एक युवा नाटककार की नज़र से ललितगेट घोटाला
सनी
महान जर्मन नाटककार बेर्टोल्ट ब्रेष्ट ने एक जगह लिखा है कि वही नाटक वास्तविक दुनिया का प्रतिबिम्बन कर सकता है जो दुनिया को बदलने का मंचन करे। भारतीय राजनीति इस समय तमाम नाटककारों को न्यौता दे रही है कि उसपर भी नाटक लिखे जाएँ! क्योंकि जितनी फजीहत एक साल में नरेन्द्र मोदी के “अच्छे दिनों” और “सुशासन” की हुई है वह भारतीय राजनीति के बारे में दिलचस्प कामदियों को जन्म दे सकता है। प्रसिद्ध पंजाबी संस्कृतिकर्मी गुरुशरण सिंह का नाटक ‘हवाई गोले’ संसद में पक्ष-विपक्ष द्वारा एक-दूसरे के साथ ‘तू नंगा-तू नंगा’ का खेल खेलने और इस प्रक्रिया में पूँजीपतियों की सेवा करने, घपले-घोटाले करने और जनता को बेवकूफ़ बनाने की प्रक्रिया को उजागर करता है। जब से यह नाटक लिखा गया है तब से देश भर की तमाम नाटक टोलियाँ इस नाटक की स्क्रिप्ट में महज़ घोटालों, नेताओं-मंत्रियों और पूँजीपतियों के नाम और संख्या में बदलाव करके आज तक इसका मंचन करते हैं। आज नाटक को फिर से उसी तर्ज पर सम्पादित करने की जरूरत है क्योंकि पूँजीवाद संसद में नए नेता मंत्री आए हैं। तू नंगा- तू नंगा का यह 67 साल पुराना खेल फिर से रंगमंच पर उतरकर ब्रेष्ट की बात को सच कर देगा। यह नाटक यथार्थ का चित्रण करता है क्योंकि यह शासक वर्ग की सत्ता का राजनीतिक भंडाफोड़ कर समाज को बदलने की बात करता है। ‘तू नंगा-तू नंगा’ और भ्रष्टाचार में सबसे आगे रहने की कोशिश करने वाला देश इस बार भी भ्रष्टाचार के सारे रिकोर्ड तोड़ने वाला है। सुषमा स्वराज द्वारा ललित मोदी को की गई ‘मदद’ से शुरू हुआ विवाद वसुन्धरा राजे और मोदी के करीबी रिश्तों से लेकर राहुल गाँधी, उनकी माता श्री व तमाम लोगों को अपने अंदर खींच चुका है। इस लेख को लिखने की प्रक्रिया में ही मोदी सरकार के नेताओं ने घोटालों की रेलम पेल मचा दी। शिवराज चौहान, मुंडे, तावडे़ से लेकर भाजपा ने कईं नेताओं की कलई खुल रही है। घोटालों की फ़ेहरिस्त इतनी लम्बी हो गई है कि इनकी सूची बनाने में ही तमाम पन्नों को काला किया जा सकता है। व्यापम का खूनी घोटाला, पासपोर्ट में घोटाला, जमीन अधिग्रहण घोटाला से लेकर सेल्फी घोटाला! ओह नहीं! ये तो हमारे प्रधानमंत्री जी की मानसिक बीमारी, मेरा मतलब है, व्यक्तिगत मसला है। लेकिन हम फिलहाल उस घोटाले पर या वाटरगेट के बाद से शुरू हुए गेट नामकरण से नामित हुए ललितगेट पर ध्यान केन्द्रित करेंगे जिसने 56 इंच के सीने को किशमिश के बराबर बना दिया है। अब तक दंगे कराकर, लवजिहाद से लेकर घरवापसी के नाम पर जनता को बाँटकर पूँजीपतियों के ‘वास्को डि गामा’ प्रधानसेवक की सरकार जनता को भरमा नहीं पा रही है। तमाम मीडिया चैनलों को भी मजबूरन यह खबरें दिखानी पड़ रहीं हैं। परन्तु यह खबरें सामने कैसे आती हैं? जब सत्ता पक्ष तहेदिल से पूँजीपतियों की सेवा में लगा है फिर कैसे ललितगेट जैसे राजनीतिक घोटाले बाहर आ जाते हैं? दरअसल, पूँजीपति वर्ग तो चाहता है कि उसकी मैनेजिंग कमेटी यानी सरकार ईमानदारी से काम करे और घोटाले करने की आज़ादी केवल उसे हो! परन्तु पूँजीवाद अन्तरविरोधों से भरी व्यवस्था है। वित्तीय पूँजी के जंजाल में नीचे से लेकर ऊपर तक जहाँ ट्रस्ट, कार्टेल और तमाम पूँजीपति धडो़ं में मुनाफे को लेकर कुत्ताघसीटी चलती रहती है, वहाँ पर सदाचार एक लुप्त हो चुका जानवर बन चुका है! नौकरशाही और मंत्रियों के जरिए ही लूट के सौदों पर हस्ताक्षर होते हैं इसलिए इनकी कमीशनखोरी और दलाली चलती रहती है। ललितगेट में यही हुआ है। ललित मोदी खुद भी एक बड़े पूँजीपति खानदान से आता है, पर अभी वह एक बड़ा दलाल है जो तमाम पूँजीपति घरानों को आईपीएल में निवेश करवाने वाला पहला एजेन्ट था। आज वित्तीय पूँजी का शेयर बाजार, युद्ध बैंक और बीमा क्षेत्र के बाद मनोरंजन उद्योग में जमकर निवेश होता है। भारत में क्रिकेट को लोगों के दिमागों में इसी तरह परोसा गया है जिससे कि यह पूँजी को बडे़ स्तर पर निवेश का मौका दे। परन्तु यहाँ दल्लों के बीच भी कोई एकजुटता नहीं है। कूड़ेदान पर लड़ते कुत्तों के बीच क्या कोई एकता हो सकती है? ललित मोदी और श्रीनिवासन के बीच भी दलाली की जबरदस्त होड़ मची हुई थी। कुछ दिन पहले श्रीनिवासन और उनका दामाद सट्टे में फँसे थे। इस बार ललित मोदी की बारी थी। पर ललित मोदी के साथ यह भाजपा सरकार के घोटालों को बेपर्द करने वाली घटना बन गई। हुआ यूँ कि ललित मोदी के कुछ ई-मेल इज़रायली डिटेक्टिव कम्पनी ने हैक कर बड़े मीडिया हाउस को बेच दिए। इन्हीं से लन्दन में एक नेता द्वारा ललित मोदी को दी गई मदद के बारे में पता चला और यह भी कि इस मदद के लिए सुषमा स्वराज ने एड़ी चोटी का ज़ोर लगा दिया था। लेबर पार्टी के कीथ वेज़ ने ब्रिटेन की सम्बन्धित विभाग पर सुषमा स्वराज के कहने पर ललित मोदी के लिए ब्रिटेन का वीज़ा तैयार करवाया। यह वह समय था जब डीओई विभाग को ललित मोदी की तलाश थी और वह लन्दन भाग गया था। सुषमा स्वराज ने ललित मोदी प्रकरण में अपना बचाव करते हुए कहा कि वे ललित मोदी की मानवीय मदद कर रही थी क्योंकि ललित मोदी अपनी पत्नी के कैंसर के इलाज के लिए लन्दन जाना चाहते थे! उनका यह बचाव टिक नहीं पाया क्योंकि इसी समय कुछ नए तथ्य सामने आये कि सुषमा स्वराज के मोदी के साथ लम्बे समय से घनिष्ठ सम्बन्ध थे और इनकी बेटी तो ललित मोदी के ऊपर लगने वाले आरोपों में उनकी वकील थी। सुषमा स्वराज के पति स्वराज कौशल 22 साल से ललित मोदी की कम्पनी के कानूनी सलाहकार थे। साफ़ था कि सुषमा स्वराज लम्बे समय से उनके परिवार द्वारा की गई तीमारदारी का हिसाब चुकता कर रही थी। साफ़ है, बड़े मोदी की सरकार छोटे मोदी के मसले पर एकदम निपट नंगी सड़क पर भाग चली है।
यह प्रकरण चल ही रहा था कि भाजपा की नेता मुण्डे 206 करोड़ के घोटाले में आ फँसी है। और फिर जावडे़ की खबर आई। उधर व्यापम में कराई जा रही हत्याएँ शोर मचाने लगी। परन्तु इस सबपर 56 इंच का सीने वाला मोदी चुप्पी मार कर बैठा रहा। ‘मन की बात’ से लेकर ट्विटर पर हर घटना पर ट्वीट करने वाले मोदी चुप रहे। दूसरी तरफ़ ललित मोदी ने ट्विटर पर अपनी बक-बक जारी रखी और मोदी सरकार की एक और मंत्री वसुन्धरा राजे के घपलों का पिटारा खुलने लगा। ललित मोदी ने वसुन्धरा राजे से अपनी करीबी दोस्ती के बारे में बताया। यह भी किसी से छिपा नहीं है कि कैसे राजे सरकार ने 2005 में नया कानून पारित कर ललित मोदी को राजस्थान क्रिकेट एसोशिएसन का अध्यक्ष बनने में मदद की थी। वसुन्धरा राजे ललित मोदी को राजस्थान में जमीन हड़पने में अपनी जिम्मेदारी निभा चुकी हैं। ललित मोदी ने यह भी दिखाया कि कैसे वसुन्धरा राजे ने कोर्ट में दरख़्वास्त पर हस्ताक्षर कर उनके ऊपर चल रहे मुकदमे में उनका समर्थन किया था। ललित मोदी के अनुसार राजे ने ही उसके बारे में कहीं भी बाहर बोलने से मना किया था। भ्रष्टाचार कर पाने की हवस में ये संसदीय लंगूर भी ग़लती कर देते हैं और जनता के सामने खुल कर नंगे हो जाते हैं। वसुन्धरा राजे के बेटे की कम्पनी के दस रुपये दाम के शेयरों को ललित मोदी ने 96,000 रुपये में खरीदा था!
