Category Archives: छात्र आन्‍दोलन

यूरोप में छात्रों-नौजवानों और मेहनतकशों का जुझारू प्रदर्शन

पिछले दो महीनों से, यूरोप के विभिन्न शहरों में जनता का गुस्सा सड़कों पर उमड़ रहा है। लाखों की तादाद में मज़दूर-कर्मचारी-नौजवान विरोध प्रदर्शनों और हड़तालों में हिस्सेदारी कर रहे हैं। कई शहरों में सरकारी दफ्तरों पर हमले हो चुके हैं, उत्पादन ठप्प हुआ है और कई मौकों पर तो पूरा देश ही ठहर गया। हालाँकि इन हड़तालों और विरोध प्रदर्शनों के मुद्दे अलग-अलग हैं, लेकिन जनता के गुस्से का कारण एक है – सरकारें सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में कटौती कर रही हैं, श्रम कानूनों को ढीला कर रही हैं और एक के बाद एक जन-विरोधी नीतियाँ और कानून बना रही हैं और दूसरी तरफ जन-कल्याण के लिए उपयोग किये जाने वाले पैसे से पूँजीपतियों और वित्तीय संस्थानों को बेलआउट पैकेज और कर-माफी दे रही हैं।

ब्रिटेन का छात्र आन्दोलन कुछ अनछुए पहलू

निश्चित रूप से इन आन्दोलनों के जुझारूपन को सलाम किया जाना चाहिए और उन संघर्षरत छात्रों के साथ अपनी एकजुटता का इज़हार करना चाहिए और उनकी स्पिरिट से सीखा जाना चाहिए। लेकिन साथ ही इन आन्दोलन की सीमाओं को भी समझना चाहिए। ये आन्दोलन अभी पश्चिमी पूँजीवाद के वर्चस्व के दायरे को तोड़ने तक नहीं पहुँचे हैं और निकट भविष्य में ये पहुँचने वाले भी नहीं हैं। जल्दी ही इन्हें इस पूँजीवाद के द्वारा सहयोजित कर लिया जाना है। इसका कारण अन्तरराष्ट्रीय पैमाने पर इन उन्नत पूँजीवादी देशों का राजनीतिक प्रभुत्व और आर्थिक शक्तिमत्ता है। आज भी अगर हम उम्मीद के साथ विश्व में कहीं देख सकते हैं तो उन देशों की तरफ देख सकते हैं, जहाँ साम्राज्यवादी और पूँजीवादी लूट और शोषण का दबाव सबसे ज़्यादा है। यानी, तीसरी दुनिया के वे देश जहाँ जनता देशी पूँजीवाद के बर्बरतम और सबसे शोषणकारी शासन तले दबी हुई है और जहाँ इन देशों का पूँजीपति वर्ग साम्राज्यवादियों के साथ मिलकर अपने-अपने देश की जनता को तबाहो-बरबाद कर रहा है। विश्व पूँजीवाद की कमज़ोर कड़ी अब भी एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका के अपेक्षतया पिछड़े पूँजीवादी देश हैं। यहाँ सतह पर दिखती ख़ामोशी के नीचे असन्तोष का भयंकर ज्वालामुखी धधक रहा है। क्रान्तिकारी नेतृत्व की अनुपस्थिति में इस असन्तोष का दिशा-निर्देशन नहीं हो पा रहा है। लेकिन यह स्थिति हमेशा बनी रहने वाली नहीं है।

