भारत में महिला श्रमबल भागीदारी दर में चिन्ताजनक गिराव
किसी समाज में काम करने वाली कुल आबादी में महिलाओं की भागीदारी उसके विकास का सूचक होता है। पूँजीवादी विकास और मुद्रा अर्थव्यवस्था के पदार्पण के साथ ही महिलाओं को अपने घरों की चौहद्दी को पार करने के लिए उत्प्रेरण मिलना शुरू होता है और वे ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में श्रमबल में भागीदारी करती हैं। मुनाफ़ा कमाने की सनक में डूबे पूँजीपति वर्ग के भी यह हित में होता है कि ज़्यादा से ज़्यादा महिलाएँ श्रमबल का हिस्सा बनें ताकि मज़दूर वर्ग की तादाद बढ़ने से उसकी मज़दूरी बढ़ाने के लिए मोलभाव करने की ताक़त कम हो।