सीबीआई का घमासान और संघ का लोकसभा चुनाव हेतु ‘राम मन्दिर’ शंखनाद

सम्पादकीय

पाँच राज्य में विधानसभा के नतीजे सामने आ चुके हैं और कांग्रेस ने पाँच राज्य में से तीन पर हाँफते-हाँफते सरकार बना ली है। यह चुनावी नतीजे मोदी की उतरती लहर को पुख्ता करते हैं और जनता के अंदर सरकार के खिलाफ़ गुस्से की ही अभिव्यक्ति है। चुनावी नतीजों के विश्लेषण में जाने पर यह साफ हो जाता है कि शहरी से लेकर ग्रामीण आबादी में भाजपा के वोट प्रतिशत में नुकसान हुआ है। वसुंधरा राजे और ‘मामा’ शिवराज सिंह की निकम्मी सरकारों के खिलाफ जनता में गुस्सा था परंतु ईवीएम के जादू और संघ के भीषण राम मंदिर प्रचार ने भाजपा को इन दोनों राज्य में टक्कर पर पहुंचा दिया। यह चुनाव जिस पृष्ठभूमि पर लड़ा गया और आगामी लोकसभा चुनाव तक संघ जिस ओर कदम बढ़ा रहा है हम यहाँ विस्तार से बात करेंगे। इन चुनावों के पहले ही देश में मोदी सरकार के घोटालों की गटर गंगा खुल कर सामने आ रही थी जिसकी प्रतिक्रिया में फासीवाद समाज में अपने पंजों को भीतर धँसा रहा है। एकतरफ सीबीआई के घमासान और आरबीआई के साथ सरकार की खींचातान के कारण राज्य मशीनरी के अन्दर के कल-पुर्जे जनता को खुलकर नज़र आ रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ़ बुलन्दशहर में संघियों की गौ हत्या की अफवाह फैलाकर दंगा करने की साजिश को असफल करने वाले और अखलाक हत्याकांड की जांच कर रहे पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध सिंह को बजरंग दल के गुंडों ने मार दिया और बिहार में एक वृद्ध को दंगाइयों ने जलाकर मार दिया। ये दो अलग किस्म की घटनाएँ फासीवाद को व्याख्यायित करती हैं। आर्थिक संकट के कारण चरमरा रही अर्थव्यवस्था में भी वित्तीय पूँजीपति फल-फूल रहे हैं और दुनिया के सबसे बड़े अमीर की फेहरिस्त में अपना नाम लिखवा रहे हैं। एक तरफ देश में भयंकर असमानता के मामले में भारत ऑक्सफेम की रिपोर्ट में भी अव्वल है तो वहीं फोर्ब्स की सूची में भी अमीरों ने अपना सिक्का जमाया है। देश के शिखर और रसातल की तस्वीर के दो पहलू यह हैं कि एक तरफ हर मिनट 30 करोड़ रूपये कमाने वाला मुकेश अम्बानी है तो दूसरी तरफ लेबर चौक पर 12 घंटे की दिहाड़ी में 250 रूपये कमाने वाला मजदूर है। इस कारण ही भीड़-हत्या को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि फासीवाद के इस आर्थिक मर्म पर ध्यान न जाये। संघ का साम्प्रदायिक ज़हर असर दिखा रहा है जिस कारण लोग या तो भीड़ में शामिल होकर मासूम बच्चों का क़त्ल कर रहे हैं या फिर ऐसी घटनाओं पर मूक बने खड़े रहते हैं। इन घटनाओं की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जाएगी क्योंकि विधानसभा चुनाव में हार, राफेल सौदे में भ्रष्टाचार के उजागर होने के बाद से मोदी सरकार के प्रवक्ता जवाब देने में बगलें ही झाँकते रहे हैं और ज़्यादा इन्तज़ार किए बिना ही संघ ने इन चुनावों के पहले मन्दिर की राजनीति का बटन दबा दिया था और सारे संघी एक ही धुन में अब राम मन्दिर बनाओ का नारा उठाने लगे हैं। फासीवाद के उभार का मतलब वित्तीय पूँजी की खुली लूट और उसे बाधारहित बनाने के लिए एक निम्न मध्य वर्गीय आन्दोलन खड़ा किया जाना है जो बहुसंख्यक धर्म या नस्ल को किसी अल्पसंख्यक धर्म या नस्ल के खतरे से बचाने का आह्वान करता है। हिटलर के जर्मनी, मुसोलिनी के इटली  या मोदी के भारत में यही समानता है और इससे लड़ने के लिए हमें भी इसे समझना ही होगा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा राम मन्दिर केस की तारीख जल्द न मिलने पर इसके खिलाफ विश्व हिन्दू परिषद से लेकर सभी संघ के आनुषंगिक संगठन 1992 के बाबरी मस्जिद ध्वंस के दौरान आयोजित साम्प्रदायिक आन्दोलन को पुनः दोहराने की मंशा साफ कर चुके हैं। समय आने पर मोदी सरकार राम मन्दिर बनाने हेतु संसद से ऑर्डिनेंस पारित करने की सोच रही है और इसे सुप्रीम कोर्ट से चुनौती मिलने कि सूरत में मन्दिर आन्दोलन खड़ा करने की सम्भावना होगी।

