Category Archives: गतिविधि बुलेटिन

आज़ादी के 67 वर्ष के मौके पर सांस्कृतिक कार्यक्रम “किस्सा-ए-आज़ादी उर्फ़ 67 साला बर्बादी” का आयोजन

पिछले 67 वर्षों की आज़ादी की कुल जमा बैलेंस शीट यह है कि देश के 90 फीसदी संसाधनों पर मुट्ठीभर लोगों का कब्ज़ा है तथा बहुसंख्यक नागरिक आबादी मूलभूत नागरिक सुविधाओं से भी महरूम है। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़िमी है कि ये किसकी आज़ादी है? कार्यक्रम की शुरूआत क्रान्तिकारी गीत ‘तोड़ो बन्धन तोड़ो’ से हुई। इसके बाद मौजदूा संसदीय व्यवस्था की वास्तविकता को उजागर करते हुए गुरुशरण सिंह का प्रसिद्ध नाटक ‘हवाई गोले’ के संशोधित संस्करण ‘देख फकीरे लोकतन्त्र का फूहड़ नंगा नाच’ विहान सांस्कृतिक मंच द्वारा प्रस्तुत किया गया जिसमें देश की संसदीय व्यवस्था व भ्रष्ट राजनेताओं के चरित्र को उजागर करते हुए यह दिखलाया गया कि मौजूदा संसद सिर्फ बहसबाज़ी का अड्डा बनकर रह गयी है। इसके बाद ‘मेहनतकश औरत की कहानी’ नाटक का मंचन किया गया। फैज़ के गीत ‘हम मेहनतकश जगवालों से’ की प्रस्तुति भी की गयी।

जाति उन्मूलन का रास्ता मज़दूर इंक़लाब और समाजवाद से होकर जाता है, संसदवादी, अस्मितावादी या सुधारवादी राजनीति से नहीं!

सुखविन्दर ने अपने आलेख में प्रदर्शित किया कि अम्बेडकर के चिन्तन में कोई निरन्तरता नहीं है। सामाजिक एजेण्डे के प्रश्न पर पहले वह हिन्दू धर्म में ही सुधार करना चाहते थे; बाद में उन्होंने बुद्धवाद में धर्मान्तरण के रास्ते की वकालत की; और मरने से पहले उन्होंने इसे भी नाकाफ़ी करार दिया। उनका चिन्तन निरीश्वरवादी चिन्तन भी नहीं था और उनका मानना था कि समाज में धर्म रहना चाहिए क्योंकि इसी से समाज में कोई आचार या अच्छे मूल्य रहते हैं। इसलिए वे कम्युनिस्टों और निरीश्वरवादियों की नास्तिकता पर हमला करते थे। आर्थिक पहलू देखें तो अम्बेडकर के पास जो आर्थिक कार्यक्रम था वह पब्लिक सेक्टर पूँजीवाद का ही कार्यक्रम था; बल्कि नेहरू का पब्लिक सेक्टर पूँजीवाद का एजेण्डा कुछ मायनों में अम्बेडकर से ज़्यादा रैडिकल था, या कम-से-कम दिखता था। जाति के ख़ात्मे के लिए उन्होंने जो रास्ता सुझाया वह शहरीकरण और उद्योगीकरण का था। लेकिन इतिहास ने दिखलाया है कि शहरीकरण और उद्योगीकरण ने जाति का स्वरूप बदल डाला है, लेकिन उसका ख़ात्मा नहीं किया। अम्बेडकर राजनीतिक तौर पर पूँजीवाद का कोई विकल्प नहीं देते थे। उनकी राजनीति अधिक से अधिक रैडिकल व्यवहारवाद और संविधानवाद तक जाती थी। जनता इतिहास को बदलने वाली शक्ति होती है, इसमें उनका कभी यकीन नहीं था, बल्कि वे नायकों की भूमिका को प्रमुख मानते थे।

पटना में दिशा छात्र संगठन और नौजवान भारत सभा द्वारा ‘जन तक कविता-कविता तक जन’ का आयोजन

