वर्तमान संकट और जनता के आन्दोलनः क्या पूँजीवाद- विरोध पर्याप्त है?
ये सभी आन्दोलन पूँजीवाद की अजरता-अमरता के विक्षिप्त दावों को तो वस्तुगत तौर पर रद्द करते हैं, लेकिन ये पूँजीवाद का कोई विकल्प नहीं पेश करते। ये पूँजीवाद के लक्षणों के स्वतःस्फूर्त विरोध पर जाकर ख़त्म हो जाते हैं, जो निश्चित तौर पर आज बहुत बड़ा रूप अख्तियार कर चुका है। लेकिन यह पूँजीवाद-विरोध पर्याप्त नहीं हैं। बिना किसी सुपरिभाषित और सुविचारित लक्ष्य या उद्देश्य के; बिना किसी संगठन के; बिना किसी स्पष्ट विचारधारा के; बिना किसी अनुभवी नेतृत्व के, मौजूदा पूँजीवाद-विरोधी आन्दोलन असली प्रश्न तक पहुँच ही नहीं सकते। कि पूँजीवाद अजर-अमर नहीं है, यह पहले भी साबित हो चुका था। अब इसे फिर से साबित करने की कोई ज़रूरत नहीं है। आज ज़रूरत है कि हम विकल्प का एक कारगर मॉडल पेश करें और उसे लागू करने की कूव्वत रखने वाला एक नेतृत्व और संगठन खड़ा करें।