इसी क्रम में 151 मीटर की राम मूर्ति बनवाने और अर्ध कुम्भ में 4200 करोड़ रु/- खर्च करने की घोषणा की गयी है जिससे हिन्दुत्व की आँच पर समाज को लगातार तपाया जाए और इस पर ही पूरा ज़ोर लगाते हुए भाजपा ने विकास और ‘गुड गवर्नेंस’ के जुमले भी फेंकने छोड़ दिये हैं। हर त्योहार में संघ सक्रियता से अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को गली मोहल्ले तक पहुँचा रहा है। संघ की इस राजनीति के समर्थन में एक भीड़ खड़ी हो रही है और इस भीड़ में बेरोज़गार नौजवानों से लेकर कम उम्र के लड़के भी शामिल हैं जैसा दिल्ली के मालवीय नगर में 8 साल के अज़ीम की सम्भवतः भीड़ द्वारा हत्या में हुआ। इस भीड़-हिंसा का शिकार सिर्फ मुस्लिम आबादी और दलित आबादी ही नहींं बन रही है बल्कि जैसा कि तमाम घटनाओं से जाहिर है कि यह फासीवादी राक्षस एक अन्धी शक्ति की तरह हर किसी पर टूट रहा है। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने जो आतंक राज कायम किया है उसकी चपेट में लखनऊ के हिन्दू ब्राह्मण परिवार का सदस्य विवेक तिवारी भी आया जिसे योगी के संघी वर्दीधारी गुंडों ने खुलेआम गोली मार दी। वहीं बुलन्दशहर में इंस्पेक्टर सुबोध सिंह को बजरंग दल के गुंडों ने जान से मार दिया। कुछ दिनों पहले ही 80 साल के हिन्दू सन्त स्वामी अग्निवेश पर संघी भीड़ ने हमला कर दिया था और सड़क पर गिराकर उन्हें मारा था। दरअसल संघ और मोदी सरकार का किसी भी धर्म से कोई लेना देना नहींं है! इनका एकमात्र मकसद अम्बानी-अडानी की सेवा करना है और हमें भरमाने के लिए जुमलों और नकली मुद्दों को उछालकर भीड़ मानसिकता फैलाकर दंगे भड़काना है। इस भीड़ को भाजपा का आईटी सेल, संघ की शाखाएँ और मोदी सरकार की गोदी मीडिया पोषित कर रही है। जो लोग यह सोच रहे थे कि हिन्दू राष्ट्र और देश का विकास हो रहा है तो भाजपा सरकार के आर्थिक घोटालों ने यह साफ़ कर दिया है कि इनका विकास सिर्फ देश के बड़े पूँजीपतियों के लिए है और उनके तलवे चाटने में ये कांग्रेस से भी कईं कदम आगे हैं।