आम तौर पर यह समझा जाता है कि कविता-कहानी बुद्धिजीवियों के लिए होता है और आम लोग उसे नहीं समझ पाते और ये चीज़ें उनकी ज़द से बाहर हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि कविता समेत सभी स्वस्थ साहित्यिक-सांस्कृतिक माध्यम उत्पादन की कार्रवाइयों से पैदा होते हैं। इन्हें जन्म देने वाली असली शक्ति स्वयं मेहनतकश जनता और आम लोग होते हैं जो रोज़मर्रा की जिन्दगी में रोज़ी-रोटी की जद्दोजहद से दो-चार होते हैं।

भगतसिंह के जन्मदिवस के अवसर पर ‘शहीदेआज़म भगतसिंह विचार यात्रा’

आज भगतसिंह को याद करने का मतलब महज रस्मअदायगी नहीं है। भगतसिंह ने खुद कहा था कि हमारी लड़ाई महज गोरी लूट के खि़लाफ नहीं है हम हर प्रकार को शोषण के विरुद्ध हैं। आज आजादी के 65वर्ष बाद भी यदि लोगों को बुनियादी सुविधाएं मुहैया नहीं हैं तब ऐसी आजादी पर प्रश्न चिन्ह लगना लाजिमी है।

शहीदे-आज़म भगतसिंह युवा सम्मेलन का आयोजन

नौजवान भारत सभा के स्थानीय संयोजक रमेश खटकड़ के अनुसार भगतसिंह की शहादत के 81 साल बाद उनके गै़र-बराबरी, समतामूल समाज के सपने आज भी अधूरे ही हैं। इन सपनों को आज फिर से देश के नौजवानों के बीच लेकर जाना ज़रूरी ही नहीं बल्कि हमारे अस्तित्व की शर्त भी है। सम्मेलन में करीब 200 नौजवान छात्र-छात्राओं, नागरिकों, बच्चों ने भाग लिया। अन्त में नरवाना के भगतसिंह चौक तक जुलूस निकालकर कार्यक्रम की औपचारिक समाप्ति की गयी।

स्कूल बचाओ अभियान मुस्तफाबाद में ‘नागरिक निगरानी समिति’ का गठन

स्कूल बचाओ अभियान की संयोजक शिवानी ने बताया कि जनदबाव के चलते ही यह सुनिश्चित हो पाया है कि हमारे बच्चे किस स्कूल में स्थानान्तरित होंगे। यह हमारे संघर्ष की आंशिक जीत थी। हम लोगों द्वारा बनाई गयी ‘नागरिक निगरानी समिति’ को स्कूल की जाँच करने का अधिकार मिलना हमारे संघर्ष की एक बड़ी जीत है। समिति के सदस्य योगेश ने बताया कि ‘स्कूल बचाओ अभियान’ दिल्ली के अन्य इलाकों में भी इस तरह की निगरानी समितियों का गठन करेगा।

‘शहीद भगतसिंह विचार मंच’ द्वारा इलाहाबाद में साइकिल यात्रा

‘शहीद भगतसिंह विचार मंच’ के कार्यकर्ताओं ने मार्च माह की क्रान्तिकारी विरासत को याद करते हुए साइकिल यात्रा निकाली। इस साइकिल यात्रा का मकसद शहीदों की शिक्षाओं के क्रान्तिकारी सार को लोगों तक पहुँचाना था। क्योंकि अपनी लाख कोशिशों के बाद भी जब शासक वर्ग शहीदों की स्मृतियों को धूल-राख के नीचे दबा पाने में असफल रहा तो वह और जनहितैषी का चोला पहने उसके प्रतिनिधि तथा अनेक संगठन उनके असली विचारों को धूमिल कर, उनको देव प्रतिमाओं का रूप देकर, उनके संघर्षों को केवल अंग्रेज़ों को भगाने के संघर्ष के रूप में प्रस्तुत कर रस्मअदायगी बना देने के प्रयासों में जुटा पड़ा है। जबकि भगतसिंह समाजवादी समाज के निर्माण में यकीन करते थे। और उनका कहना था कि हमारी लड़ाई का मकसद गोरों की जगह भूरे साहबों को सत्ता में लाना नहीं है। हमारी लड़ाई साम्राज्यवाद व पूंजीवाद के खिलाफ़ है।

