शहीद-ए-आज़म भगतसिंह के जन्मदिवस (28 सितम्बर) के अवसर पर रोहतक में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन
शहीद-ए-आज़म भगतसिंह के जन्मदिवस के अवसर पर दिशा छात्र संगठन और नौजवान भारत सभा की स्थानीय इकाइयों के द्वारा रोहतक, हरियाणा में छः दिवसीय (26 सितम्बर – 1 अक्टूबर) शहीद यादगारी अभियान चलाया गया। उक्त अभियान के तहत पहले दिन महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय में दिशा के ‘द्वारा’ भगतसिंह के जीवन पर आधारित एक दस्तावेज़ी फ़िल्म दिखायी गयी तथा इसके बाद भगतसिंह के जीवन, उनके जीवन दर्शन और आदर्शों पर बातचीत भी की गयी। मौजूदा दौर में भगतसिंह के विचारों की अहमियत और उन्हें आम जनता तक पहुँचाने की ज़रूरत पर विचार चर्चा हुई। दूसरे दिन खोकराकोट में जोकि शहर की एक मज़दूर और निम्नमध्यवर्गीय बस्ती है में नुक्कड़ सभाएँ और परचा वितरण के माध्यम से भगतसिंह और उनके साथियों के विचारों को लोगों तक पहुँचाया गया। अगले दिन यानी 28 सितम्बर को विश्वविद्यालय के अन्दर लाइब्रेरी लॉन में सभा का आयोजन किया गया। सभा में छात्रों को सम्बोधित करते हुए आज के हालात और शहीदों के सपनों के भारत के निर्माण की आवश्यकता पर बात की गयी। इस दौरान पुस्तक प्रदर्शनी और पोस्टर प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया। अभियान के तीसरे दिन शहर के बस अड्डे पर नुक्कड़ सभाओं और परचा वितरण के माध्यम से आम जनता के साथ आज के हालात और इन्हें बदलने में शहीद भगतसिंह के विचारों की प्रासंगिकता पर विचार साझा किये गये। शहीद यादगारी अभियान के तहत ही एक दिन बस अड्डे के सामने स्थित हुडा सिटी पार्क में पुस्तक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इस दौरान भी व्यापक परचा वितरण किया गया और पार्क में आये लोगों को भगतसिंह के विचारों से अवगत कराया गया। चौथे दिन शहर की इन्दिरा कॉलोनी में नुक्कड़ सभाएँ करते हुए शहीदों के सन्देश को आम जनता तक पहुँचाया गया। अन्तिम दिन रोहतक के एक गाँव फ़रमाना में संगीत संध्या और नुक्कड़ नाटक ‘देश को आगे बढ़ाओ’ का आयोजन किया गया।
पाँच दिन तक चले इस अभियान के दौरान वक्ताओं ने विस्तारपूर्वक लोगों से अपनी बात साझा की। अभियान के दौरान वक्ताओं ने बताया कि भगतसिंह और उनके साथियों के लिए आज़ादी की लड़ाई का मतलब था; क्रान्ति के द्वारा मेहनतकश जनता का राज स्थापित करना, जिसमें उत्पादन, राजकाज और समाज के पूरे ढाँचे पर आम मेहनतकश जनता काबिज हो। अपने क्रान्तिकारी संगठनों ‘एच.आर. ए.’, ‘एच. एस.आर.ए.’ और नौजवान भारत सभा के घोषणापत्रों में, अदालतों में दिये गये बयानों में, लेखों और जेलों से भेजे गये सन्देशों में भगतसिंह और उनके साथियों ने बार-बार इस बात को साफ़ किया था कि वे लोग मेहनतकशों के राज के हिमायती थे। भगतसिंह ने 6 जून 1929 को दिल्ली के सेशन जज लियोनार्ड मिडिलटन की अदालत में अपने ऐतिहासिक बयान में कहा था, “क्रान्ति से हमारा अभिप्राय है मुट्ठी भर परजीवी जमातों द्वारा आम जनता की मेहनत की लूट पर आधारित, अन्याय पर आधारित मौजूदा व्यवस्था में आमूल परिवर्तन। समाज का प्रमुख अंग होते हुए भी आज मज़दूरों को उनके प्राथमिक अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है और उनकी कमाई का सारा धन शोषक पूँजीपति हड़प जाते हैं। दूसरों के अन्नदाता किसान अपने परिवार सहित दाने-दाने के लिए मोहताज हैं। दुनिया भर के बाज़ारों को कपड़ा मुहैया करने वाला बुनकर अपने तथा अपने बच्चों के तन ढँकने भर को भी कपड़ा नहीं पा रहा है। सुन्दर महलों का निर्माण करने वाले राजगीर, लोहार तथा बढ़ई स्वयं गन्दे बाड़ों में रहकर ही अपनी जीवन लीला समाप्त कर जाते हैं। इसके विपरीत समाज के जोंक शोषक पूँजीपति ज़रा-ज़रा सी बातों के लिए लाखों का वारा-न्यारा कर देते हैं।” शहीदों की कुर्बानियों और आम जनता के संघर्षों की बदौलत देश आज़ाद तो हुआ लेकिन अंग्रेज शासन-सत्ता समझौते के द्वारा देशी पूँजीपतियों को सौंप गये। आज़ादी समाज के ऊपरी तबके की तिजोरियों में बन्द होकर रह गयी और व्यापक जनता के हिस्से में बेरोज़गारी, भुखमरी, ग़रीबी, कुपोषण, महँगाई और सबसे बढ़कर जात-धर्म के नाम पर आपसी बँटवारे जैसी चीज़ें ही आयीं हैं। वर्तमान लुटेरे ढाँचे को ध्वस्त करके ही क्रान्तिकारी शहीदों के सपनों का भारत बन सकता है जो बम और पिस्तौल से नहीं बल्कि जनता की ताक़त से बनेगा। आर्थिक लूट, दमन, युद्ध और पर्यावरणीय विनाश के रूप में पूँजीवाद की नेमतें इस दुनिया को रहने लायक़ नहीं छोड़ेंगी। हम जानते हैं कि यह रास्ता लम्बा है, कठिन है और प्रयोगों, उतार-चढ़ावों से भरा है; पर यही एकमात्र विकल्प है। यही जन-मुक्ति-मार्ग है। यही इतिहास का रास्ता है। और हर लम्बे रास्ते की शुरुआत एक छोटे से क़दम से ही होती है। दिशा छात्र संगठन और नौजवान भारत सभा देश भर में जनता की एकता कायम करने के मकसद से आम जन के जीवन से जुड़े मुद्दों को उठा रहे हैं। किसी भी समाज को बदलने में युवाओं की अग्रणी भूमिका होती है और किसी ने ठीक ही कहा है कि ‘इतिहास के रथ के पहिये नौजवानों के उष्ण रक्त से लथपथ होकर आगे बढ़ते हैं’ जिसकी कि भगतसिंह और उनके साथी जीवन्त मिसाल हैं। किसी भी व्यापक सामाजिक बदलाव के लिए सबसे पहले विचारों में क्रान्ति लाने की ज़रूरत होती है। वक्ताओं ने शहीदों के विचारों को जानने और समाज बदलाव के काम में जुट जाने के लिए लोगों का आह्वान किया। भगतसिंह के विचारों को जानने में आम जनता की तरफ़ से मिलने वाली प्रतिक्रिया उत्साहवर्धक रही।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,जनवरी-फरवरी 2018
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