 हाल फिलहाल में सबके सामने ही खुल रहा सीबीआई घटनाक्रम क्लाइमेक्स तक पहुँचने के करीब है जिसने उपरोक्त विश्लेषण को तथ्यतः पुष्ट किया है। जहाँ तमाम चुनावबाज़ पार्टियाँ और ‘प्रगतिशील’ जमात इसपर आँसू बहा रही हैं कि सीबीआई और आरबीआई पर हमला मोदी सरकार द्वारा देश की ‘स्वतंत्र’ संस्थाओं को खत्म करना है! परन्तु इस घटनाक्रम ने यह साफ किया है कि ये संस्थाएं ‘स्वतंत्र’ थी ही नहीं और पूँजीपति वर्ग की सत्ता का अभिन्न अंग थी जिनकी पूँजीवादी सरकारों से सापेक्षिक ‘स्वतंत्रता’ पूँजीवाद के दूरगामी हितों की रक्षा के लिए होती है परन्तु फासीवाद के दौर में आर्थिक संकट के चरम पर होने पर यह सापेक्षिक स्वायत्तता भी निरंकुश शासन के मातहत आ जाती है और जनता के सामने यह झीना पर्दा गिरने लगता है। सत्ता के अन्दर की सड़ाँध जब निकलकर सड़कों पर बाहर आ रही हो और सत्ता के खाने के दाँत जब आपसी खींचतान में उजागर हो जाएँ तो यह असल में बेहतर है। आरबीआई के साथ भी सरकार की तनातनी इस ओर इशारा करती है कि बढ़ते आर्थिक संकट के कारण फासीवादी शासक इन संस्थानों की सापेक्षिक स्वतन्त्रता बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं और हर संस्थान को पुरजोर तरीके से बड़ी पूँजी की सेवा में लगा रहे हैं। आइये इसे समझने के लिए एक बार सीबीआई के इस अन्दरूनी विस्फोट के पहले इसके आधार को तैयार करने वाली घटनाओं पर नज़र डाल लेते हैं। इसके पीछे राफेल घोटाले की जाँच थी जिसने मौजूद परिस्थिति को जन्म दिया है। राफेल घोटाले का सार यह है कि भारत के लिए हवाई जहाज बनाने वाली कम्पनी एचएएल से राफेल जहाज का ठेका 7 दिन पहले बनी अनिल अम्बानी की कम्पनी को दे दिया जाता है वह भी तीन गुने दाम पर। इस घोटाले से उजागर होने पर दस्सों के सीईओ, अनिल अम्बानी, अरुण जेटली से लेकर सितारमन के झूठ पकड़े जा चुके हैं और बौखला कर अनिल अम्बानी ने कुछ मीडिया संस्थानों पर 5000 करोड़ रुपये का मानहानि का मुकदमा भी ठोक दिया है। सीबीआई के घमासान के पीछे मेहुल चौकसी, नीरव मोदी, स्टर्लिंग बायोटेक और मोईन कुरैशी सरीखों द्वारा किये गये करोड़ों के घोटालों की जाँच का दबाव भी था जिन्हें भगाने में सरकार के मंत्रियों और प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा मदद की गयी। इस घटनाक्रम में अजित दोभाल भी शामिल था। राफेल सौदे और मेहुल चौकसी, नीरव मोदी, स्टर्लिंग बायोटेक पर कार्यवाही की तैयारी करते हुए सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा द्वारा जाँच आगे बढ़ाना मोदी सरकार के लिए नागवार था। स्टर्लिंग बायोटेक और मोइन कुरेशी की जाँच के आधार पर मोदी के करीबी अफसर राकेश अस्थाना पर एफआईआर दर्ज की गयी तो आलोक वर्मा को रात को 2 बजे पद से हटा दिया गया। भ्रष्टाचार के आरोप से दागदार और हिंदुत्व के करीबी अफसर वी. राव को सीबीआई का चीफ बनाया जिसने सबसे पहले राकेश अस्थाना के ऊपर लगे मामलों की जाँच कर रहे अफसरों का ट्रांसफर कर दिया है। इनमें से एक को अंडमान भेज दिया गया है। नवनियुक्त सीबीआई डायरेक्टर ने एचएएल के कर्मचारियों के ऊपर भी केस दर्ज किये हैं। जब आलोक वर्मा सुप्रीम कोर्ट पहुँचे तो वहाँ भी उन्हें कोई ख़ास राहत नहींं मिली है। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने राव को नीतिगत फैसले लेने से मना कर दिया परन्तु यह बस कहने की बात ज़्यादा लग रही है। यह घटनाक्रम अभी पूरी तरह खुल ही रहा था कि आरबीआई के उप-चेयरमैन ने सरकार को संस्थान कि स्वायत्ता के साथ छेड़छाड़ न करने की हिदायत दी जिसपर अरुण जेटली ने सख्त आपत्ति दर्ज कराई और अगले ही दिन सरकार ने सेक्शन-7 के जरिये आरबीआई के कान उमेठकर कॉर्पोरेट घरानों को चंदा मुहय्या करवाने के लिए अपने रिजर्व को खोलने की धमकी दी। इस का अन्ततः निष्कर्ष यह निकाला कि उर्जित पटेल ने आरबीआई चेयरमेन के पद से इस्तीफा दे दिया है और मोदी सरकार ने अपने पिट्ठू शक्तिकान्त दास को चेयरमेन के पद पर बैठा दिया है।