दिल्ली में ‘स्कूल बचाओ अभियान’ की शुरुआत

स्कूली शिक्षा बच्चों के जीवन की बुनियाद होती है जहाँ वह सामाजिक होना, इतिहास, कला आदि से परिचित होता है। अमीरी और ग़रीबी में बँटे हमारे समाज का यह फ़र्क देश के स्कूलों में भी नज़र आता है। जहाँ एक तरफ़ पैसों के दम पर चलने वाले प्राईवेट स्कूलों में अमीरों के बच्चों के लिए ‘फाइव-स्टार होटल’-मार्का सुख-सुविधाएँ उपलब्ध हैं, वही दूसरी ओर सरकार द्वारा चलाये जा रहे ज़्यादातर स्कूलों की स्थिति ख़स्ताहाल है। केन्द्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय और सैनिक स्कूल जैसे कुलीन सरकारी स्कूलों को छोड़ दिया जाये, तो सरकारी स्कूल सरकार द्वारा ही तय विद्यालय मानकों का पालन नहीं करते। ज़्यादातर सरकारी स्कूलों में साफ़ पीने के पानी की व्यवस्था तक नहीं है, सभी बच्चों के बैठने के लिए डेस्क नहीं हैं, कक्षाओं में पंखों तक की व्यवस्था नहीं है; वहीं अमीरज़ादों के स्कूलों में पीने के पानी के लिए बड़े-बड़े ‘आर.ओ. सिस्टम’, खेलने के लिए बड़े मैदान, कम्प्यूटर रूम, लाइब्रेरी और यहाँ तक कि कई स्कूलों में स्विमिंग पूल व घुड़सवारी की भी व्यवस्था है!

श्रम कानूनों के उल्लंघन के खि़लाफ़ दिल्ली मेट्रो मज़दूरों ने किया प्रदर्शन

चमचमाती मेट्रो रेल में काम करने वाले हज़ारों मज़दूरों (सफाईकर्मी, गार्ड, टॉम ऑपरेटर, निर्माण मज़दूर) के हालात की चर्चा की जाए तो साफ़ हो जाता है कि डी.एम.आर.सी. प्रशासन सिर्फ ठेका कम्पनियों के लिए “आदर्श” और “ईमानदार” है। क्योंकि डी.एम.आर.सी., ठेका कम्पनियों द्वारा श्रम कानूनों के खुले उल्लंघन की अनदेखी कर रही है जिसका ज्वलन्त उदाहरण जे.एम.डी. कंसल्टेण्ट्स ठेका कम्पनी है जिसमें लगभग 300 टॉम आपरेटर मेट्रो स्टेशन पर कार्यरत हैं, ठेका कम्पनी द्वारा टॉम आपॅरेटरों का भयंकर शोषण किया जा रहा है। उन्होंने आगे बताया कि नियुक्ति के समय तमाम ठेका कम्पनियाँ 25,000 रुपये की सिक्योरिटी राशि जमा करती है। यही नहीं, नियुक्ति के समय ठेका मज़दूरों से नियुक्ति पत्र के साथ बख़ार्स्तगी पत्र पर भी हस्ताक्षर करा लिये जाते हैं। और यह नियुक्ति भी सिर्फ तीन महीने के लिए होती है, ऐसा नहीं है कि श्रम-कानूनों के इस उल्लंघन के बारे में डी.एम.आर.सी. प्रशासन नहीं जानता। लेकिन प्रधान नियोक्ता होने के बावजूद डी.एम.आर.सी. प्रशासन मूक बना रहता है

हरियाणा में शहादत दिवस अभियान तथा आरक्षण के प्रश्न पर क्रान्तिकारी प्रचार अभियान

भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव के 81 वें शहादत दिवस के अवसर पर नौजवान भारत सभा के द्वारा हरियाणा के नरवाना व कलायत में पर्चा वितरण किया गया। इसका मकसद शहीदों के विचारों को तथा उनके सपनों को आम जनता के बीच लेकर जाना था ताकि उनके सपने साकार किये जा सकें। नौभास के रमेश ने बताया कि भगतसिंह की क्रान्तिकारी धारा के लिए आज़ादी का मतलब मेहनतकश जनता की विदेशी तथा देशी दोनों प्रकार के शोषण से मुक्ति से था। छात्रों, युवाओं तथा मेहनतकश आम आबादी ने अभियान को काफी सराहा।