Category Archives: शिक्षा स्‍वास्‍थ्य और रोजगार

जनता के पैसों से आपदा में अवसर का निर्माण करतीं वैक्सीन कम्पनियाँ

मुनाफे पर टिकी इस पूँजीवादी व्यवस्था में लोगों की जान का भी सौदा किया जाता है। तमाम शोधों के पेटेण्ट, बड़ी फ़ार्मा कम्पनियों के हित में बने क़ानून और आज पूँजीपति वर्ग के मुनाफ़े को सुनिश्चित करने वाली इन सरकारों की वजह से आज वैक्सीन की शोध के बावजूद आम आबादी का बड़ा हिस्सा वैक्सीन की कमी की वजह से कोरोना संक्रमण के ख़तरे का सामना कर रहा है।

स्वास्थ्य बजट की कहानी

भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का सिर्फ एक प्रतिशत (केन्द्र तथा राज्य सरकारों को मिलाकर) सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च करता है, जो देश की आबादी, जनसांख्यिकी और लगातार बढ़ते बीमारी के बोझ को देखते हुए काफ़ी कम है। साथ ही यह दुनिया की किसी भी प्रमुख अर्थव्यवस्था के लिए भी सबसे कम है। ऑक्सफैम की ‘कमिटमेण्ट टू रिड्यूसिंग इनइक्वलिटी’ रिपोर्ट के अनुसार, भारत स्वास्थ्य ख़र्च में 155वें, नीचे से चौथे, स्थान पर है।

कोरोना की दूसरी लहर और रोज़गार का संकट

कोरोना महामारी की दूसरी लहर में भी मोदी सरकार के घटिया प्रबन्धन की वजह से करोड़ों लोग अपनी नौकरियों से हाथ धो बैठे है। आँकड़ो के हिसाब से चले तो सीएमआईई के हालिया रिपोर्ट के मुताबिक मई में बेरोजगारी दर मार्च के 6.63 फ़ीसदी से बढ़कर 14.45 फ़ीसदी हो गई है। हालत का अन्दाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि सीएमआईई ने उन लोगों को बेरोज़गार के रूप में वर्गीकृत किया है जिन्होंने नौकरी की तलाश की, लेकिन एक सप्ताह में एक घण्टे से कम काम प्राप्त किया।

कोरोना महामारी में चरमराई भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था

इस बीमारी को महामारी में तब्दील करने की मुख्य़ ज़िम्मेदारी मोदी सरकार की ही है। पिछले साल की ही तरह दोबारा सरकार ने न कॉण्टैक्ट ट्रेसिंग की और न ही बीमारी को रोकने के लिए कोई क़दम उठाये। केवल मास्क‍ न पहनने पर जुर्माना लगाने के जरिये सरकारी ख़ज़ाना भरा गया जबकि असल में संक्रमण बस्ती -बस्ती फैलता रहा। जब यह संक्रमण फैल रहा था तब मोदी और भाजपा के नेताओं ने बिना किसी सामाजिक दूरी के चुनावी रैलियाँ की। पिछले साल नमस्ते ट्रम्प के आयोजन के ज़रिये तो इस साल चुनाव के ज़रिये प्रधानमन्त्री मोदी सुपरस्प्रैडर साबित हुए हैं। न सिर्फ़ बीमारी के कारण लोगों की मृत्यु हुई है बल्कि भूख और बेघर होने के डर से बीमारी में ही लोग पैदल चल पड़े। सरकार ने हर क़दम में जो लापरवाही की, वह ग़रीबों के हिस्से में आयी और जो पहलक़दमी की, उसने अमीरों के घरों को बचाया। परन्तु दूसरी लहर में न केवल ग़रीब बस्तियों पर मौत का मसीहा मंडरा रहा था बल्कि इसने अमीरों की बसावट पर भी अपने पंख फैलाये।

बेरोज़गारी की मार झेलती युवा आबादी

निजी मालिकाने पर आधारित पूँजीवादी व्यवस्था अपनी स्वाभाविक गति से समाज में एक तरफ़ कुछ लोगों के लिए विलासिता की मीनारें खड़ी करती जाती है तो दूसरी ओर करोड़ों-करोड़ छात्रों समेत आम आबादी को गरीबी और भविष्य की अनिश्चितता के अँधेरे में ढकेलती है। मुनाफ़ा पूँजीवादी व्यवस्था की चालक शक्ति होती है। आज विश्व पूँजीवाद मुनाफ़े की गिरती दर के असमाधेय संकट के दौर से गुजर रहा है। पूँजीवादी होड़ से पैदा हुई इस मंदी की कीमत छँटनी, तालाबन्दी, भुखमरी, दवा-इलाज़ का अभाव, बेरोज़गारी आदि रूपों में मेहनतकश वर्ग को ही चुकानी पड़ती है।

