Category Archives: साम्‍प्रदायिकता

सीबीआई का घमासान और संघ का लोकसभा चुनाव हेतु ‘राम मन्दिर’ शंखनाद

पाँच राज्य में विधानसभा के नतीजे सामने आ चुके हैं और कांग्रेस ने पाँच राज्य में से तीन पर हाँफते-हाँफते सरकार बना ली है। यह चुनावी नतीजे मोदी की उतरती लहर को पुख्ता करते हैं और जनता के अंदर सरकार के खिलाफ़ गुस्से की ही अभिव्यक्ति है। चुनावी नतीजों के विश्लेषण में जाने पर यह साफ हो जाता है कि शहरी से लेकर ग्रामीण आबादी में भाजपा के वोट प्रतिशत में नुकसान हुआ है। वसुंधरा राजे और ‘मामा’ शिवराज सिंह की निकम्मी सरकारों के खिलाफ जनता में गुस्सा था परंतु ईवीएम के जादू और संघ के भीषण राम मंदिर प्रचार ने भाजपा को इन दोनों राज्य में टक्कर पर पहुंचा दिया। यह चुनाव जिस पृष्ठभूमि पर लड़ा गया और आगामी लोकसभा चुनाव तक संघ जिस ओर कदम बढ़ा रहा है हम यहाँ विस्तार से बात करेंगे।

कठुआ और उन्नाव : बलात्कार का भगवा गणतंत्र

हिंदुत्व फ़ासीवादी ताकतों द्वारा यौन हिंसा का प्रयोग एक राजनीतिक हथियार के रूप में कर अल्पसंख्यकों के मन में डर भर देना कड़वी वास्तविकता है। पुलिस द्वारा दायर की गयी चार्जशीट में भी साफ़ तौर पर इसका उल्लेख है। हिंदुत्ववादी ताकतों द्वारा यह भयावह कृत्य मुस्लिम बकरवालों को उनके गाँवों से भगा देने के एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा था। ‘ हिन्दू एकता मंच’ के बैनर तले बलात्कारियों के समर्थन में आयोजित रैली से भी स्पष्ट हो जाता है कि इस बलात्कार की घटना के पीछे एक बड़ा राजनीतिक प्रयोजन था।

फासीवाद को हराने के लिए पूँजीवाद के खात्मे की लड़ाई लड़नी होगी!

आज का फासीवाद मुसोलीनी के इटली सरीखे और हिटलर के जर्मनी सरीखे फासीवादी मॉडल से भिन्नता लिए हुए है। 1920 के दशक की आर्थिक महामन्दी के दौर में उभरे फासीवादी आन्दोलन में आकस्मिकता का तत्व था तो 1970 से मन्द-मन्द मन्दी की शिकार व्यवस्था, जो 2008 के बाद से मन्दी के अधिक भयंकर भँवर में जा फँसी है, में धीरे-धीरे पोर-पोर में समाकर सत्ता में पहुँचने का तत्व है। भारत में फासीवादी अचानक ब्लिट्जक्रिग अंदाज़ में सत्ता में जाने की जगह धीरे-धीरे पोर-पोर में समाकर और समय-समय पर आन्दोलनों के जरिये सत्ता के करीब पहुँचे हैं।

इतिहास से भयाक्रान्त फासीवादी

भगवे फासीवादी इतिहास से इस कदर डरते हैं कि वे इतिहास को तोड़ -मरोड़ कर पाठ्यक्रमों में बदलाव करके दलितों और औरतों के संघर्षों के इतिहास को भी दबा देना चाहते हैं क्योंकि वह नहीं चाहते कि कोई भी अपने हकों-अधिकारों के प्रति जागरूक हो। यदि ऐसा हो गया तो इन फासीवादियों को कौन बचाएगा ?

“गोरक्षा”: फ़ासीवादी उन्मादियों का गोरख धंधा

मोदी लहर के उभार के साथ ही पूरे देश में अपना हिंदुत्ववादी एजेंडा फैलाने के लिये मोदी सरकार ने लव-जिहाद से लेकर बीफ बैन, गोरक्षा जैसे मुद्दों को मुख्यधारा की चर्चा का हिस्सा बनाना शुरू कर दिया। कभी पाकिस्तान को दुश्मन बता कर, तो कभी भारत में रहने वाली मुस्लिम आबादी को दुश्मन ठहराकर हिन्दू धर्म की रक्षा के नाम पर लोगों को भड़काया जाने लगा। केवल मुसलमानों ही नहीं बल्कि दलित आबादी को भी इस कहर का दंश सहना पड़ा, मरे हुए पशुओं की खाल उतारने का काम करने वाले दलितों को भी गोरक्षकों ने नहीं बख्शा।

फासीवादी दमन: तय करो तुम किस ओर हो!

