसों में घटता जनवादी स्पेस

जनवादी अधिकारों पर बढ़ता फ़ासीवादी हमला और कैम्पसों में घटता जनवादी स्पेस सम्पादकीय वर्तमान फ़ासीवादी दौर में जनता के लम्बे संघर्षों से हासिल सीमित जनवादी अधिकारों पर हमला बोल दिया…

नयी शिक्षा नीति पर अमल का असर: विश्वविद्यालयों में बढ़ती फ़ीस

जिस ‘नयी शिक्षा नीति’ का गुणगान करने में मोदी-योगी समेत पूरी फ़ासिस्ट मण्डली लगी हुई है, वह कुछ और नहीं बल्कि लफ़्फ़ाज़ियों की आड़ में शिक्षा को देशी-विदेशी पूँजीपतियों को सौंपने की नीति है। जैसे-जैसे नयी शिक्षा नीति पर अमल हो रहा है, वैसे-वैसे उसकी सच्चाई भी आम जनता के सामने खुलती जा रही है। मोदी की इस नयी शिक्षा नीति में उच्च शिक्षा के प्रशासनिक केन्द्रीकरण और वित्तीय स्वायत्तता पर ज़ोर दिया गया है जिसका असर अब जगह-जगह दिखने लगा है।

आईआईटी गुवाहाटी प्रशासन की तानाशाही

हर दौर में फ़ासीवाद कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों को अपना निशाना बनाता है, क्योंकि विश्वविद्यालय छात्रों के लिए जनवादी स्पेस होते हैं, जहाँ वे खुलकर अपनी सहमति व असहमति दर्ज़ करा सकते हैं, जहाँ वे बहस कर सकते हैं, सरकार से लेकर संस्थानों की कार्यप्रणालियों पर सवाल कर सकते हैं। इस जनवादी स्पेस को ख़त्म कर फ़ासीवादी ताक़तें प्रतिरोध के स्वर को दबाने का हर मुमकिन प्रयास करती हैं। ताकि इंसाफ़पसन्द छात्र और नौजवान या तो डरकर चुप हो जायें या फिर उनके पक्ष में हो जायें। आज देशभर में इस जनवादी स्पेस को ख़त्म कर ये लोग इसी काम को अंजाम देने की कोशिश कर रहे हैं।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रों ने जीती एक और लड़ाई : प्रमोशन और अंक सुधार के मुद्दे पर प्रशासन को किया झुकने पर मज़बूर

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रों ने जीती एक और लड़ाई : प्रमोशन और अंक सुधार के मुद्दे पर प्रशासन को किया झुकने पर मज़बूर आह्वान संवाददाता इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन को दमन…

हरियाणा में प्रत्यक्ष छात्र संघ चुनाव के लिए छात्रों का आन्दोलन और सरकार की तानाशाही

हरियाणा मे 22 साल बाद छात्र संघ चुनाव हुए। 1996 मे बंसीलाल सरकार ने गुण्डागर्दी का बहाना बनाकर छात्र संघ चुनावों को बन्द कर दिया था। उसके बाद से ही प्रदेश के छात्रों की यह माँग लगातार उठती रही है कि छात्र संघ चुनाव बहाल किये जायें ताकि प्रदेश के छात्र अपने हकों की आवाज़ उचित मंच के माध्यम से उठा सकें। पिछले लम्बे समय से हरियाणा में चाहे किसी भी पार्टी कि सरकार रही हो, छात्रों को उनके इस लोकतान्त्रिक अधिकार से वंचित रख रही है। सरकारी पक्ष का कहना है कि इससे गुण्डागर्दी बढ़ जायेगी। अगर ऐसा है तो फिर एमपी, एमएलए से लेकर सरपंच तक के चुनाव भी बन्द कर दिये जाने चाहिए क्योंकि उन चुनावों मे गुण्डागर्दी, बाहुबल और धनबल के के सिवाय और तो कुछ होने की सम्भावना ही नगण्य है।

इलाहबाद विश्वविद्यालय में छात्रावास की माँग को लेकर संघर्ष  

इलाहाबाद विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्ज़ा मिले 12 साल बीत चुके हैं। वर्तमान में यहाँ 26000 छात्र पढ़ते हैं, विश्वविद्यालय के डीएसडब्ल्यू (डीन स्टूडेंट वेलफेयर) के अनुसार विश्वविद्यालय केवल 3801 छात्रों को हॉस्टल मुहैया कराता है। बाकी के छात्र महँगे किराए पर आसपास के इलाकों में किराये पर कमरा लेकर रहने के लिए बाध्य है।

पंजाब यूनिवर्सिटी के छात्रों का बहादुराना संघर्ष ज़िन्दाबाद

11 अप्रैल की घटना के बाद संघर्ष को पीठ दिखाकर ‘जॉइंट एक्शन कमेटी’ से बाहर हो जाने वाले संगठनों –सोई, स्टूडैंट काउंसिल, एन.एस.यू.आयी, पुसु, ए.बी.वी.पी, आदि –जो 11 अप्रैल के पथराव वाली घटना का सारा दोष छात्रों पर मढ़ रहे थे और खासकर आरएसएस का छात्र संगठन एबीवीपी तो निजी तौर पर संघर्षशील छात्रों को निशाना बना रहा था ताकि पुलिस उनको गिरफ़्तार कर ले। ये लोग अब बेहद बेशर्मी साथ इस जीत का सेहरा अपने सिर बाँधना चाहते हैं। परन्तु छात्र जानते हैं कि कौन खरा है, कौन पूरे संघर्ष दौरान छात्रों का पक्ष लेता रहा है और कौन प्रशासन और सरकार का टट्टू बन बैठा रहा है! इस जीत ने न सिर्फ़ छात्रों के मन में ऊर्जा का संचार किया है, बल्कि एक क्रान्तिकारी संगठन की ज़रूरत का एहसास भी पक्का किया है। साथ ही, इस संघर्ष ने अपना नाम चमकाने के लिये बैठे संगठनों का चरित्र भी नंगा किया है।

कॉलेज प्रशासन के तानाशाहीपूर्ण रवैये के ख़िलाफ़ ‘पटना आर्ट कॉलेज’ के छात्रों का आन्दोलन

लगभग डेढ़ महीने तक प्रशासन और मौजूदा नितीश सरकार चुप्पी साधे रहे और इनके द्वारा आन्दोलन को तोड़ने की कोशिशें होती रही पर छात्र अपनी माँगों को लेकर डटे रहे| आखिर में लगातार हो रहे प्रदर्शन के दबाव में अन्ततः वि.वि. प्रशासन ने निलम्बित छात्रों की अस्थाई वापसी व प्राचार्य को एक महीने की छुट्टी देने का फैसला किया है परन्तु अभी भी कॉलेज में स्थायी प्राचार्य की बहाली नहीं की गयी है|