यह घमासान दरअसल व्यवस्था के अन्दर चल रहे भीषण संघर्ष को ही अभिव्यक्त करता है। नोटबन्दी से लेकर जीएसटी ने जहाँ सीधे छोटी पूँजी को तबाह कर दिया वहीं पिछले एक साल में इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी तमाम कम्पनियाँ नीलामी के कगार पर पहुँच रही हैं। यह घमासान आर्थिक संकट में डूबते पूँजीपति वर्ग के हिस्सों के बरक्स मोदी के चहेते प्रक्रियावादी वित्तीय पूँजीपतियों के हिस्से के हकों की रक्षा के लिए उठाये गये कदमों का नतीजा है। पिछले 2-3 सालों में देश में भयंकर आर्थिक संकट का घमासान चल रहा है और यही सरकारी तंत्र तक पहुँचने लगा है। पूँजीवाद में बहु-पार्टी जनवाद की मौजूदगी का कारण पूँजीपति वर्ग के बीच प्रतिस्पर्धा होती है जहाँ तमाम पार्टियाँ शासक वर्ग के तमाम हिस्सों का प्रतिनिधित्व करती हैं। फासीवाद के दौर में घोर प्रतिक्रियावादी वित्तीय पूँजी इजारेदारी तानाशाही की ओर बढ़ती है। आज इस तानाशाही को लागू करने का काम ही मोदी सरकार कर रही है। मुनाफे की गिरती दर जहाँ पूँजीवादी संकट को एक स्थैतिक परिघटना बना चुकी है जो जल्द ही 2008 से भी विकराल रूप लेने वाला है ऐसे में इस दौर में वित्तीय इजारेदारियों द्वारा अधिक से अधिक मुनाफा बटोर लेने की होड़ मची है। खुफिया एजेंसियाँ जो भारतीय राज्य व्यवस्था के ज़रूरी उपांग हैं उनतक इन सौदों की पहुँच होती ही है। सापेक्षिक स्वायत्तता वाले संस्थान जो पूँजीपतियों के बीच ‘स्वस्थ’ प्रतिस्पर्धा को संचालित करते हैं अब वित्तीय पूँजी को बाधा प्रतीत होने लगे हैं और इस वर्ग की इस हवस की पूर्ति  करने के लिए ही मोदी सरकार इन संस्थानों को या तो पंगु बनाकर या इनमें अपने लोग घुसाकर वित्तीय पूँजी के मुनाफे की हवस की पूर्ति में बाधा को हटा रही है। काँग्रेस के शासन  में भी सीबीआई पिंजड़े में बन्द तोते के समान थी जिसके पास बेहद सीमित अधिकार थे परन्तु मोदी सरकार सीबीआई की किसी भी हर किस्म की सापेक्षिक स्वतन्त्रता को खत्म कर रही है। सरकार में आने के बाद भी जो संसदीय प्रणाली बचीखुची है जिसे देखकर भारत की वामपन्थीय पार्टियों को ‘समाजवाद’ लाने की उम्मीद दिखती रहती है वह भी खत्म हो रहा है।

