फ़ीस वृद्धि के नाम पर शिक्षा को बिकाऊ माल बना देने की तैयारी
विश्वविद्यालय के घाटे को कम करने के नाम पर की गयी इस फ़ीस वृद्धि का असली उद्देश्य किसी भी नागरिक के समान तथा निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करने जैसे बुनियादी अधिकार को उनसे छीन उसे एक बिकाऊ माल बना देना है। जिस तरह आज आम मेहनतकश आबादी के ख़ून-पसीने से खड़े किये गये सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को पूँजीपतियों को कौड़ियों के दाम बेचा जा रहा है, उसी तरह आने वाले समय में सरकारी शिक्षा संस्थानों को भी निजी हाथों में सौंपने की पूरी तैयारी सरकार ने कर ली है।