अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस: भगवाकरण का एक और प्रयास
सिमरन
21 जून 2015 को दुनिया भर में अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया गया, भारत की राजधानी दिल्ली में राजपथ पर एक भव्य योग समारोह का आयोजन किया गया जिसमें एक साथ 35,985 लोगों ने बाबा रामदेव जैसे ‘योग गुरुओं’ की देखरेख में योग किया, हालाँकि इस देखरेख के बावजूद रेल मन्त्री सुरेश प्रभु योग करते-करते सो गये! बहरहाल, संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से केवल यमन को छोड़ 192 देशों में इसी तरह के योग समारोह आयोजित किये गए जहाँ लोगों ने योग किया। योग के इस जश्न को मोदी सरकार भारत के गौरव के रूप में पेश करते हुए यह जता रही है कि पूरे विश्व ने भारत की योग विद्या की महानता को समझा है और इसी के साथ अब भारतीय लोगों को खुद पर गर्व महसूस करना चाहिए । लोगों ने अपने भारतीय होने पर गर्व केवल मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही करना शुरू किया है, ऐसी खुशफहमी के शिकार मोदी जी इस साल सिओल में दिए अपने भाषण में यह बात पहले भी कह चुके हैं (वैसे यह भी सोचने की बात है कि मोदी के पहले या बाद में वाकई कोई गर्व करने वाली चीज़ थी!)। बहरहाल, अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के लिए राजपथ पर खूब तैयारियाँ की गयीं। प्रधानमंत्री मोदी जर्मन स्पोर्ट्सवेयर बनाने वाली कम्पनी एडिडास द्वारा खास तौर से तैयार की गयी कस्टम पोशाक पहन नीले जापानी योगा मेट पर योग करने के लिए पधारे! साथ ही 35,000 से भी ज़्यादा लोगों की भीड़ में नेता, मंत्री, अभिनेता, वी.वी.आई.पी., स्कूली बच्चों को भी बुलाया गया। इस समारोह की तैयारियों की चर्चा पूरे मीडिया में ज़ोर-शोर से हो रही थी। 15,000 से भी ज़्यादा पुलिसकर्मी राजपथ पर सुरक्षा के लिए तैनात किये गए। 40 एम्बुलेंस के साथ 200 डॉक्टर व चिकत्साकर्मी भी राजपथ पर मौजूद थे। पी.आर. कैम्पेन की दीवानी मोदी सरकार ने आयुष (आयुर्वेद, योग, नेचुरोपैथी, यूनानी, सिद्धा और हैम्योपैथी) मंत्रालय द्वारा गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में सबसे बड़े योग समारोह का खिताब हासिल करने की मंशा से इतने बड़े समारोह का आयोजन करवाया और इसी के साथ मोदी सरकार और संघ अपने भगवाकरण के एजेंडे को बढ़ाने में एक बार फिर कामयाब हो गई।
योग करना या न करना, योग का सेहत के लिए फायदेमंद होना या न होना किसी बहस का मुद्दा नहीं है, इस लेख में आगे बढ़ने से पहले और संघ के भगवाकरण के प्रयासों के बारे में तफ़सील से बात करने से पहले एक बात हम साफ़ कर देना चाहते है कि योग अपने आप में एक अच्छा व्यायाम है। यह प्राचीन भारत का एक आनुभविक विज्ञान है, जिसे तार्किक और विकसित विज्ञान को रूप दिया जा सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं है। मगर जिस तरह इस प्रतीक का इस्तेमाल “हिन्दू गौरव” और ‘केवल योग करने वालों को भारत में रहने का हक होने’ की बात की जा रही है वह बेहद ख़तरनाक है। इस तरह की कोशिशें देश में साम्प्रदायिक माहौल को हवा देने के काम के अलावा और कुछ नहीं करती। गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ का मुस्लिम आबादी के सूर्यनमस्कार का योग दिवस में किये जाने वाले आसनों में शामिल करने पर आपत्ति जताने पर यह कहना कि जिनको योग नहीं करना वह जाकर समुन्दर में डूब मरे या फिर साध्वी प्राची की योग न करने वालों को भारत छोड़ देने की नसीहत संघी भगवाकरण और सम्प्रदायिकता को साफ उजागर कर देती है।
