भारत में नवउदारवाद की चौथाई सदी : पृष्ठभूमि और प्रभाव
नवउदारवाद के दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था शेयर बाज़ार में दुनिया भर के सट्टेबाज़ों की आवारा पूँजी और बैंकों के क्रेडिट के बुलबुले पर टिकी हुई एक जुआघर अर्थव्यवस्था में तब्दील हो चुकी है। ऐसी जुआघर अर्थव्यवस्था का प्रतिबिम्बन राजनीति और संस्कृति में झलकना लाज़िमी है। यह महज़ इत्तेफ़ाक नहीं है कि नवउदारवाद के पिछले 25 वर्ष भारत में हिन्दुत्ववादी साम्प्रदायिक फ़ासीवादी उभार के भी वर्ष रहे हैं। इस फ़ासीवादी उभार के प्रमुख सामाजिक आधार नवउदारवादी नीतियों से उजड़े निम्न बुर्जुआ वर्ग और उदीयमान खुशहाल मध्य वर्ग रहे हैं। इस फ़ासीवादी उभार ने नवउदारवादी नीतियों को लागू करने से होने वाले सामाजिक असन्तोष व आक्रोश को धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ गुस्से के रूप में भटकाकर भारत के बुर्जुआ वर्ग का हितपोषण किया है।