इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ बहाली के लिए छात्रों का जुझारू संघर्ष
विकास, इलाहाबाद
छात्रसंघ चुनाव छात्रों का लोकतान्त्रिक अधिकार है जिसका प्रयोग छात्र संगठन छात्रों की समस्याओं का समाधान करने व विश्वविद्यालय की भ्रष्ट नीतियों का विरोध करके छात्रों के हितों व अधिकारों की रक्षा के लिए करते हैं। इस जनतान्त्रिक मंच के जरिये ही छात्र विश्वविद्यालय प्रशासन की तानाशाही पर अंकुश लगा सकते हैं। लेकिन सरकार नहीं चाहती कि छात्र-नौजवान अपने अधिकारों के लिए आन्दोलन करें, इसी कारण देश के किसी भी कोने में अगर छात्रसंघ बहाली के लिए आन्दोलन होता है, तो सरकार लाठीचार्ज कराकर ऐसे आन्दोलनों को बर्बरतापूर्वक कुचल देती है, जिससे लोकतान्त्रिक अधिकारों का हनन हो रहा है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भी छात्रों ने छात्रसंघ बहाली के लिए आन्दोलन की शुरुआत सत्रारम्भ के समय से की थी। छात्र संगठनों ने व तमाम छात्रों ने छात्रसंघ बहाली के लिए आन्दोलन को आगे बढ़ाया, जिसके दबाव में कुलपति ने छात्रसंघ संविधान बनाने व चुनाव के लिए डीन (छात्र कल्याण) की अध्यक्षता में एक समिति सितम्बर के प्रथम सप्ताह में गठित कर दी। तीन सदस्यीय समिति से छात्रों को काफी उम्मीदें थी लेकिन इस समिति ने अपनी एक बैठक तक नहीं की। अन्ततः छात्रों ने आमरण अनशन करने का निर्णय लिया। 12 अक्टूबर को चार छात्र नेता अनशन पर बैठ गये और अनशन को शान्तिपूर्ण तरीके से एक सप्ताह तक जारी रखा। इस दौरान छात्र नेताओं ने कई बार अपनी माँगों के लिए सचिव व डीन से मिले लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन का रवैया कठोर बना रहा और वे छात्रों की कोई बात सुनने के लिए तैयार भी नहीं हुए और अपनी तानाशाही ही चलायी।
छात्र संघ बहाली की माँग को लेकर बहुत से छात्र 18 अक्टूबर को कुलपति से मिलने गये और अपनी माँगों के लिए दबाव बनाया जो बेअसर रहा। उसी समय एक आक्रोशित छात्र ने मिट्टी का तेल छिड़कर आत्मदाह करने की कोशिश की जिससे ए-डी-एम- सिटी व एस-पी- सिटी ने उस छात्र को दौड़ा लिया और पुलिस की लाठियाँ छात्रों पर बरसने लगी। इस निर्मम लाठीचार्ज में एक दर्जन, छात्र गम्भीर रूप से घायल हो गये और लगभग एक घण्टा विश्वविद्यालय परिसर जंग का मैदान बना रहा। देर रात करीब 1 बजे अनशन स्थल पर पुलिस पहुँची और अनशन को खत्म करवाने के मकसद से तीन छात्रों को जबरिया उठाकर निकटवर्ती अस्पताल में भर्ती करा दिया और माहौल को काबू करने के लिए विश्वविद्यालय परिसर में पी-ए-सी- तैनात कर दी गयी। इस तरह विश्वविद्यालय प्रशासन व सरकार ने मिलकर छात्रसंघ बहाली को रोकने के लिए निर्मम बल प्रयोग का सहारा लिया।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय का अन्तिम छात्रसंघ चुनाव दिसम्बर 2005 में ही हुआ था। तब से विश्वविद्यालय प्रशासन भ्रष्टाचार में लिप्त होकर छात्रों का शोषण कर रहा है और तानाशाही को अपना कर्तव्य घोषित कर रहा है। छात्रसंघ की माँग को लेकर विश्वविद्यालय परिसर में 2009 में भी लाठीचार्ज हुआ था। जिससे पता चलता है कि सरकार कैसे लोकतन्त्र की हत्या कर छात्रों के लोकतान्त्रिक अधिकारों को दिन-प्रतिदिन छीनती जा रही है और अन्याय को न्यायोचित दर्शा रही है। छात्रसंघ बहाली का यह आन्दोलन छात्रों पर हो रहे अन्याय के विरुद्ध एक प्रतिरोध है जो सराहनीय है। इसी कारण इस आन्दोलन को भारी जनसमर्थन मिल रहा है और यह जनसमर्थन ही विश्वविद्यालय प्रशासन पर एक दबाव का कारण बना अतः दबाववश प्रशासन छात्रों के आन्दोलन को टालने के लिए इसी सत्र में छात्रसंघ चुनाव कराने का आश्वासन दे दिया जिसके बाद छात्रनेताओं ने अपना अनशन तोड़ा। लेकिन छात्रों ने चेतावनी दी कि यदि 20 नवम्बर को चुनाव की तिथि घोषित नहीं की गयी तो वे दुबारा आन्दोलन की राह पकड़ेंगे और उनका आन्दोलन बहाली तक चलेगा क्योंकि आन्दोलन ख़त्म नहीं हुआ है बल्कि इसे केवल स्थगित किया जा रहा है।
छात्रसंघ बहाली की माँग कर रहे छात्रों पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज की घटना को विभिन्न संगठनों ने निन्दा की और जुलूस निकालकर उस दिन को काला दिवस मनाया और भारी संख्या में छात्रों ने आन्दोलन का समर्थन किया व विश्वविद्यालय प्रशासन के घृणित कृत्य को छात्रों ने अन्यायकारी व अलोकतान्त्रिक कार्यवाही की संज्ञा दी।
पूँजीवादी लोकतन्त्र सही मायने में लूट-तन्त्र है जो निर्मम शोषण के द्वारा ही जिन्दा है। शोषण, दमन, अन्याय, अत्याचार और भ्रष्टाचार का क्रियान्वयन करना ही उसका असली पेशा है अतः ऐसे वातावरण में क्रान्तिकारी चेतना वाले छात्रों-नौजवानों को पहलकदमी करके अन्यायकारी कार्यवाही का प्रतिरोध करते हुए पूँजीवाद के असली चरित्र को नंगा कर जनता को क्रान्तिकारी चेतना से लैस करना होगा।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, सितम्बर-अक्टूबर 2011
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