राफेल सौदा सरीखे भ्रष्टाचार पूँजीवाद के आम सौदे हैं। मोदी सरकार जो स्वच्छ सरकार की बात करती आई थी वह इन भ्रष्टाचारों को सामने आने ही नहींं देना चाहती है। परन्तु संसदीय व्यवस्था के संकुचित ढाँचे में भ्रष्टाचार उजागर हो जा रहे हैं जिसे तमाम तिकड़म लगाकर दबाने का प्रयास किया जाएगा। जिस प्रकार जज लोया को अमित शाह के खिलाफ फैसला सुनाने  के पहले ही मार दिया गया था और इस क्रम में आलोक वर्मा को पहले हटाया गया और उनके घर के आगे आईबी ने निगरानी भी रखनी शुरू कर दी गयी है। आलोक वर्मा के उदाहरण के जरिये तमाम नौकरशाही को भी सन्देश दिया गया है कि जो भाजपा के खिलाफ बोलेगा उसे हटा दिया जाएगा। शायद आलोक वर्मा सरीखा अंजाम होने से पहले ही उर्जित पटेल ने इसलिए ही स्वयं इस्तीफा दे दिया। फासीवाद निम्न मध्य वर्ग का प्रतिक्रियावादी आन्दोलन होता है जिसे काडर आधारित पार्टी संगठित करती है। जनता के बीच संघ अपने काडर को गली-गली मोहल्लों में फैलाता है। वहीं यह राज्यसत्ता के अंग-उपांग पर भी कब्जा करता है। ग्राम्शी की शब्दावली में फासीवाद धीरे-धीरे जनता के बीच और राज्यसत्ता की पोर-पोर में समा जाता है जिसे उन्होंने मौलिक्युलर परमीएशन कहा था। मौजूदा उठा-पटक सीबीआई के भीतर से इस फासीवादी ‘परमीएशन’ के खिलाफ ही प्रतिरोध है जिसे आखिर टूटना ही है। मौजूदा समय में सीबीआई और ऐसी ही अन्य कईं घटनाओं के चलते ही देश में इस समय मोदी सरकार के प्रति विपरीत हवा बह रही है परन्तु आरएसएस के जनाधार, मीडिया द्वारा भयंकर प्रचार, बेहद कमज़ोर चुनावी विपक्ष और जनता के बिखरे जनान्दोलनों को समेटने में नाकामयाब क्रान्तिकारी शक्तियों के कारण मोदी सरकार के खिलाफ लहर को आन्दोलनात्मक अभिव्यक्ति नहीं मिली है बस कुछ बिखरे आन्दोलन देश भर में खड़े हुए हैं।

आज दुनिया भर में आर्थिक संकट के बादल छाने के चलते फासीवादियों द्वारा देश को अडानी-अम्बानी को बेचने के बावजूद भी आर्थिक संकट की मंडराती छाया ने बाज़ार पर खतरा खड़ा किया है; जिस कारण सरकार को और अधिक नंगेपन के साथ जनविरोधी नीतियों को लागू कर अमीरों की जेबें भरनी होंगी। इसे अन्तरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भी रखकर देखने की ज़रूरत है। दुनिया भर के हुक्मरान इस कदर एक दूसरे से उलझे हुए हैं कि साम्राज्यवाद के मौजूदा दौर में एक छोटी सी घटना भी युद्ध को जन्म दे सकती है। इसकि अभिव्यक्ति अरब की ज़मीन पर मिलती है जहाँ रूस-चीन-ईरान की धुरी के खिलाफ अमरीका-इजराइल- सऊदी अरब के बीच छाया युद्ध चल रहे हैं। ब्राज़ील में फासीवादी बोलसनेरो सत्ता में पहुँच गया है और अब जल्द ही वहाँ भी “अच्छे दिनों” की दस्तक होगी।

