पंजाब यूनिवर्सिटी के छात्रों का बहादुराना संघर्ष ज़िन्दाबाद

11 अप्रैल को पंजाब यूनिवर्सिटी, चण्डीगढ़ में फ़ीस वृद्धि के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे सैकड़ों छात्रों पर चण्डीगढ़ पुलिस द्वारा किये गये बर्बर दमन के बाद यह मसला पूरे देश की नज़रों में आ गया है। अधिकार मांगने के बदले छात्रों पर हुए अत्याचार के बाद संघर्षशील छात्रों को देश के आम लोगों की हमदर्दी और हिमायत मिली है। दरअसल इस पूरे मामले की शुरुआत 26 मार्च को हुई जब पंजाब विश्वविद्यालय ने सीनेट की एक आपातकालीन मीटिंग बुलाकर फ़ीसों में 500%  से 1100% की वृद्धि कर दी। यह ख़बर मिलते ही उसी दिन से यूनिवर्सिटी के छात्रों ने संघर्ष शुरू किया। छात्रों ने कहा कि उन जैसे हज़ारों-लाखों नौजवान जिनके लिये पढ़ाई महँगी करके शिक्षा संस्थाओं के दरवाज़े बन्द किये जा रहे हैं और वे करोड़ों नौजवान जो पहले ही आर्थिक कंगाली के कारण पढ़ लिख नहीं पा रहे, यह कदम उनके बेहतर ज़िंदगी के सपनों का कत्ल कर देगा। छात्रों ने यह सवाल भी उठाया कि जब देश के लोग सरकार को टैक्स के रूप में सरकारी सुविधाओं के लिये हर साल मोटी रकम अदा कर रहे हैं तो फिर सरकारी यूनिवर्सिटियों से शिक्षा हासिल करने के लिये वे महँगी फ़ीस क्यों भरें। जल्द ही अन्य कॉलेजों के छात्र भी संघर्ष में जुड़ने लगे और एकजुट छात्रों की बुलंद आवाज़ सुनते ही प्रशासन के भी कान खड़े हो गये। फिर शुरू हुआ रैलियों, धरनों, हड़तालों का वह अथक सिलसिला जिसको तोड़ने के लिये यूनिवर्सिटी प्रशासन, पुलिस प्रशासन, सरकार, सरकारी एजेंसियाँ और अन्य मौकापरस्त ताकतों ने गठजोड़ करके छात्रों पर अत्याचार शुरू किया। इस गुंडा गठजोड़ में ए.बी.वी.पी. (आरएसएस का छात्र संगठन) ने भी अपनी घिनौनी भूमिका निभायी। अब हम इस संघर्ष के दौरान हुई घटनाओं की संक्षेप में चर्चा करेंगे। पंजाब यूनिवर्सिटी में फ़ीस से सम्बन्धित व अन्य ज़रूरी फ़ैसले लेने का हक दो समितियों के पास है। ‘सिंडिकेट’ और ‘सीनेट’ जिसका प्रमुख उप कुलपति होता है। ‘सीनेट’ उस मसले पर आख़िरी फ़ैसला लेती है। फ़ीसों में वृद्धि का प्रस्ताव किसी सिंडिकेट मीटिंग में विचारे बिना ही उप कुलपति अरुण ग्रोवर द्वारा एक एमरजेंसी सीनेट मीटिंग बुलाकर आनन फानन में पास कर दिया गया। 27 मार्च से यूनिवर्सिटी में दो क्रान्तिकारी छात्र संगठन ‘पंजाब स्टूडैंट्स यूनियन (ललकार)’ और ‘स्टूडैंट्स फॉर सोसायटी’ (एस.एफ.एस.) ने फ़ीसों में वृद्धि के विरुद्ध छात्रों में प्रचार और लामबन्दी शुरू की। कुछ ही दिनों में इस संघर्ष की लपटें कॉलेजों के भीतर तक जा पहुँचीं। अप्रैल के पहले हफ़्ते में कॉलेजों में हड़तालें हुईं जिसमेंं गर्ल्स कालेज की लड़कियाँ भारी संख्या में शामिल हुईं। छात्रों का मनोबल तोड़ने के लिये पुलिस ने छात्रों की गिरफ़्तारियाँ, लाठी चार्ज से लेकर लड़कियों के कपड़े फाड़ने, बदसलूकी करने जैसे घिनौने हथकंडे अपनाये। ए.बी.वी.पी. के कार्यकर्ताओं ने इस संघर्ष के दौरान पी.एस.यू. (ललकार) और एस.एफ.एस., के क्रान्तिकारी छात्रों को गिरफ़्तार करवाने के लिये पुलिस की सहायता करके अपना फर्ज़ निभाया। इस तरह पुलिस प्रशासन और सरकार के प्यादों (संघियों) ने संघर्ष को तोड़ने में अपने तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी। 6 अप्रैल को यूनिवर्सिटी और कॉलेजों के कई छात्र संगठनों ने उप कुलपति के दफ़्तर के आगे धरना दिया। 9 छात्र संगठनों, पी.एस.यू. (ललकार), एस.एफ.एस., आइसा, ए.एस.ए, सोई, पुसु, पुसु (ईवनिंग), पुसु (फॉर स्टूडैंट्स), एन.एस.यू.आयी., एन.एस.यू.आयी.(एस.एफ.), ने ‘जॉइंट स्टूडैंट्स एक्शन कमेटी’ (जेसैक) का गठन किया और एकजुट होकर इस संघर्ष को तेज करने का ऐलान किया। ए.बी.वी.पी., जो सरकार पर सवाल उठाने के लिये राजी नहीं थी, ने इस संघर्ष का हिस्सा बनने में कोई रुचि नहीं दिखायी। ख़ैर, जेसैक ने छह माँगें तय करके 11 अप्रैल को यूनिवर्सिटी बन्द का ऐलान किया। 11 अप्रैल को सैकड़ों छात्र क्लास खाली करके उप कुलपति के ऑफिस के बाहर पहुँचे। कई घण्टे धूप में बैठने के बाद भी जब मौजूद अधिकारियों की तरफ से कोई भी छात्रों के साथ बात करने के लिये बाहर नहीं आया तो छात्रों ने अपने आप अंदर जाने का फ़ैसला लिया। हर बार की तरह इस बार भी पुलिस ने पानी की बौछारों और डंडों का इस्तेमाल किया। बर्बर लाठीचार्ज करके पुलिस ने छात्रों को बेरहमी से पीटा जिसके कारण कई छात्र ज़ख्मी हुए और कुछ बेहोश भी हुए। ज़ख्मी साथियों को देख छात्र वहाँ पड़े सजावटी पत्थर उठा कर बहादुरी से हथियारबन्द पुलिस के साथ भिड़ गये। पुलिस ने छात्रों को बिखेरने के लिये हवाई फायर किये और आँसू गैस के कई दर्जन गोले दागे। इस घटना के बाद मौकापरस्त संगठन सोई, पुसु, पुसु (फॉर स्टूडैंट्स), एन.एस.यू.आयी. और एन.एस.यू.आयी. (एस.एफ.) “हिंसा-हिंसा” का राग अलापते हुए ‘जेसैक’ और इस संघर्ष से भाग खड़े हुए।

