आज सूखे की जिस गम्भीर हालात का महाराष्ट्र और कमोबेश देश के अन्य कई राज्य सामना कर रहे हैं, वह अनायास या संयोगवश नहीं पैदा हो गयी है, बल्कि पूँजीवादी विकास का परिणाम भी है और पूँजीवादी विकास का एक विशेष, महत्वपूर्ण और अभिन्न हिस्सा भी। सरकारी अधिकारियों-नेताओं-मन्त्रियों-धनाढ्यों की देश की ग़रीब जनता के प्रति घृणा और उनके दुःखों के प्रति उदासीनता का आज जो कुरूपतम और रुग्णतम चेहरा सामने आ रहा है वह पूँजी के सबसे मानवद्रोही और परजीवी रूप, यानी वित्तीय पूँजी की जकड़बन्दी, का ही एक उदाहरण है। जैसे पानी के लिए तरसते ठाणे के कुछ गाँवों में भीख-स्वरूप पानी के कुछ गिलास भर बँटवा देना “जनप्रतिनिधियों” द्वारा मानवीय संवेदनाओं और बेबसी के साथ किये जाने वाले घृणित खिलवाड़ की ऐसी ही एक ऐसी मिसाल पेश करता है जिसे शायद शब्द में व्यक्त नहीं किया जा सकता।