आ गये “अच्छे दिन”!
आने वाले पाँच वर्षों तक नरेन्द्र मोदी की सरकार देशी-विदेशी पूँजी को अभूतपूर्व रूप से छूट देगी कि वह भारत में मज़दूरों और ग़रीब किसानों और साथ ही निम्न मध्यवर्ग को जमकर लूटे। इस पूरी लूट को “राष्ट्र” के “विकास” का जामा पहनाया जायेगा और इसका विरोध करने वाले “राष्ट्र-विरोधी” और “विकास-विरोधी” करार दिया जायेगा; मज़दूरों के हर प्रतिरोध को बर्बरता के साथ कुचलने का प्रयास किया जायेगा; स्त्रियों और दलितों पर खुलेआम दमन की घटनाओं को अंजाम दिया जायेगा; देश के अलग-अलग हिस्सों में साम्प्रदायिक दंगों और नरसंहारों को अंजाम दिया जायेगा और अगर इतना करना सम्भव न भी हुआ तो धार्मिक अल्पसंख्यकों को दंगों और नरसंहारों के सतत् भय के ज़रिये अनुशासित किया जायेगा और उन्हें दोयम दर्जे़ का नागरिक बनाया जायेगा। निश्चित तौर पर, यह प्रक्रिया एकतरफ़ा नहीं होगी और देश भर में आम मेहनतकश अवाम इसका विरोध करेगा। लेकिन अगर यह विरोध क्रमिक प्रक्रिया में संगठित नहीं होता और एक सही क्रान्तिकारी नेतृत्व के मातहत नहीं आता तो बिखरा हुआ प्रतिरोध पूँजी के हमलों का जवाब देने के लिए नाक़ाफ़ी होगा। इसलिए ज़रूरत है कि अभी से एक ओर तमाम जनसंघर्षों को संगठित करने, उनके बीच रिश्ते स्थापित करने और उन्हें जुझारू रूप देने के लिए काम किया जाये और दूसरी ओर एक सही राजनीतिक नेतृत्वकारी संगठन के निर्माण के कामों को पहले से भी ज़्यादा द्रुत गति से अंजाम दिया जाये।