प्रथमतः तो पूँजीवादी समाज में भी राज्य का धर्म से विच्छेद होना चाहिए। आज के समय में राज्य के धर्मनिरर्पक्षता का पैमाना यही हो सकता है कि वह धर्म के दायरे को व्यक्तियों के निजी ज़िदगी का मसला बनाकर स्वयं का धर्म से विच्छेद कर ले। मगर मोदी सरकार और उसके बौद्धिक-राजनीतिक विचारधारा के स्रोत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने हिन्दुत्व के मुद्दे को चुनाव से पहले और सरकार बन जाने के बाद प्राथमिकता में सबसे ऊपर रखा है। चुनाव के ठीक पहले से ही भाजपा और संघ ने पूरे देश में साम्प्रदायिकता का माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी चाहे वह मुज़फ़्फरनगर में हुए दंगे हो, लव जिहाद या चुनाव जीतने के बाद से ‘घर वापसी’ के नाम पर मुसलमानों का ज़बरन धर्म-परिवर्तन करवाने की बात हो। संघ का ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनाने का सपना और उसका भगवाकरण का एजेंडा वह साँप है जो मोदी सरकार के सत्तासीन होने के बाद अपने संघी बिल से निकल कर पूरे देश में साम्प्रदायिकता का ज़हर फैलाने के लिए फुंकार रहा है। मोदी सरकार के गठन के साथ ही देश भर में फासीवाद की एक लहर चल पड़ी है। मोदी सरकार अपने कार्यभारों को बखूबी से निभा रही है एक तरफ संघ के हिन्दू राष्ट्र के निर्माण के लिए पूरी तरह समर्पित होकर शिक्षा, विज्ञान, कला, अभिव्यिक्ति की आज़ादी पर लगातार हमले किये जा रहे है और दूसरी तरफ चुनाव में अरबों रुपयों में चंदा देने वाले अपने अदानी, अम्बानी जैसे कॉरपोरेट आकाओं की भी जी जान लगाकर खिदमत की जा रही है। मोदी सरकार का इन दोनों लक्ष्यों के प्रति सर्मपण देखते ही बनता है। इन दोनों पहलुओं पर गहराई से बात करना आवश्यक है पर पहले संघ और भगवाकरण की राजनीति पर बात करना ज़रूरी है। सरकार बनने के तुरन्त बाद से ही ‘स्वच्छ भारत अभियान’, गंगा की सफाई, महाराष्ट्र में गौमांस सेवन पर प्रतिबन्ध और अब योग दिवस जैसी परियोजनाओं के पीछे छुप कर मोदी सरकार भगवाकरण के अपने एजेंडे को लगातार विस्तारित कर रही है। अल्पसंख्यकों के ऊपर बढ़ रहे हमले, क्रिसमस के दिन गुड गर्वनेंस डे के नाम पर ईसाइयों की भावना को ठेस पहुँचाना, गिरजाघरों पर लगातार हो रही हिंसा के मामले। हाल ही में अटाली गाँव में हुआ दंगा, भाजपा के निरंजन ज्योति, योगी आदित्यनाथ जैसे मंत्रियों के साम्प्रदायिकता फैलाने वाले बयान सभी एक सोची-समझी योजना का हिस्सा हैं। चुनाव जीतने के बाद मोदी ने संयुक्त राष्ट्र के अपने दौरे के समय 21 जून को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पेश किया था जिसे संयुक्त राष्ट्र ने स्वीकार किया था। अब यह बात किसी को इत्तेफाक लग सकती है कि 21 जून को संघ के पू्र्व सरसंघचालक केशव बलिराम हेडगेवार की पुण्यतिथि है। ख़ैर संयुक्त राष्ट्र की सहमति मिलने के बाद मोदी सरकार ने अपने इस मंसूबे को अमली जामा पहनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एक महीने पहले से रेडियो, टी.वी, सोशल मीडिया पर इश्तेहारों से योग दिवस का प्रचार और मोदी सरकार के इस प्रयास की सराहना शुरू कर दी गयी। तमाम नेता मंत्री, अभिनेता योग के फायदे और योग के भारतीय मूल के होने पर कसीदे पढ़ते हुए दिखाए पड़े। मोदी सरकार वैश्विक स्तर पर योग की इस ख्याति को अपनी राजनीतिक विजय के रूप में दर्शा रही है। मगर अपने इतिहास, ध्यान देने की जरूरत है ‘हिन्दू’ इतिहास को याद करने और उस पर गर्व करने की गुहार लगाने का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले साल की शुरुआत में इंडियन साइंस कांग्रेस में वैदिक विज्ञान विवाद से ही इस पूरे प्रक्रम का श्री