राजद्रोह, इरादा कतल जैसी संगीन धारायें लगाईं गयी, 53 छात्र जेल गये, कई पुलिस के निशाने पर थे। यूनिवर्सिटी  को पुलिस छावनी बना दिया गया। देश भर में छात्रों के हक में और सरकार व प्रशासन के विरोध में प्रदर्शन हुए। 17 अप्रैल तक सभी गिरफ़्तार छात्रों को ज़मानत मिल गयी। पंजाब में 15 अप्रैल को बरनाला में तर्कशील भवन में पी.एस.यू. (ललकार) और एस.एफ.एस. के आह्वान पर 42 छात्र, मज़दूर, किसान, कर्मचारी और जनवादी संगठनों ने मीटिंग की और “पंजाब यूनिवर्सिटी संघर्ष हिमायत समिति” बनाई। 18 अप्रैल को दोबारा ‘जेसैक’ की मीटिंग बुलायी गयी। इस बार छह संगठनों पी.एस.यू. (ललकार), एस.एफ.एस., आइसा, पुसु (ईवनिंग), ए.एस.ए. और एस.एफ.आयी. ने संघर्ष को जारी रखने का ऐलान किया। छात्रों ने पास आती परीक्षाओं के बावजूद इस संघर्ष को पूरा प्रोत्साहन दिया और कर्फ्यू का माहौल तोड़ते हुए फिर से प्रदर्शन और धरने शुरू हुए।

