मुम्बई पर आतंकवादी हमलाः सोचने के लिए कुछ ज़रूरी मुद्दे
कोई भी संवेदनशील और न्यायप्रिय नागरिक और नौजवान पूरे दिल से इन हमलों की निन्दा करेगा और इन्हें एक जघन्य अपराध मानेगा। हर कोई जानता है कि इन हमलों में तमाम आम, बेगुनाह लोगों की जानें गई हैं। उनके परिजनों-मित्रों के दर्द को हर कोई महसूस कर सकता है। इसमें कोई शक़ नहीं है कि ऐसे मानवताविरोधी कृत्यों की निन्दा सिर्फ़ औपचारिक रूप से दुख प्रकट करके नहीं की जा सकती और एक सोचने-समझने वाला इंसान अपने आपको ऐसे औपचारिक खेद-प्रकटीकरण तक सीमित नहीं रख सकता है। लेकिन हर विवेकवान नौजवान के लिए इस समय यह भी ज़रूरी है कि अंधराष्ट्रवादी उन्माद की लहर में बहने की बजाय वह संजीदगी के साथ आतंकवाद के मूल कारणों के बारे में सोचे? जिन आतंकवादियों ने मुम्बई में इस भयंकर हमले को अंजाम दिया वे जानते थे कि इसके बाद उनका बच पाना सम्भव नहीं है। इसके बावजूद वह कौन–सा जुनून और उन्माद था जो उनके सिर पर सवार था?