कश्मीर के छात्रों का चौपट होता भविष्य

मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को अनुछेद 370 और 35ए हटाते हुए कश्मीरी आवाम से कई बड़े वायदे किए थे। जम्मू – कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को समाप्त करते हुए देश के प्रधानमंत्री ने ये घोषणा की थी भाजपा सरकार के इस ऐतिहासिक कदम से कश्मीर मे बेरोज़गारी ख़त्म हो जायेगी, आतंकवाद का नामोनिशान मिट जाएगा व कश्मीर विकास के नये-नये आयाम गढ़ेगा…. मगर आज सच्चाई इसके विपरीत है।

सरकारी शिक्षा पर चौतरफ़ा संकट के बादल

हर किसी के जीवन में शिक्षा की एक अहम भूमिका होती है। जीवन को उच्चतम धरातल पर ले जाने में शिक्षा की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। शिक्षा के बिना हर कोई अपने आप को अधूरा-सा महसूस करता है। वैसे तो बच्चे की पहली पाठशाला उसका घर होता है लेकिन अक्सर यह देखा जाता है कि उसको अक्षर ज्ञान किसी स्कूल में जाने से ही प्राप्त होता है। स्कूल किसी बच्चे को केवल अक्षर ज्ञान ही नहीं देता बल्कि बहुत सारी दूसरी चीज़ों से भी ओत-प्रोत करता है जो उसके आने वाले जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। इसलिए किसी भी बच्चे को स्कूली जीवन जीना आवश्यक ही नहीं बल्कि बेहद ज़रूरी माना जाता है।

मेडिकल की पढ़ाई पर फ़ीस बढ़ोत्तरी के रूप में हरियाणा सरकार का बड़ा हमला

हरियाणा प्रदेश में मेडिकल की पढ़ाई की फ़ीस में बेतहाशा बढ़ोत्तरी कर दी गयी है। हरियाणा सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था सुधार के नाम पर एक नयी अधिसूचना लेकर आयी है जो कुछ और नहीं बल्कि सरकार का मेडिकल की पढ़ाई पर एक बड़ा हमला है। सरकारी कॉलेजों/संस्थानों में एमबीबीएस यानी मेडिकल में स्नातक/ग्रेजुएशन की फ़ीस पहले जहाँ सालाना तक़रीबन 53,000 होती थी वहीं अब इसे बढ़ाकर 80,000 कर दिया गया है।

जनता को गाय के नाम पर कुत्सित राजनीति नहीं बल्कि शिक्षा-स्‍वास्थ्य और रोज़गार चाहिए!

9 दिसम्बर को कर्नाटक विधानसभा में ‘कर्नाटक मवेशी वध रोकथाम एवं संरक्षण विधेयक-2020’ पारित कर दिया गया है। भाजपा शासित राज्यों में सरकारों के पास यही काम रह गया है कि साम्प्रदायिक नफ़रत भड़काने वाले मुद्दों को लगातार हवा देते रहना और सम्प्रदाय विशेष के उत्पीड़न की नयी-नयी तरकीबें भिड़ाते रहना। हाल ही में भाजपा शासित पाँच राज्यों में तथाकथित लव जिहाद के नाम पर क़ानून बनाने की कुत्सित योजनाओं को अमली जामा पहनाने पर भी काम चल रहा है।

हरियाणा में पीटीआई शिक्षक बर्ख़ास्तगी के विरुद्ध आन्दोलन की राह पर

हरियाणा में 1983 पीटीआई शिक्षकों को कोरोना संकट के बीच में नौकरी से निकाल दिया गया। हरियाणा राज्य के अलग-अलग ज़िलों में 2010 बैच के शारीरिक शिक्षक अपने रोज़गार को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। पीटीआई अध्यापक कोरोना के ख़तरे के बीच उमसभरी गर्मी के थपेड़े खाते, बारिश में भीगते हुए भी अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाते रहे हैं। राज्य भर की कर्मचारी यूनियनें, जनसंगठन और सामाजिक संगठन भी पीटीआई अध्यापकों के न्यायपूर्ण संघर्ष के समर्थन में आगे आ रहे हैं।