गणेश किया जा चुका है। जनवरी में हुई इण्डियन साइंस कांग्रेस में कप्तान बोडस ने एक आलेख पेश किया जिसमे उन्होंने दावा किया कि भारत में वेदों के समय से ही ऐसे विमान मौजूद थे जो न केवल पृथ्वी पर बल्कि अंतरिक्ष में भी उड़ सकते थे, वैमानिक शास्त्र का हवाला देते हुए वेदों को विज्ञान का सर्वोच्च स्रोत साबित करने की कवायद की गयी जिसको भाजपा के मंत्रियों से लेकर संघ के प्रचारकों ने खूब प्रचारित किया। साइंस कांग्रेस से पहले मोदी ने अपने एक भाषण में गणेश को इतिहास में हुई सबसे पहली प्लास्टिक सर्जरी बताया! इसके बाद तो जैसे मूर्खों की बाढ़ ही आ गयी। अपने परम सम्माननीय नेता और भारत माता के शेर के इस बयान के बाद अपनी वफ़ादारी दिखाते हुए गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने हिंदी दिवस पर दिए अपने भाषण में हाइज़नबर्ग के अनिश्चितता के सिद्धांत को वेदों से चुराया हुआ बताया! ऐसे बेतुके बयानों की फेहरिस्त काफी लम्बी है जिनके ज़रिये जनता को अपने हिन्दू होने पर, वेदों के ज्ञान पर गर्व करने को प्रेरित किया गया। फासीवाद की यह पुरानी रणनीति है। यह मानवता को देखने के लिए कोई बेहतर भविष्य नहीं दे सकता है, इसलिए यह अपनी सारी ऊर्जा एक काल्पनिक अतीत से ग्रहण करने का प्रयास करता है। और एक औपनिवेशिक इतिहास वाले देश में और अपने अतीत में मौजूद प्रगतिशील और भौतिकवादी परम्पराओं से कटी हुई वर्जना और कुण्ठा के शिकार निम्न मध्यवर्ग और टटपुँजिया वर्गों में और यहाँ तक कि मज़दूर वर्ग के भी एक हिस्से में यह कल्पित अतीत का गौरवगान काफ़ी अपील अर्जित कर लेता है। हाफपैण्टिया ब्रिगेड आज से नहीं कई दशकों से अपनी इस फासीवादी परियोजना में लगी हुई जिसमें वह मिथकों को स्थापित कर उन्हें सामान्य बोध (कॉमन सेंस) का रूप देने का प्रयास कर रही है ताकि अपने फासीवादी राजनीतिक लक्ष्यों को पूरा कर सके।
विज्ञान पर इस हमले के बाद शिक्षा के संस्थानों और कला के प्रतिष्ठानों में अहम ओहदों पर ऐसे लोगों को नियुक्त किया जाना जो या तो आर.एस.एस. के प्रचारक रहे हों या फिर संघ के सामने दंडवत लोट लगाने को व्याकुल हों, भाजपा के भगवाकरण के एजेंडे को बिलकुल साफ कर देता है। फिर चाहे वह भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद् (आईसीएचआर) के अध्यक्ष के रूप में सुदर्शन राव की नियुक्ति हो जो कि जाति प्रथा के हिमायती हैं, महाभारत और रामायण को मिथ्या न मान असली इतिहास समझते हैं; या फिर इंडियन सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) के अध्यक्ष के रूप में पहलाज निहलानी जैसे थर्ड-क्लास फिल्में बनाने वाले सड़कछाप आदमी की नियुक्ति हो; या फिर ‘हर घर मोदी’ लघुफिल्म बनाने वाले और सिनेमा से ‘बॉम्बे’ शब्द समेत 20 शब्दों पर प्रतिबंध लगाने की सूची तैयार करने वाले संघ के करीबी लोगों की अहम पदों पर नियुक्तियाँ हों; या फिर हाल ही में फिल्म एण्ड टेलेविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इण्डिया (एफटीआईआई) के अध्यक्ष के रूप में सॉफ़्ट पोर्न फिल्मों के अभिनेता और महाभारत में युधिष्ठिर का अभिनय करने वाले गजेन्द्र चौहान की नियुक्ति हो।
