आज़ादी के 67 वर्ष के मौके पर सांस्कृतिक कार्यक्रम “किस्सा-ए-आज़ादी उर्फ़ 67 साला बर्बादी” का आयोजन
पिछले 67 वर्षों की आज़ादी की कुल जमा बैलेंस शीट यह है कि देश के 90 फीसदी संसाधनों पर मुट्ठीभर लोगों का कब्ज़ा है तथा बहुसंख्यक नागरिक आबादी मूलभूत नागरिक सुविधाओं से भी महरूम है। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़िमी है कि ये किसकी आज़ादी है? कार्यक्रम की शुरूआत क्रान्तिकारी गीत ‘तोड़ो बन्धन तोड़ो’ से हुई। इसके बाद मौजदूा संसदीय व्यवस्था की वास्तविकता को उजागर करते हुए गुरुशरण सिंह का प्रसिद्ध नाटक ‘हवाई गोले’ के संशोधित संस्करण ‘देख फकीरे लोकतन्त्र का फूहड़ नंगा नाच’ विहान सांस्कृतिक मंच द्वारा प्रस्तुत किया गया जिसमें देश की संसदीय व्यवस्था व भ्रष्ट राजनेताओं के चरित्र को उजागर करते हुए यह दिखलाया गया कि मौजूदा संसद सिर्फ बहसबाज़ी का अड्डा बनकर रह गयी है। इसके बाद ‘मेहनतकश औरत की कहानी’ नाटक का मंचन किया गया। फैज़ के गीत ‘हम मेहनतकश जगवालों से’ की प्रस्तुति भी की गयी।