फासीवाद ने आज चुनावी मोर्चे पर जीत ज़मीनी कार्यवाइयों के जरिये हासिल की है। आज फासीवाद को महज कोर्ट कचहरी और संसदीय जनवाद के जरिये परास्त नहीं किया जा सकता है। भारत में इस फासीवादी आन्दोलन ने इन बुर्जुआ उपक्रमों के अनुरूप अपने को ढाला है और आज का फासीवाद संसदीय और कानूनी ठप्पा लेकर काम कर रहा है। गुजरात के बाद उत्तर प्रदेश दंगों की नयी प्रयोग भूमि बन गया है जहाँ राजकीय ढाँचे को उलट-पलट कर बन्द और ब्रेक की नीति पर इसे फासीवादी एजेण्डे के अनुरूप ढलने को बोला जा रहा है। सड़कों पर भगवा गुण्डों का आतंक, गौ रक्षा, राजपूत सेना या एण्टी रोमियो दल के रूप में खुले आम क़त्ल, मारपीट और आगजनी कर सकती है। मीडिया आज योगी के सफलता के गुर, मोदी का हनुमान और 16 घण्टे काम करने वाले नेता के रूप में पेश करने में जुटी हुई है। वहीं योगी अब सामान्यतया कोई भी साम्प्रदायिक बयान देने से बच  रहा है और मोदी की रणनीति को लागू करते हुए “तिलक” और “टोपी” दोनों के विकास की बात कर रहा है। इस विकास का फल पिछले तीन साल के मोदी सरकार के कार्यकाल में हम देख चुके हैं।

क्यों फल-फूल रहा है बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरपन्थ?

बांग्लादेश के इतिहास के वाकिफ़ लोग जानते हैं कि इस्लामिक कट्टरपन्थियों द्वारा बांग्लादेश में किया गया यह कोई पहला हमला नहीं था। इससे पहले भी वहाँ ऐसे हमले होते रहे हैं। हाल के वर्षों में बांग्लादेश के इस्लामिक कट्टरपन्थी सेक्युलर व नास्तिक लेखकों और ब्लॉगरों पर हमलों के लिये कुख़्यात रहे हैं। वे सेक्युलर लेखकों और ब्लॉगरों को इस्लाम का दुश्मन बताकर उन्हें मारते रहे हैं और आम मुसलमानों को उनके ख़िलाफ़ हिंसा के लिये उकसाते रहे हैं।

कविता : गुजरात-2002 / कात्यायनी

क्या हम कर रहे हैं आने वाले युद्ध समय की दृढ़निश्चयी तैयारी
क्या हम निर्णायक बन रहे हैं? क्या हम जा रहे हैं अपने लोगों के बीच
या हम वधस्थल के छज्जों पर बसन्तमालती की बेलें चढ़ा रहे हैं
या अपने अध्ययन कक्ष में बैठे हुए अकेले, भविष्य में आस्था का
उद्घोष कर रहे हैं और सुन्दर स्वप्न या कोई जादू रच रहे हैं

“सदाचारी” संघी फ़ासीवादी सत्ताधारियों के ‘चाल-चरित्र-चेहरे’ की सच्चाई

भगवा फ़ासीवादी सत्ताधारियों के असली मंसूबों का पर्दाफाश करना आज हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। क्रांतिकारी ताकतों को जनता के बीच अपनी खन्दकें खोदनी होंगी, और इन हिन्दुत्ववादी धर्मध्वजधारियों की ‘संस्कृति’, ‘सभ्यता’, ‘नैतिकता’, ‘शुचिता’, ‘सदाचार’ आदि की असलियत को बेनकाब करना होगा। इनके न सिर्फ मुसलमान विरोधी चेहरे को बल्कि दलित विरोधी चेहरे को भी जनता के सामने उजागर करना होगा। देशभक्ति पर इनके हर झूठे दावे को ध्वस्त करना होगा। गद्दारियों, माफीनामों, मुखबिरियों से भरे इनके काले शर्मनाक इतिहास को उजागर करना होगा।

विवेकहीनता का मौजूदा दौर और इसके विरोध के मायने

आज जनवादी-नागरिक अधिकारों पर फासीवादी हमला जब लोगों के शयनकक्ष तक में प्रवेश कर गया है, तब तमाम उदारवादी बुद्धिजीवियों ने आजिज आकर आवाज़ उठायी है, और इसकी हिमायत की जानी चाहिए। लेकिन यह भी नहीं भूलना चाहिए कि फासीवादी उभार के इस कदर आक्रामक बन पाने में कुछ योगदान उदारवादी बुद्धिजीवी वर्ग का भी है, जो कि, जब फासीवादी नाग अपना फन उठाने की शक्ति संचित कर रहा था तो विचारधारात्मक-राजनीतिक निष्पक्षता के ‘हाई मॉरल ग्राउण्ड’ पर विराजमान थे! आज फासीवादी ताक़तों के ख़िलाफ़ लड़ाई को सड़कों तक ले जाने के लिए व्यापक मेहनतकश जनसमुदायों को इस पूँजीवादी व्यवस्था की सच्चाई से रूबरू कराना होगा और उसे क्रान्तिकारी विचारों व राजनीति पर जीतना होगा। यदि जनमत हमारे पक्ष में नहीं होगा तो वह किसी न किसी रूप में चाहे-अनचाहे फासीवाद के पक्ष में होगा क्योंकि यदि वह तटस्थ भी होगा तो भी वह साम्प्रदायिक शक्तियों का मददगार ही होगा।