इस पूरे वाकये में भाजपा सरकार के अन्तरविरोध भी उभर आए हैं। लम्बे समय से कांग्रेस के शासन के कारण भाजपा के नेता सत्ता में आते ही जैसे बौखला गए हैं। देश का ‘प्रधानसेवक’ देश से ज़्यादा विदेश में घूमता है। वे किसी भी राजनेता द्वारा किए गए विदेशी दौरों की प्रतिस्पर्धा में अव्वल हैं। व्यापम घोटाला अब तक करीब 45 जानें ले चुका है और राज्यसत्ता के चरित्र को ये खुल कर नंगा कर रहे है। अब इनके पास अब सिर्फ हिन्दुत्व की परत है जो यह लगातार चढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, अटाली में दंगे कराकर, मुज़फ्फ़रनगर-शामली में लगातार साम्प्रदायिकता की लहर फैलाकर। परन्तु जिस कदर संसद में बैठे ये भ्रष्टाचारी नंगे हो रहे हैं मीडिया द्वारा बनाई मोदी लहर के लिए संकट हो सकता है और हो सकता है आने वाले समय में ये जनता का ध्यान बाँटने के लिए कोई जुमला उछाले, किसी देश के साथ किए लूट के सौदों को ऐतिहासिक बताएँ या फिर दंगे भड़काकर जनता का ध्यान बाँटें। मोदी द्वारा जन सुरक्षा बिल को अभी ज़्यादा कवरेज नहीं मिली है और इस रक्षाबंधन पर शायद वे फिर इस गुब्बारे में हवा भरें। पर जिस दर से मोदी सरकार के मंत्री लूट, खून, खराबे और अय्याशी में पकड़े जा रहे हैं उसे ये सुरक्षा बिल के खोखले ड्राफ्ट नहीं सम्भाल सकते हैं। इनकी हवस का अंदाजा वसुन्धरा राजे के हलफनामे और सुषमा स्वराज के मंत्रालय में किसी को सूचित किये बिना जारी समर्थन पत्र से लग सकता है।
जनता के लिए सबक क्या हो? साफ़ दिख रहा है कि भ्रष्टाचार की फफूँद पूँजीवादी राज्य व्यवस्था के सारे अंगों-उपांगों में लगी होती है। साफ़-सुथरा पूँजीवाद एक मिथक है। सत्ता में आने पर ठेकेदारों, शेयर बाजार के दलालों, बड़े दुकानदारों और बड़े धनी किसानों की सरकार जनता को सिर्फ़ कानूनी तौर पर लूटने की छूट पूँजीपतियों को नहीं देती, बल्कि घपलों-घोटालों के ज़रिये भी सार्वजनिक सम्पत्ति की जमकर लूट मचायी जाती है। हिस्ट्रीशीटरों, बलात्कारियों और सेंधमारों की सरकार से कोई अन्य उम्मीद लगाना भी बेमानी होगा। मोदी के द्वारा किए गए तमाशे जनता का ध्यान जितना भी बँटाने की कोशिश करें, वित्तीय पूंजी के गटर निकलता घपलों-घोटालों का बदबूदार भभका तेज़ी से मोदी सरकार की सच्चाई को जनता के सामने ला रहा है। यह भ्रष्टाचार पूँजीवाद की विच्युति नहीं नियम है। इस बात को हमें जनता तक लेकर जाना होगा। बात की शुरुआत नाटक द्वारा यथार्थ के चित्रण पर हुई थी तो हम ब्रेष्ट की बात समझते हुए कह सकते हैं कि इस सबक को हम नाटकों में गढ़ सकते हैं क्योंकि जनता उसे सुनने को तैयार है। केवल ऐसा नाटक ही आज यथार्थ का सच्चा चित्रण कर सकता है जो मौजूदा व्यवस्था की सच्चाई को जनता के सामने सरेआम बेपर्द कर दे।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मई-अक्टूबर 2015
'आह्वान' की सदस्यता लें!
आर्थिक सहयोग भी करें!