दुनिया के हर कोने में इस प्रतिक्रियावादी आन्दोलन को परास्त करने में सबसे अग्रणी ताकत युवाओं छात्रों और मज़दूरों की ही होगी। इसका ताजा उदाहरण फ्रांस के छात्रों और मजदूरों का यैलो जैकेट आंदोलन है जो सरकार की मजदूर विरोधी और छात्र विरोधी नीतियों के खिलाफ़ स्वतस्फूर्त तौर पर उठ खड़ा हुआ है। जो लोग चुनावी रास्ते पर दाँव लगाकर बैठे हैं वे बार-बार गलत साबित हुए हैं परन्तु वे एमनीशिया का शिकार हैं और इतिहास से कोई सबक लेने में अक्षम हैं। अभी तक देश के कम्युनिस्टों एक हों का नारा लगाने वाले तथाकथित वामपन्थी और प्रगतिशील लोग सभी विपक्षीय पार्टियों एक हो का नारा लगा रहे हैं। इस दौरान फासीवाद से लड़ने के नाम पर ये विचित्र किस्म की लीलाएँ भी कर रहे हैं। इन जोकरों की नीतियों का भण्डाफोड़ भी आगामी संघर्ष के लिए ज़रूरी है। आज जो असल संघर्ष के ज्वलन्त मुद्दे हैं उन्हें हमें अपने एजेंडे पर रखना ही होगा। आज फासीवाद विरोधी आन्दोलन में  एक तरफ़ क्रान्तिकारी संस्थानिर्माण करना होगा तो दूसरी तरफ़ बेरोज़गारी व शिक्षा के सवाल पर जनता के जुझारू आन्दोलन खड़े करने होंगे! संसदीय जनवाद का जो भी बचा-खुचा स्पेस है उसका इस्तेमाल कर पूँजीवाद का भण्डाफोड़ आयोजित करना होगा जिससे एक समतामूलक समाज का सपना आम जनता तक पहुँचाया जा सके।

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,जुलाई-दिसम्बर 2018

'आह्वान' की सदस्‍यता लें!

 

ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीआर्डर के लिए पताः बी-100, मुकुन्द विहार, करावल नगर, दिल्ली बैंक खाते का विवरणः प्रति – muktikami chhatron ka aahwan Bank of Baroda, Badli New Delhi Saving Account 21360100010629 IFSC Code: BARB0TRDBAD

आर्थिक सहयोग भी करें!

 

दोस्तों, “आह्वान” सारे देश में चल रहे वैकल्पिक मीडिया के प्रयासों की एक कड़ी है। हम सत्ता प्रतिष्ठानों, फ़ण्डिंग एजेंसियों, पूँजीवादी घरानों एवं चुनावी राजनीतिक दलों से किसी भी रूप में आर्थिक सहयोग लेना घोर अनर्थकारी मानते हैं। हमारी दृढ़ मान्यता है कि जनता का वैकल्पिक मीडिया सिर्फ जन संसाधनों के बूते खड़ा किया जाना चाहिए। एक लम्बे समय से बिना किसी किस्म का समझौता किये “आह्वान” सतत प्रचारित-प्रकाशित हो रही है। आपको मालूम हो कि विगत कई अंकों से पत्रिका आर्थिक संकट का सामना कर रही है। ऐसे में “आह्वान” अपने तमाम पाठकों, सहयोगियों से सहयोग की अपेक्षा करती है। हम आप सभी सहयोगियों, शुभचिन्तकों से अपील करते हैं कि वे अपनी ओर से अधिकतम सम्भव आर्थिक सहयोग भेजकर परिवर्तन के इस हथियार को मज़बूती प्रदान करें। सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग करने के लिए नीचे दिये गए Donate बटन पर क्लिक करें।