कश्मीर के छात्रों का चौपट होता भविष्य

प्रियंवदा

मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को अनुछेद 370 और 35ए हटाते हुए कश्मीरी आवाम से कई बड़े वायदे किए थे। जम्मू – कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को समाप्त करते हुए देश के प्रधानमंत्री ने ये घोषणा की थी भाजपा सरकार के इस ऐतिहासिक कदम से कश्मीर मे बेरोज़गारी ख़त्म हो जायेगी, आतंकवाद का नामोनिशान मिट जाएगा व कश्मीर विकास के नये-नये आयाम गढ़ेगा…. मगर आज सच्चाई इसके विपरीत है। इस सरकार के बाकी वायदों के तरह ही ये वायदे भी कोरे झूठ साबित हुए हैं। वास्तविकता यह है कि आज घाटी में शांति भारतीय राज्यसत्ता द्वारा हजारों सशस्त्र बलों, चप्पे -चप्पे पर कटीले तारो व बन्दूक की नोक पर कायम की जा रही है। सिर्फ इतना ही नहीं तमाम जनवादी आवाज़ों को खामोश करके जेल भेजा जा रहा है व जनपक्षधर मीडियाकर्मियों पर यूएपीए जैसे काले क़ानून लगाए जा रहे हैं। फोन व इंटरनेट की सुविधा खत्म करके कश्मीरी आवाम को कैद मे रखा गया है, अपनी ज़रूरतों और मांगो को लेकर सड़कों पर उतरने वाले आमलोगों को पैलेट गन और गोलियां मिलती हैं।
पिछले डेढ़ सालों में घाटी की मेहनतकश आवाम की ज़िन्दगी हर दिन खौफ़ मे बीत रही है, रोज़गार, शिक्षा और यहाँ तक कि उनके जीने का बुनियादी अधिकार भी उनसे छीना जा चुका है। कश्मीर के छात्रों की ज़िन्दगी के बचे-खुचे सपने भी मोदी सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम के साथ ही ख़त्म हो गए थे। धारा 370 हटने के बाद दूसरे राज्यों मे पढ़ाई कर रहे कश्मीरी छात्र अपने घरों में बात तक नहीं कर पा रहे थे, भाजपा सरकार द्वारा पाले-पोसे गए गुंडा तत्वों द्वारा उन्हें लगातार परेशान किया जा रहा था। दिल्ली जैसे शहर में इन छात्र-छात्राओं के लिए एक भयंकर असुरक्षा का माहौल तैयार किया गया, कई छात्रों से उनके कमरे तक खाली करवा दिये गये, सरकार के इस कदम का विरोध करने वाले तमाम छात्रों को उनके क्लास रूम से लेकर कॉलेज कैम्पस तक में डराया धमकाया जाने लगा। कई महीनों बाद अपने घर वापस लौटे इन छात्रों के लिये वहाँ का माहौल भी भयावह ही था। मार्च 2020 में शुरू हुए कोविड महामारी और फिर सरकार की बदइंतेजामी ने हालात कहीं ज्यादा बुरे कर दिये। इस दौरान शिक्षण संस्थानों में शुरू हुई ऑनलाइन क्लासेस व परीक्षाएँ कश्मीरी छात्रों के पहुँच मे नहीं थी। कश्मीर मे आज भी इंटरनेट सेवा पूरे तरीके से बहाल नहीं हुई है, कई बार तो झूठी सुरक्षा के नाम पर 2जी इंटरनेट को भी बंद कर दिया जाता है, गरीब व मध्यम वर्ग से आने वाले छात्र-छात्राओं के लिये स्मार्टफोन और वाई-फाई लेकर पढ़ाई कर पाना संभव नहीं है। बर्फबारी के समय बिजली की अनुपलब्धता भी घाटी के नौजवानों की पढ़ाई मे बाधक बनती है। बीते 21 दिसम्बर को जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय द्वारा ऑनलाइन परीक्षा की घोषणा किए जाने पर कश्मीर के छात्रों ने अपना विरोध दर्ज़ किया क्योंकि वहाँ रह रहे अधिकांश छात्रों के लिये ऑनलाइन परीक्षा के लिये ज़रूरी शर्तो को पूरा कर पाना नामुमकिन था। छात्रों के जबर्दस्त विरोध के बाद जामिया विश्वविद्यालय को अपना ये कदम पीछे लेना पड़ा।
नेहरू सरकार और उसके बाद की कांग्रेसी सरकारों ने कश्मीरी क़ौम के साथ जो धोखा शुरू किया था उसे मोदी-शाह की जोड़ी ने अपनी तार्किक परिणति पर पहुँचा दिया है और आज कश्मीर को जेलखाने में तब्दील किया जा चुका है।
कश्मीर की मौज़ूदा परिस्थितियों के साथ ही महामारी की भयावहता ने वहां छात्र आबादी को तनाव के हवाले कर दिया है। परीक्षाओं की वजह से एक बड़ी आबादी मानसिक पीड़ा का सामना कर रही है, हमने देखा कि छात्रों मे आत्महत्या की घटनाएँ आम बनती जा रही है।
जम्मू और कश्मीर के छात्रों के साथ-साथ आज देशभर की छात्र आबादी ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था का विरोध कर रही है। कश्मीर की छात्र आबादी के लिये शिक्षा हासिल कर पाना असंभव बनता जा रहा है। छात्र-छात्राओं को मानसिक पीड़ा व आत्महत्या के लिये मजबूर करने वाली इस शिक्षा व्यवस्था को बदलने की ज़रूरत है। आज हमारा ये कर्तव्य और दायित्व बनता है कि हम एकसमान और निःशुल्क शिक्षा व्यवस्था की ज़रूरत के लिये एक व्यापक संघर्ष की शुरुआत करें।

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, नवम्बर 2020-फ़रवरी 2021

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