महाराष्ट्र में गौमांस पर प्रतिबन्ध लगा कर किसके हितों को बचाया जा रहा है और किसको रिझाया जा रहा है यह बताने की ज़रूरत नहीं है। अभिव्यक्ति की आज़ादी को लगातार कुचला जा रहा है चाहे वह आई.आई.टी चेन्नई में ‘अम्बेडकर पेरियार स्टडी सर्किल’ पर प्रतिबन्ध का मामला हो या कैम्पसों में सिकुड़ते जनवादी स्पेस का मामला। इसके साथ ही गै़र-हिन्दू आबादी के खि़लाफ़ ज़हर उगलना लगातार जारी रहा है-निरंजन ज्योति का दिल्ली में चुनाव से पहले रामज़ादों-हरामज़ादों का बयान, साक्षी महाराज का हिन्दू औरतों को 4 बच्चें पैदा करने की नसीहत ताकि हिन्दुओं की जनसँख्या बढ़ाई जा सके जिससे हिन्दू धर्म की रक्षा की जा सके ऐसे कुछ उदाहरण है। देश की सत्तर फीसदी आबादी बेरोज़गारी, भुखमरी, गरीबी और चिकित्सा के अभाव में जीती है पर उनकी समस्याओं का समाधान तो प्रधानमंत्री जी तब निकालेंगे जब वह भारत में रहेंगे! भूटान, ब्राजील, नेपाल, जापान, अमरीका, म्यांमार, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका, सिंगापुर, फ्रांस, कनाडा, चीन, मंगोलिया, साउथ कोरिया और बांग्लादेश की अपनी विदेश यात्राओं के दौरान मोदी जी दुनिया भर के साम्राज्यवादी, पूँजीपति देशों को भारत की प्राकृतिक सम्पदा और श्रम लूटने का खुला न्यौता देने और अपने आकाओं अदानियों-अम्बानियों के लिए दूसरे देशों में निवेश आसान करने की मेहनत के बाद जब भारत वापिस लौटते हैं तब भारतवासियों को ‘स्वच्छ भारत’ और योग दिवस मनाने को कहते है! इस देश की जनता को असली मुद्दों से भटकाने की कला में मोदी सरकार माहिर है। योग दिवस के राजपथ पर हुए समारोह पर कुल 46.7 लाख अमेरिकी डॉलर खर्च आया है! केवल कुछ घंटों की नौटंकी के लिए आम मेहनतकश जनता के खून-पसीने की कमाई को यूँ ही बहा दिया गया! अगर मोदी सरकार आम जनता की सेहत को लेकर इतनी ही फिक्रमंद है तो पहले वह इस देश की 70 फीसदी आबादी तक खाना पहुँचाये क्योंकि योग करने के लिए ज़िन्दा रहना ज़रूरी है! इस देश में जहाँ बच्चे कुपोषण का शिकार हैं वहाँ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिहं चौहान ने आँगनवाड़ियों में बच्चों को अण्डा दिए जाने पर पाबन्दी लगा दिया है! अब कोई इन महाशय से पूछे कि पहले से ही कुपोषण की मार झेल रहे बच्चों से जो थोड़ा बहुत पौष्टिक आहार पहुँच रहा था उसे रोक कर उन्होंने किसका भला किया। योग दिवस के बाद मानव संसाधन मंत्री श्रीमति स्मृति ईरानी जी ने यह घोषणा की है कि केंद्र सरकार के स्कूलों में छठी से दसवीं कक्षा तक योग अब एक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाएगा जिसकी साल के अंत में 80 नंबर की व्यवहारिक परीक्षा होगी। केवल छात्रों को ही नहीं अब से अध्यापक बनने के ट्रेनिंग के दौरान शिक्षकों को भी योग करना अनिवार्य होगा। अगले साल राष्ट्रीय योग प्रतियोगिता का आयोजन किया जाएगा जिसमें सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले छात्र/छात्रा को 5 लाख रूपये का ईनाम भी दिया जाएगा। योग के ज़रिये भगवाकरण की अपनी इस मुहिम को मोदी सरकार यह कह कर उचित साबित कर रही है कि योग दिवस में हिस्सा लेना अनिवार्य नहीं है बल्कि व्यक्ति-विशेष की मर्जी है और इसका किसी धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है मगर उनके इस दावे की पोल उन्ही की पार्टी के राष्ट्रीय सचिव राम माधव के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के योग दिवस में शामिल न होने पर आपत्ति जताने से साबित हो जाती है, योग को मोदी सरकार हिन्दू धर्म से अलग तो कतई नहीं देखती है क्योंकि अगर ऐसा होता तो आयुष मंत्रालय के मुखिया श्रीपद नायक यह कहने को मजबूर न होते कि नमाज़ पढ़ते समय किये जाने वाली मुद्राएँ जैसे कयाम वज्रासन, रूकू अर्धशीर्षासन और सजदा शशांक आसन है! हालाँकि नायक ने एक ही सांस में यह भी कह डाला की नमाज़ में की जाने वाली मुद्राएँ योग आसन है मगर योग का किसी धर्म से लेना-देना नहीं है और योग करते समय ओम का उच्चारण करना भी ज़रूरी नहीं है, साथ ही सू्र्यनमस्कार और श्लोकों का उच्चारण करना भी ज़रूरी नहीं है। एक अनुमान के हिसाब से अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर वैलनेस इंडस्ट्री 80 बिलियन डॉलर की इंडस्ट्री है और योग दिवस के बाद रामदेव बाबा ब्रांड भोगियों-कम-योगियों की माँग और बढ़ गयी है। सीधे तौर पर इस योग दिवस से फायदा हिन्दू बाबाओं और योगियों की जमात को हुआ है जिनकी अब विदेशों में माँग खूब बढ़ गयी है। 