7 मई को सीनेट की मीटिंग में दो प्रस्ताव पारित किये गये। इन प्रस्तावों में कहा गया है कि पंजाब विश्वविद्यालय प्रशासन की तरफ से नये शैक्षिक सत्र में की जाने वाली 500 -1100% वृद्धि को घटाकर 10% तक सीमित कर दिया गया है, मतलब छात्रों के संघर्ष की वजह से यूनिवर्सिटी ने इस बड़ी वृद्धि को वापस ले लिया है। दूसरा प्रस्ताव यह पारित किया गया गया है कि इस संघर्ष के दौरान 11 अप्रैल को विश्वविद्यालय में पथराव की घटना के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन की तरफ से दर्ज़ शिकायत के चलते जिन 68 छात्रों पर केस दर्ज़ किये गये थे और संगीन धारायें लगायी गयी थीं, उन केसों को रद्द किया जायेगा और विश्वविद्यालय प्रशासन अपनी शिकायत वापस ले लेगा। निश्चित तौर पर यह छात्रों की एक बड़ी जीत है। इसका श्रेय छात्रों की एकता को और छात्रों का नेतृत्व कर रहे संगठनों, खासकर पी.एस.यू (ललकार) और स्टूडैंट्स फॉर सोसायटी, के सूझ भरे नेतृत्व को जाता है। साथ ही, 7 मई की मीटिंग में सीनेटरों का छात्रों के पक्ष में हो जाना भी एक शुभ घटना थी जिसने विश्वविद्यालय प्रशासन को मजबूर किया कि वह यह फ़ैसला ले। जैसा कि होना ही था, इस जीत के बाद इसका श्रेय लेने के लिये मौकापरस्त छात्र संगठन ज़ोर -शोर से अपने बिलों से बाहर निकल पड़े। 11 अप्रैल की घटना के बाद संघर्ष को पीठ दिखाकर ‘जॉइंट एक्शन कमेटी’ से बाहर हो जाने वाले संगठनों –सोई, स्टूडैंट काउंसिल, एन.एस.यू.आयी, पुसु, ए.बी.वी.पी, आदि –जो 11 अप्रैल के पथराव वाली घटना का सारा दोष छात्रों पर मढ़ रहे थे और खासकर आरएसएस का छात्र संगठन एबीवीपी तो निजी तौर पर संघर्षशील छात्रों को निशाना बना रहा था ताकि पुलिस उनको गिरफ़्तार कर ले। ये लोग अब बेहद बेशर्मी साथ इस जीत का सेहरा अपने सिर बाँधना चाहते हैं। परन्तु छात्र जानते हैं कि कौन खरा है, कौन पूरे संघर्ष दौरान छात्रों का पक्ष लेता रहा है और कौन प्रशासन और सरकार का टट्टू बन बैठा रहा है! इस जीत ने न सिर्फ़ छात्रों के मन में ऊर्जा का संचार किया है, बल्कि एक क्रान्तिकारी संगठन की ज़रूरत का एहसास भी पक्का किया है। साथ ही, इस संघर्ष ने अपना नाम चमकाने के लिये बैठे संगठनों का चरित्र भी नंगा किया है। परन्तु यह आंशिक सफलता अन्तिम नहीं, बल्कि एक शुरुआत ही है क्योंकि जब तक इस फ़ीस -वृद्धि, कम हो रही सीटों और बेरोज़गारी की जड़ को ख़त्म नहीं किया जाता, मतलब जब तक मुनाफे पर आधारित पूँजीवादी व्यवस्था में चल रहे शिक्षा के निजीकरण और बाजारीकरण की आँधी को नहीं रोका जाता, तब तक यह संघर्ष चलता रहेगा। यह संघर्ष तब तक चलता रहेगा जब तक हर बच्चे और नौजवान को एक समान बुनियादी शिक्षा और सबको रोज़गार मुहैया नहीं होता। इस लम्बी लड़ाई में हासिल होने वाली ये जीतें निश्चित तौर पर उत्साह बढ़ाने वाली जीतें हैं।

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,जुलाई-अगस्‍त 2017

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