अलीगढ़ मुस्लिम वि.वि. में छात्र संघ बहाली के लिए, छात्रों का जुझारू संघर्ष

पिछले करीब डेढ़ महीने से अलीगढ़ मुस्लिम वि.वि. में हज़ारों की संख्या में छात्र, छात्र संघ की बहाली के लिए संघर्षरत हैं। इसकी शुरुआत 4 अक्टूबर को वी.सी. लॉज के सामने छात्रों के धरने के साथ हुई। यह धरना मुख्यतः दो माँगों को लेकर आयोजित किया गया था – पहला छात्र संघ बहाल करने की माँग और दूसरा डीन, वित्त अधिकारी और प्रवोस्ट की बर्खास्‍तगी की माँग। धरने के तीन दिन बाद ही कुलपति से छात्रों के प्रतिनिधिमण्डल की वार्ता हुई। यह वार्ता कुलपति के तानाशाही रवैये के कारण बेनतीजा साबित हुई। इसके बाद छात्रों ने आम सहमति से संघर्ष को और तेज़ करने के लिए 12 अक्टूबर से अनियतकालीन भूख हड़ताल की शुरुआत कर दी।

जयपुर में छात्राओं का संघर्ष: एक रिपोर्ट

शिक्षा मन्त्री के इस रवैये से बौखलाए हुए छात्राओं ने पास ही कि सिविल लाइन्स रोड को जाम कर आवागमन बाधित कर दिया। बस इतना ही काफी था पुलिस प्रशासन के लिए इन छात्राओं पर निर्मम तरीके से लाठी चार्ज करने के लिए। 30 मिनट तक महिला एवं पुरुष पुलिसवालों ने मिलकर छात्राओं को जमकर पीटा जिसमें करीब 30 छात्राएँ बुरी तरह घायल हो गई। बाकी बची छात्राओं को धारा 144 का उल्लंघन करने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया।

मज़दूरों द्वारा छात्रों को एक खुला खत

अकेले मत रहो। हमें बुलाओ, अधिक से अधिक लोगों को बुलाओ। हमें नहीं पता कि यह तुम कैसे कर सकते हो, तुम राह ढूंढ लोगे। तुम ने पहले ही अपने विद्यालयों पर कब्जा कर लिया है और तुमने हमें बताया है कि इसका सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि तुम्हें तुम्हारे स्कूल अच्छे नहीं लगते। बढ़िया है, चूँकि तुमने उन पर कब्जे कर ही लिये हैं तो उनकी भूमिका बदलो। अपने कब्ज़ों को अन्य लोगों के साथ साझा करो। अपने विद्यालयों को हमारे नये सम्बन्धों के निवास की पहली इमारतें बना दो। उनका सबसे शक्तिशाली हथियार हमें बाँटना है। जो कि उनके थानों पर हमले करने से तुम नहीं डरते क्योंकि तुम एकजुट होते हो, वैसे ही हम सब के जीवन को मिल कर बदलने के लिये हमें बुलाने से भय मत खाओ।

लिंगदोह समिति का सच सामने है और हमारे कार्यभार भी…

कुल मिलाकर यह पूँजीपति शासक वर्ग की एक साज़िश है कि व्यापक छात्र आबादी का विराजनीतिकरण कर दिया जाय, कैम्पस को क्रान्तिकारी छात्र राजनीति से बचा कर रखा जाय, छात्र राजनीति को कुछ दिखावटी नियमों के पालन के साथ विधायक–सांसद बनने का प्रशिक्षण केन्द्र बने रहने दिया जाय और क्रान्तिकारी शक्तियों को कैम्पस के भीतर पैठने न दिया जाय ।

गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति की छात्र–विरोधी काली करतूतें