21 जून को ही दुनिया के अलग-अलग देशों ने भारत से योग इंस्ट्रक्टर्स और बाबाओं को योग करवाने के लिए न्यौता दिया। 21 जून के कार्यक्रम के बाद अखबारों में छपी ख़बरों में भी योग इंडस्ट्री से लेकर योग करने के समय काम आने वाली सामग्री जैसे चटाई आदि सामानों की इंडस्ट्री में बूम आने की खबरें छप रही हैं। योग को लेकर राजनीति और धन्धा केवल भारत में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी चल रहा है। मिसाल के तौर पर कनाडा के वैंकूवर स्थित ब्रुड ब्रिज पर ‘ओम द ब्रिज’ नाम के आयोजन को वहाँ के लोगों के द्वारा विरोध के बाद ख़ारिज कर दिया गया। गौरतलब है कि कनाडा की दो बड़ी योग का सामान बनाने वाली कम्पनियों ने वहाँ की प्रीमियर क्रिस्टी क्लार्क को चुनाव के दौरान पैसा दिया था और अब उनके व्यापार को फायदा पहुँचने के लिए नेशनल एबोरिजिनल डे (राष्ट्रीय मूल निवासी दिवस) मनाने की जगह योग दिवस मनाने के फैसले के बाद वहाँ की जनता के विरोध के बाद इस कार्यक्रम को रद्द कर दिया गया। मगर भारत में तमाम विरोध के बावजूद मोदी सरकार ने 676 जिलों में से 650 जिलों में योग दिवस पर कार्यक्रम आयोजित किये। 11 लाख एन.सी.सी कैडेट्स और 9 लाख सशस्त्र पुलिसकर्मियों ने कॉमन प्रोटोकॉल योग किया। आला कमान के हुकुम की तामील करते हुए मोदी सरकार के भारी-भरकम नेता मंत्री भी योग करने पहुँच गए! हाँ, यह बात अलग है कि रेल मंत्री सुरेश प्रभु योग करते हुए इतनी शांति में विलीन हो गए की योग समारोह के बीच में ही सो गए या नितिन गडकरी जी को आसान सा आसन करने के बाद वापिस उठने के लिए 4 लोगों की सहायता लेनी पड़ी! फ़ासीवादी उन्माद फैलाने के चक्कर में मोदी सरकार के कई नेता-मंत्रियों की खूब छीछालेदर हुई मगर ‘मंकी बाथ’, ओह, माफ कीजियेगा ‘मन की बात’ सुनने वाले इन कर्मठ नेताओं की इस पूरी नौटंकी से देश की आम मेहनतकश जनता की ज़िन्दगी में कोई बदलाव नहीं आएगा। बच्चे भूख और कुपोषण के कारण अपनी जान गँवा रहे हैं, किसान आये दिन आत्महत्या करने को मजबूर है। मजदूरों के खून को और चूसने के लिए श्रम कानूनों को और लचीला बनाया जा रहा है, बाल मजदूरी पर प्रतिबन्ध को अब एक कमज़ोर लचीले कानून से बदलने की बात की जा रही है। इस देश में स्त्री विरोधी अपराधों में आये दिन बढ़ोतरी हो रही है। धर्म के नाम पर हिन्दू और मुसलमानों को बाँटा जा रहा है, जाति के नाम पर दलितों के खि़लाफ़ उत्पीड़न के मामले आये दिन बढ़ रहे हैं। खाप पंचायतों से लेकर समाज के ठेकेदार अभिव्यक्ति की आज़ादी से लेकर इस देश के युवाओं की व्यक्तिगत आज़ादी को तार-तार कर रहे है। दंगे भड़का कर साम्प्रदायिकता के माहौल को लगातार बनाये रखा जा रहा है। मगर प्रधानमंत्री जी पवनमुक्त-आसन करते हुए हमें भी इन सब ज़रूरी मुद्दों की सोच से मुक्त हो योग साधना करने को कह रहे हैं! मगर इनसे कोई पूछे की जिसके पेट में अनाज का एक दाना न हो, जिसके घर में बच्चे बीमारियों के कारण दम तोड़ रहे हो वह कौन-सा आसन करे जिससे उसे इन तकलीफों से निजात मिले?
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मई-अक्टूबर 2015
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