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श्रीराम सेने की ‘राष्ट्रभक्ति’ का एक और नमूना

ये समस्त प्रतिक्रियावादी ताकतों की एक पहचान सर्वव्यापी है। ये झुण्ड में पौरुष दिखाते हैं। इनकी कायराना हरकत इस ताज़ा घटना में भी देखने को मिली। बीजापुर में सड़कों पर प्रदर्शन के दौरान बहुमुखी हिन्दुत्ववादी एक साथ जयघोष कर रहे थे। इनके सारे मुखौटे एकजुट थे, पर जैसे ही इनकी असलियत खुलकर सामने आ गयी, ये सब हर बार की तरह मैं नहीं-मैं नहीं, कहकर अपना-अपना दामन पाक-साफ बताने में लग गये। श्रीराम सेना के कर्ताधर्ता प्रमोद मुतालिक बयान देने लगे कि यह गिरफ्तारी श्रीराम सेना को बदनाम करने के लिए की गयी है और पकड़े गये सभी युवक ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के सदस्य हैं। वैसे तो आर.एस.एस. इस मामले पर अपने मुँह पर टेप चिपका के बैठ गयी है, अगर बोली तो मेरी मानो यही कहेगी कि आर.एस.एस. एक सांस्कृतिक संगठन है! ऐसे राष्ट्रविरोधी कुकृत्य का हम कतई समर्थन नहीं करते! यह राष्ट्र विरोधियों की सोची समझी साजिश है! आदि-आदि। यह गोयबल्सीय भाषा शैली का सुन्दर समन्वय कब तक करते रहेंगे। जब तथ्य इनके चेहरे पर पुते नकाब को बारम्बार खुरच रहे हों!

श्रीराम सेने ने मचाया उत्पात और अण्णा हो गये मौन!!

अण्णा हज़ारे अपने आप को फँसता देख मौनव्रत पर चले गये और यह उनका पहला मौन व्रत नहीं है। जब मुम्बई में उत्तर भारतीयों को पीटा जा रहा था तब भी वे मौन थे, गुजरात में लोग सरेआम कत्ल किये जा रहे थे तब भी वे मौन थे; उल्टे इस नरसंहार के जिम्मेदार नरेन्द्र मोदी की भी एक बार प्रशंसा की, हालाँकि बाद में पलट गये; इसके अलावा राज ठाकरे जैसे लोगों के साथ मंच साझा करने में भी अण्णा हज़ारे गर्व अनुभव करते हैं! पूरे देश में लाखों किसान आत्महत्या कर रहे हैं, वे तब भी मौन हैं; देश भर में मज़दूरों को कुचला जा रहा है और उनके हक-अधिकारों को रौंदा जा रहा है, तब भी वे मौन है। उनके भ्रष्टाचार विरोध का ड्रामा चल रहा था उसी समय गुड़गाँव में मज़दूर अपनी गरिमा और अधिकारों के लिए लड़ रहे थे। अण्णा हज़ारे या उनकी मण्डली के एक भी मदारी को यह नज़र नहीं आया। नज़र भी क्यों आता, सुजुकी और मारूती जैसे कारपोरेट तो चिरन्तर सदाचारी हैं, और शायद इसीलिए जनलोकपाल के दायरे में कारपोरेट जगत का भ्रष्टाचार नहीं आता। अण्णा हज़ारे को बस अपना ‘जनलोकपाल बिल’ पास होना मँगता है! चाहे मज़दूर मरते रहें, ग़रीब किसान आत्महत्या करते रहें।