गोरखपुर विश्वविद्यालय पिछले कई वर्षों से अराजकताओं और अव्यवस्थाओं तथा भ्रष्टाचार का अड्डा बना हुआ है । शिक्षा का स्तर गर्त में चला गया है । हर छह महीने साल भर पर कुलपति बदलते रहते हैं । इन्हीं अव्यवस्थाओं के बीच इस सत्र में स्थायी कुलपति एन.एस. गजभिए की नियुक्ति हुई जो आई.आई.टी. कानपुर से आये हैं । जिससे छात्रों, कर्मचारियों तथा शिक्षकों को उम्मीद बँधी थी कि विश्वविद्यालय की तस्वीर बदलेगी । और कुलपति ने भी कहा कि हम विश्वविद्यालय को नयी ऊँचाई और पहचान दिलायेंगे । लेकिन सभी की आशाओं पर कुठाराघात करते हुए दो ही महीने के अन्दर कुलपति के एकतरफा और निरंकुश निर्णयों की बाढ़ सी आ गयी । नये सत्र की शुरुआत के पहले ही छात्रावासों को मरम्मत के नाम पर जबरिया खाली करा लिया गया । जिसमें न ही किसी छात्र से और न किसी कर्मचारी या छात्रावास प्रतिनिधियों से राय–मशविरा किये बिना एकतरफा तरीक़े से छात्र आन्दोलन के बावजूद पुलिस और पीएसी के बल पर छात्रावास खाली कराये गये । अब छात्रावास में मेस भी अनिवार्य कर दिया गया है । पूर्वांचल में ग़रीब तथा आम घरों से आने वाले जो छात्र पहले 500–600 रुपये में अपना खर्च चला लेते थे, अब एक हज़ार रुपया मासिक दे कर सड़ा–गला तथा अधपका खाना खायेंगे । यह सब करते वक़्त छात्र हित से ज़्यादा ठेकेदार हित हावी था

खस्ताहाल शिक्षा सुविधाओं पर छात्र–छात्राओं का प्रदर्शन

ये हकीकत है इस व्यवस्था की । यहाँ पर जब भी आप अपने हक–अधिकारों के लिए आगे आयेंगे तो आपका स्वागत लाठियों–गोलियों से होगा । तो क्या ये बेहतर है कि सब कुछ देख कर भी सहने की आदत डालें और अपने आँख, नाक, कान बन्द रखे बस जीने के लिए जीते रहें ? लेकिन ये बच्चे जो आज आवाज़ उठा रहे हैं, लाठियाँ खा रहें हैं, क्या ये चुप रहे पायेंगे ? ये ही वे बच्चे हैं जो संघर्ष करना सीख रहे हैं, जो अपना शस्त्राभ्यास जारी रखे हुए हैं और इन्हीं से आने वाले कल को उम्मीद है । बेहद कम उम्र में ही ये इस व्यवस्था और समाज की असलियत को समझ रहे हैं और एक नफ़रत का ईंधन अपने भीतर भर रहे हैं ।

छात्र-युवा आन्दोलन: अप्रोच और दृष्टिकोण के बारे में कुछ और स्पष्टीकरण

आधुनिक युग के इतिहास के किसी भी दौर में, किसी भी देश में क्रान्तिकारी सामाजिक परिवर्तन में छात्रों-युवाओं की अहम भूमिका रही है। लेकिन इस तथ्य को स्वीकारते हुए, छात्रों-युवाओं की आबादी के प्रति एक ग़ैरवर्गीय नज़रिया अपनाना या केवल मध्यवर्गीय युवा आबादी की भूमिका पर बल देना ग़लत और नुकसानदेह होता है।

क्रान्तिकारी छात्र-युवा आन्दोलन

पिछले कुछ दशकों में भारतीय समाज में आये परिवर्तनों के साथ ही उच्च शिक्षा संस्थानों के बदलते वर्ग चरित्र पर दृष्टिपात करते हुए इन लेखों में क्रान्तिकारी छात्र-युवा आन्दोलन के समक्ष मौजूद नयी चुनौतियों की चर्चा की गयी है और यह विचार प्रस्तुत किया गया है कि क्रान्तिकारी छात्र-युवाओं को मेहनतकश वर्गों के बीच जाना चाहिए, उनके साथ घनिष्ठ रिश्ते बनाने चाहिए, मज़दूर वर्ग और व्यापक मेहनतकश जनता के संघर्षों में प्रत्यक्ष भागीदारी करनी चाहिए और उसके संघर्षों के साथ अपने संघर्षों को जोड़ना चाहिए क्योंकि ऐसा किये बिना वे उस पूँजीवादी व्यवस्था को क़त्तई नष्ट नहीं कर सकते जो सभी समस्याओं की जड़ है।